यज्ञ सबसे पुरानी पूजा पद्धति : स्वामी मुक्तानंद
ज्योतिसर स्थित श्री गीता कुंज आश्रम बद्रीनारायण मंदिर में चतुर्मास के अवसर पर चल रहे गायत्री महायज्ञ में दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं व सभी देवी-देवताओं की पूजा- अर्चना की।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : ज्योतिसर स्थित श्री गीता कुंज आश्रम बद्रीनारायण मंदिर में चतुर्मास के अवसर पर चल रहे गायत्री महायज्ञ में दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं व सभी देवी-देवताओं की पूजा- अर्चना की। स्वामी मुक्तानंद महाराज मौन व्रत धारण किए हुए हैं। स्वामी मुक्तानंद महाराज ने लिखित रूप में संदेश देते हुए यज्ञ की महिमा बताई। उन्होंने कहा कि जब सारे जप-तप निष्फल हो जाते हैं तब यज्ञ ही सब प्रकार से रक्षा करता है। सृष्टि के आदिकाल से प्रचलित यज्ञ सबसे पुरानी पूजा पद्धति है। आज आवश्यकता है यज्ञ को समझने की। वेदों में अग्नि परमेश्वर के रूप में वंदनीय है। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म माना गया है। समस्त भुवन का नाभि केंद्र यज्ञ ही है। यज्ञ की किरणों के माध्यम से संपूर्ण वातावरण पवित्र व देवगम बनता है। यज्ञ भगवान विष्णु का ही अपना स्वरूप है। भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन जो यज्ञ नहीं करते हैं उनको परलोक तो दूर यह लोक भी प्राप्त नहीं होता है। जिन्हें स्वर्ग की कामना हो जिन्हें जीवन में आगे बढ़ने की आकांक्षा हो उन्हें यज्ञ अवश्य करना चाहिए। उन्होंने बताया कि यज्ञ कुंड से अग्नि की उठती हुई लपटें जीवन में ऊंचाई की तरह उठने की प्रेरणा देती हैं। यज्ञ में मुख्यत: अग्नि देव की पूजा का महत्व होता है। यज्ञ करने वाले बड़भागी होते हैं। इस लोक में उनका दुख-दरिद्र तो मिटता ही है साथ ही परलोक में भी सद्गति की प्राप्ति होती है। यज्ञ में जलने वाली समिधा समस्त वातावरण को प्रदूषण मुक्त करती है। यज्ञवेदी पर गूंजने वाली वैदिक ऋचाओं का अद्भुत प्रभाव होता हैं। यज्ञ में बोले जाने वाले मंत्र व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इस मौके पर आचार्य योगेंद्र केष्टवाल व आचार्य द्वारिका मिश्र की ओर से विधिवत रूप से वेद मंत्रों का उच्चारण किया गया।