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आजाद हिद फौज में लड़ाई लड़ने वाले गूगन सिंह छोड़ गये हैं यादें

आजाद हिद फौज में लड़ाई लड़ने वाले गुगन सिंह कई यादें छोड़ गये हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 05:01 PM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 05:01 PM (IST)
आजाद हिद फौज में लड़ाई लड़ने वाले गूगन सिंह छोड़ गये हैं यादें

संवाद सहयोगी, कनीना: आजाद हिद फौज में लड़ाई लड़ने वाले गुगन सिंह कई यादें छोड़ गये हैं। कई बार प्रशासन ने उन्हें सम्मानित किया था।

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गूगन सिंह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सेना में भर्ती होकर आजादी की लड़ाई में भाग लिया और देश के लिए नाम कमाया है। अपने देश की आजादी के लिए खुलकर लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों से लोहा लिया, जेल में गए और अनेकों यातनाएं झेली।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 1942 में आजाद हिद फौज की स्थापना की थी। इस फौज में करीब 43 हजार सैनिक थे। जब यह फौज गठित की गई तो भारतीय सैनिक आकर्षित हुए और जोश एवं जुनून के साथ नेताजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध में लड़े। स्याणा के गुगन सिंह सैनिक इसी फौज में भर्ती हुए थे।

गूगन सिंह की मौत हो गई है जिसको सुनकर सन्नाटा छाया है। उनकी उम्र 98 वर्ष थी। गांव स्याणा में जीवाराम के घर में सबसे छोटे बेटे का नाम गूगन सिंह था, जो आइएनए के सेनानी थे। 1940 में अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए और अंबाला कैंट में इनकी ट्रेनिग पूरी की गई। ट्रेनिग करते हुए पाकिस्तान के हैदराबाद में सेवा के लिए भेज दिया गया। तत्पश्चात उन्हें भारत के हैदराबाद भेजा गया। तत्पश्चात मुंबई भेजा और वहां से ईरान में भेज दिया गया।

हिटलर से मिलकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिद फौज का गठन किया, जिसमें भर्ती होकर उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लिया। बोस सेना का गठन करके जापान चले गए तो उन्होंने अन्य सैनिकों को संगठित किया। मगर जर्मनी की हार हो गई। तत्पश्चात इनको इंग्लैंड भेजा गया। इंग्लैंड जाकर वे बीमार हो गए। उन्हें वायुयान द्वारा हैदराबाद के अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। अस्पताल में इलाज के दौरान कोई सुधार नहीं हुआ तो उन्हें आसौदा(रोहतक) भेजा गया। वहां से उन्हें 25 रुपये देकर घर भेज दिया गया। मगर वे घर आने की बजाय दरियागंज दिल्ली में कांग्रेस के कार्यालय में चले गए या आजादी की लड़ाई में लड़ते रहने की सोच कर 1946 में कांग्रेस कार्यालय में गए थे, कितु उनके हालात में सुधार नहीं हुआ तो वे घर आ गए। देश आजाद होने के बाद 1957 में ये पूर्ण स्वस्थ हो गए और फिर से सेना में भर्ती हो गए। 1957 से 1974 तक इन्होंने देश की सेवा की तथा रिटायर हुए। तत्पश्चात वे अपने गांव आ गए और गांव में अपने परिजनों के साथ रहते थे। उनके तीन पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं।


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