रोजा व्रत ईश्वर के हाजिर-नाजिर होने प्रमाण
खुदा व्यक्ति के हर अच्छे बुरे-कर्म को देख रहा। एक रोजेदार को दिल व दिमाग में यह बात अच्छी तरह होनी चाहिए।
जब एक रोजेदार रोजे हालत में होता है, तो वह सुबह से लेकर शाम तक दिन में कुछ भी नहीं खाता-पीता है। अगर वह चाहे, तो एकांतवास बंद कमरे में कुछ भी खा-पी सकता है। उसे बंद कमरे में कौन देख रहा है? लेकिन उसके दिल में यह बात अच्छी तरह होती है कि कोई देख रहा हो या न देख रहा हो, उसका खुदा उसे देख रहा है। इसी अमल को तकवा (ईश्वर का डर) कहते हैं कि कोई आपको देखें या न देखें, लेकिन खुदा आपके हर अच्छे बुरे-कर्म को देख रहा। आप जब भी कोई गलत काम करें, जैसे चोरी, कम तौलना व व्यभिचार आदि, तो आपके दिल व दिमाग में यह बात अच्छी तरह होनी चाहिए कि कोई देख रहा हो या न देख रहा हो, लेकिन मेरे इस गलत हरकत को मेरा खुदा देख रहा है और आप खुदा के डर से उस गलत काम बच गए। यही रोजे का मकसद है कि खुदा के डर से आप कोई भी गलत काम करने से फौरन रूक जाएं। इस्लाम धर्म की तीन बुनियादी आस्थाएं हैं। इनमें तौहीद (एकेश्वरवाद), रिसालत (ईशदूत्व) और आखिरत (परलोक में मरने के बाद मनुष्य दोबारा जिदा होंगे, उनके अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब होगा)। रोजे के जरिए परलोक में खुदा के सामने प्रस्तुत होने का अहसास होता है। एक दिन मरना है और मैं अगर गलत कार्य करता हूं, तो परलोक (मरने के बाद की जिदगी) कयामत के दिन खुदा मेरे अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब लेगा। जिसने अच्छे कर्म किए, उसको स्वर्ग में दाखिल कर दिया जाएगा और बुरे कर्म करने वाले को नर्क की आग में जलाया जाएगा।
- मोहम्मद हनीफ गोरवाल, इमाम, जामा मस्जिद, नारनौल।