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धोखाधड़ी के आरोपों में फंसे सैकड़ों जेबीटी ने लगाई करोड़ों की चपत

शिक्षा विभाग में 2010 व 2011 में भर्ती के दौरान धोखाधड़ी के आरोपों से घिरे प्रदेश के करीब 7 सौ जेबीटी शिक्षकों ने इसके बाद भी अधिकारियों से मिलीभगत कर विभाग को एक नया चूना लगा दिया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2020 06:57 PM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 07:49 PM (IST)
धोखाधड़ी के आरोपों में फंसे सैकड़ों जेबीटी ने लगाई करोड़ों की चपत

बलवान शर्मा, नारनौल:

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शिक्षा विभाग में 2010 व 2011 में भर्ती के दौरान धोखाधड़ी के आरोपों से घिरे प्रदेश के करीब 7 सौ जेबीटी ने इसके बाद भी अधिकारियों से मिलीभगत कर विभाग को नुकसान पहुंचाया है। इन जेबीटी का कारनामा कोई एक दो लाख रुपये का नहीं,बल्कि करोड़ों रुपये की चपत लगाने का है। इसका पर्दाफाश सामाजिक कार्यकर्ता राज्य बाल आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा ने आरटीआइ के माध्यम से किया है। उनको शिक्षा विभाग द्वारा दिए गए ब्योरे के मुताबिक प्रदेश में 2010-11 में हुई भर्ती में करीब एक हजार से अधिक जेबीटी अध्यापकों के अंगूठों के निशान नहीं मिले थे और उस समय इन शिक्षकों के खिलाफ पूरे प्रदेश में धोखाधड़ी के मामले में दर्ज करवाए गए थे। इन आरोपितों के खिलाफ फिलहाल पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में मामले विचाराधीन हैं। लेकिन इस बीच इन आरोपितों में से करीब 700 से अधिक जेबीटी ने पिछले दस साल के दौरान एलटीसी(चार साल में एक बार एक माह के वेतन के रूप में दिया जाने वाला यात्रा भत्ता) शिक्षा विभाग से हासिल कर लिया। तब से लेकर अभी तक ये अध्यापक 2 से 3 बार यह भत्ते ले चुके हैं। जाहिर है कि एक जेबीटी कम से कम 80 हजार से एक लाख रुपये तक का लाभ गैर कानूनी रूप से ले चुका है,जबकि असल में जिन शिक्षकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होते हैं तो वे विभाग से कोई भी वित्तीय लाभ लेने के पात्र नहीं होते हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में जेबीटी शिक्षकों को एलटीसी का लाभ कैसे दे दिया गया और इस घपले बाजी के पीछे कौन-कौन अधिकारी शामिल हैं, यह जांच का विषय है।

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क्या कहते हैं आरटीआइ कार्यकर्ता

सामाजिक कार्यकर्ता राज्य बाल आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा ने कहा कि नियमानुसार जिन शिक्षकों के खिलाफ एफआइआर दर्ज होती है तो वे किसी भी प्रकार के वित्तीय लाभ नहीं ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि आरटीआइ में मिली सूचना के मुताबिक 700 से ज्यादा ऐसे जेबीटी का रिकार्ड तो मिल चुका है। यह स्थिति तो तब है, जब आरटीआइ का पूरा जवाब नहीं दिया जा रहा है। यह संख्या 700 की बजाए एक हजार भी हो सकती है और इसमें निश्चित तौर पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर इस तरह का कोई घोटाला हो ही नहीं सकता है। इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए और गलत तरीके से करोड़ों रुपये खुर्द बुर्द करने पर अधिकारियों से रिकवरी की जानी चाहिए। क्योंकि ये जनता की मेहनत का पैसा है। ---------

इस तरह एलटीसी का लाभ देना बिल्कुल गलत है। लेकिन मैने अभी हाल ही में कार्यभार संभाला है और रिकार्ड देखकर ही बता पाऊंगा कि कितने शिक्षकों ने इस तरह का कोई फायदा लिया है या नहीं। एफआइआर दर्ज होने के बाद यदि कोई लाभ दिया गया है तो इसके लिए सबसे पहले डीडीओ(संबंधित स्कूल मुखिया) जिम्मेदार होता है। इसके बाद बीईओ या इनसे बड़े अधिकारी हस्ताक्षर करते हैं।

--विजेन्द्र श्योराण, डीईईओ,

महेंद्रगढ़।


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