Move to Jagran APP

प्रदूषण की मार से बाबा रामदेव का गांव भी अछूता नहीं

संवाद सहयोगी, नांगल चौधरी : गंगूताना  जोन में टायर तेल फैक्ट्रियों के धुएं से योग गुरु बाबा रामदेव का गांव भी प्रभावित।

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 04:55 PM (IST)Updated: Wed, 12 Dec 2018 04:55 PM (IST)
प्रदूषण की मार से बाबा रामदेव का गांव भी अछूता नहीं
प्रदूषण की मार से बाबा रामदेव का गांव भी अछूता नहीं

संवाद सहयोगी, नांगल चौधरी : गंगूताना  जोन में टायर तेल फैक्ट्रियों के धुएं से योग गुरु बाबा रामदेव के गांव सैद अलीपुर की आबोहवा तेजी से प्रदूषित हो रही है। सरपंच से लेकर ग्रामीण इन पर अंकुश के लिए जिला प्रशासन तक कई बार प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उन्हें आज तक फैक्ट्रियों के प्रदूषित धुएं से निजात नहीं मिल पाई है। नतीजन  जहरीला धुआं निगलने से बचपन असाध्य बीमारियों की भेंट चढ़ रहा है। ग्रामीणों में भी श्वास संबंधी तकलीफें बढ़ रही है। तेल फैक्ट्रियों के साथ स्थापित क्रशरों  की डस्ट भी हवा के साथ गांव तक पहुंच रही है। स्वास, खांसी, खुजली, टीबी  व चर्म रोग आदि बीमारियों से ग्रामीण रोगग्रस्त होने लगे हैं। विशेषकर बुजुर्ग खांस-खांस कर रात गुजारने को मजबूर हैं।

loksabha election banner

यूं निकालते हैं टायरों का तेल :

सैद अलीपुर गांव के नजदीक गंगूताना  की सीमा में कंडम  टायरों से तेल निकालने वाली फैक्ट्री स्थापित है। फैक्ट्रियों में प्रतिदिन भारी मात्रा में तेल निकाला जाता है। तेल निकालने के लिए पहले टायर के टुकड़े किए जाते हैं। बाद में बायलर की तरह लगी बड़ी-बड़ी भठ्ठियों में इनको उच्च ताप पर जलाया जाता है। इसके बाद मशीन से एक तरफ काला द्रव निकलता है तो दूसरी ओर टायर का जला हुआ बुरादा बाहर आता है। टायरों से निकलने वाला काले रंग का तेल व टायर बुरादा दोनों ही कीमती होते हैं।

यहां होता है उपयोग :

टायरों से निकलने वाले तेल की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में मांग होती है। बड़े उद्योगों में टायर तेल का प्रयोग भठ्ठी जलाने में किया जाता है। इसका सबसे अधिक उपयोग लोहे उद्योग में लोहे को गलाने में किया जाता है। वहीं टायर तेल के बाद शेष बचा बुरादा सीमेंट फैक्ट्रियों में चला जाता है। जहां इसका प्रयोग सीमेंट बनाने में प्रयुक्त किया जाता है।

कागजों में खरे, हकीकत में परे :

नांगल चौधरी क्षेत्र में चलने वाली टायर फैक्ट्रियां कागजों में तो खरी हैं, लेकिन हकीकत में प्रदूषण विभाग के एक भी नियम पर खरा नहीं उतर पा रही है। खुले में चलने वाली भठ्ठियों से दिनभर धुएं का गुबार उठता रहता है। चिमनियों का धुआं भी हवा के साथ घनी आबादी में जाकर बीमारियां बांट रहा है। इसका पता फैक्ट्रियों के अंदर काम करने वाले मजदूरों की दशा और उनके लिए उपलब्ध सुविधा को देखकर भी आसानी से लगाया जा सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.