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शेरशाह शूरी के काल के सिलालेख पड़े हैं भैंस के पैरों में

कहावत है कि भैंस के आगे बीन बजाने का कोई फायदा नहीं लेकिन यदि सैकड़ों साल पुराना इतिहास भैंस के पैरों में पड़ा हो तो आप क्या कहेंगे। हम कोई काल्पनिक कहावत की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि गांव मांदी में कुएं के पास बंधी एक भैंस के पैरों में असल में शेरशाह शूरी के काल के पड़े सिलालेख की बात कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Dec 2020 04:33 PM (IST)Updated: Wed, 30 Dec 2020 04:33 PM (IST)
शेरशाह शूरी के काल के सिलालेख पड़े हैं भैंस के पैरों में
शेरशाह शूरी के काल के सिलालेख पड़े हैं भैंस के पैरों में

बलवान शर्मा, नारनौल:

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कहावत है कि भैंस के आगे बीन बजाने का कोई फायदा नहीं, लेकिन यदि सैकड़ों साल पुराना इतिहास भैंस के पैरों में पड़ा हो तो आप क्या कहेंगे। हम कोई काल्पनिक कहावत की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि गांव मांदी में कुएं के पास बंधी एक भैंस के पैरों में असल में शेरशाह शूरी के काल के पड़े सिलालेख की बात कर रहे हैं। जी हां गांव मांदी में शेरशाह शूरी द्वारा जिले में बनाए गए 308 कुओं में से एक आज भी मौजूद है। इसी कुएं का एक सिलालेख भैंस के पैरों में पड़ा हुआ है। इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर को लेकर कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं दे रहा है और इस पत्थर को सामान्य कामकाज में उपयोग किया जा रहा है। असल में पुरातत्व के लिहाज से यह बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है। लेकिन इस ओर न तो पुरातत्व विभाग का कोई ध्यान है और न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी इसे सहेज रहे हैं। मांदी के इतिहास में रुचि रखने वाले 90 वर्षीय एडवोकेट राव रणबीर सिंह इस तरह की सैकड़ों धरोहरों के चिन्ह अपने पास सहेज कर इतिहास को बचाए हुए हैं। इतिहासकार एडवोकेट रतनलाल सैनी ने भी सिलालेख की जांच की। उन्होंने कहा कि शायद फारसी भाषा में इस पत्थर पर लिखा हुआ है। लेकिन अभी भाषा को लेकर कोई स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इतिहास पढ़ने पर पता चला है कि इस क्षेत्र में शेरशाह शूरी ने 308 कुएं एक ही साइज के बनवाए थे। मांदी में बना यह कुआं भी उनके काल का है। क्योंकि शेरशाह शूरी के बनवाए गए सभी कुएं चारनाल हैं और सभी का साइज व बनावट बिल्कुल एक जैसा है। इस कुएं की बनावट ठीक वैसी ही है, जैसी शेरशाह शूरी ने कुएं बनवाए हुए हैं। एडवोकेट राव रणबीर सिंह बताते हैं कि उनके पास और भी कई प्राचीन धरोहरों के प्रमाण मौजूद हैं। लेकिन कभी भी पुरातत्व विभाग ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने दैनिक जागरण को इन धरोहरों के फोटो व प्रमाण भी दिखाए।


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