प्रस्तावित टॉपबाक्स...योग से मिली नई ¨जदगी, नियमित अभ्यास से गंभीर रोगों को भी दे दी मात
विजय मिश्रा, नारनौल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बृहस्पतिवार को मनाया जाएगा। आम तौर पर लगता है कि योग व्
विजय मिश्रा, नारनौल
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बृहस्पतिवार को मनाया जाएगा। आम तौर पर लगता है कि योग व्यायाम का एक रूप है जिसमें शरीर के हिस्सों को हिलाना डुलाना शामिल है, लेकिन वास्तव में योग व्यायाम से बढ़कर है। मूल रूप से योग न केवल व्यायाम का एक रूप है बल्कि स्वस्थ, खुशहाल और शांतिपूर्ण तरीके से जीने का प्राचीन ज्ञान और मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक पथ से जीवन जीने की कला है। योग के इसी महत्व को कुछ ऐसे लोगों ने साबित किया है जिनकी ¨जदगी में अंधेरा छा गया था, लेकिन इन्होंने न केवल अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति बल्कि योग के नियमित अभ्यास से गंभीर रोगों को भी मात दे दी। डॉक्टरों से दवा की जगह मांग रही थी जहर, योग से मिली नई ¨जदगी
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गंभीर बीमारियों से जकड़ी होने के कारण मौत मानो मेरे हर पल सामने थी। डॉक्टर जवाब दे चुके थे और मैं डॉक्टर से दवा की जगह जहर देने की गुजारिश करने लगी थी। करीब एक साल पहले एक माइनर ऑपरेशन के बाद मेरे इस तरह के हालात हो गए। दिमाग के बाएं हिस्से में एकाएक कंपन होने लगी और हाथ पैर हिलने लगे थे। जांच कराई तो यूटरस में गांठ, घुटनों में गैप, लीवर पर अटैक, साइकेटिक जैसी बीमारियों की लंबी फेहरिस्त सामने थी। आखिर डॉक्टरों ने सबसे पहले गाल ब्लैडर निकालने और मुझे बेड रेस्ट करने की सलाह दी। हालात यह थे कि महीनों तक सो ही नहीं पाई। ¨जदगी की उम्मीद छोड़ चुकी थी। कोई रास्ता नहीं दिखा तो ससुर हरि¨सह जी की प्रेरणा से बिस्तर पर लेटे-लेटे ही प्राणायाम शुरू किया। प्राणायाम के कुछ देर बाद नींद आने लगी तो रुचि बढ़ी। धीरे-धीरे अभ्यास की समय सीमा बढ़ाई। आराम और ज्यादा मिलने लगा। करीब एक साल के योग व प्राणायाम के बाद अब मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं। सभी जांच रिपोर्ट नॉर्मल हैं। अब खुद भी दूसरों को योग व प्राणायाम करने के लिए प्रेरित कर रही हूं।
-निधि, निवासी हुडा, नारनौल
पैरालिसिस अटैक से ¨जदगी में होने लगा था अंधेरा, योग ने जगाई किरण:
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बात वर्ष 2011 की है। मैं पूरी तरह स्वस्थ था, लेकिन एक दिन अचानक शरीर के एक हिस्से में पैरालिसिस अटैक आ गया। एक हाथ, पैर व मुंह के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। इसका असर दिमाग पर भी सीधा पड़ा। डॉक्टरों ने पूर्व में चल रही हार्ट की दवाइयों का असर बताया। इलाज शुरू कराया। कई डॉक्टर व अस्पताल बदले पर हर जगह सिर्फ सांत्वना मिली इलाज नहीं। दवाइयां खा-खाकर तंग आ चुका था। निराश होकर मैंने यह मान लिया था कि अब भविष्य इसी तरह गुजारना पड़ेगा। तभी एक दिन भतीजी अनीता यादव ने इस उम्मीद के साथ योग व प्राणायाम करने की सलाह दी कि शायद इलाज हो सके। मैंने पांच मिनट भस्त्रिका और आधा-आधा घंटे कपालभाति व अनुलोम-विलोम करने से शुरुआत की। करीब एक महीने बाद ही मेरे चेहरे की नसों का असहनीय दर्द दूर होने लगा। अभ्यास निरंतर जारी रखकर समय धीरे-धीरे बढ़ाता गया। करीब एक साल में मुझे अस्सी प्रतिशत तक लाभ मिल चुका है। वर्तमान में मैं रोज सुबह करीब ढाई घंटे नियमित योग करता हूं।
-एडवोकेट केसरी¨सह यादव, निवासी शिमली, नारनौल 22 बीमारियों का घर बन गया था शरीर, योग से मिला सहारा:
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सन 1993 में पति की मौत ने मुझे अंदर तक हिलाकर रख दिया था। परिवार की सोच-सोचकर अंदर तक टूट चुकी थी। दौरे आने लगे थे और सिर में हमेशा दर्द रहने लगा था। पढ़ाने के लिए क्लास में जाती, लेकिन कुछ पता ही नहीं रहता था। कई बार तो साथी या परिजन सहारा देकर विद्यालय से लाते। नामी डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन शरीर की हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ने लगी थी। दौरे व सिरदर्द दूर करने के लिए डॉक्टर नींद की दवा दे देते। दिनचर्या भी ऐसी बन गई कि बस दवाई खा लूं और सो जाऊं। इससे मोटापा भी आने लगा था। जांच कराई तो शरीर छोटी-बड़ी 22 बीमारियों का घर बन चुका था। हर तरफ निराशा थी और जीवन में घोर अंधेरा। दस साल यह सिलसिला चला। इसी बीच सन 2003 में नारनौल के सुभाष पार्क में दस दिवसीय योग शिविर लगा। मैं इसमें जाने लगी। दस दिन में ही मुझे सिरदर्द में कुछ राहत महसूस हुई। शिविर समाप्त हो गया, लेकिन मैंने क्रम को आगे बढ़ाया और हर दिन करीब पांच घंटे योग-प्राणायाम करती। तीन महीने में ही क्रांतिकारी बदलाव हुआ। अब मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं।
-कृष्णा देवी, पूर्व प्राचार्य, राजकीय सीनियर सेकंडरी स्कूल नीरपुर