संवेदनशीलता के साथ होगा अच्छे समाज का निर्माण : रणजीत चौहान
देश के कर्णधारों में संस्कारों के संचार के लिए चलाई गई दैनिक जागरण की मुहिम संस्कारशाला के तहत बुधवार को मथाना गांव स्थित एचसी मेमोरियल स्कूल में कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : देश के कर्णधारों में संस्कारों के संचार के लिए चलाई गई दैनिक जागरण की मुहिम संस्कारशाला के तहत बुधवार को मथाना गांव स्थित एचसी मेमोरियल स्कूल में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थी और शिक्षक शामिल हुए।
स्कूल के निदेशक रणजीत चौहान ने बताया कि समाज में बदलाव के लिए संवेदनशीलता का होना जरूरी है। हमें अपने आसपास के लोगों और यहां तक की पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। तभी हम समाज को सही दिशा दे सकेंगे। बच्चों को चाहिए कि वह दूसरों की हमेशा सहायता करने का प्रयास करें। अगर सभी लोग एक दूसरे की सहायता करेंगे तो किसी को भी कोई परेशानी नहीं होगी।
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लोगों के पास अपने के लिए समय नहीं : डॉ. चौहान
प्राचार्या डॉ. रेखा चौहान ने कहा कि भाग-दौड़ भरी ¨जदगी में लोगों के पास अपने के लिए ही समय नहीं है। वृद्ध आश्रम में बुजुर्गो की संख्या बढ़ रही है। बच्चों का दादा-दादी और नाना-नानी से संपर्क कम होता जा रहा है। कई बार हादसों के बाद पीड़ित को त्वरित उपचार नहीं मिल पाता। सड़क किनारे पड़े घायल को देखकर लोग मुंह फेरकर निकल जाते हैं। इससे सामाजिक तानाबाना टूट रहा है। बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों को इस दिशा में सकारात्मक होने की जरूरत है। फोटो संख्या- 16
दादा-दादी की कहानियों से अछूते हैं बच्चे : ललिता चौहान
शिक्षिका ललिता चौहान ने कहा कि इस भौतिकवादी युग में समस्त परिवार मोबाइल तथा टीवी में लगा रहता है तथा स्वयं माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं है। बच्चे दादा-दादी व नाना-नानी के किस्सों और कहानियों से अछूते रह जाते हैं। दरअसल इसकी मुख्य वजह एकल परिवार हैं। संयुक्त परिवार दूर तक दिखाई नहीं देते, जिससे बच्चों में अपने बुजुर्गो के प्रति संवेदनाएं कम होती जा रही हैं। शिक्षक संवेदनाओं को पुनर्जीवित कर सकता है। बालक के अंदर संवेदनाओं का होना बहुत अनिवार्य है। फोटो संख्या- 17
बोएंगे बीज तभी उगेगी फसल : कविता
शिक्षिका कविता कादियान ने कहा कि अगर आप भविष्य में सफलता की फसल काटना चाहते हैं, तो आपको उसके लिए बीज आज बोने होंगे। अगर आप आज बीज नहीं बोएंगे तो भविष्य में फसल काटने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। कई बार ऐसी स्थिति सामने आ जाती है जब मनुष्य गलत कर बैठता है। दूसरे की संवेदनाआओं का अहसास काफी देरी से होता है। केवल अपने लिए जीने की प्रवृत्ति को सदियों से पशु प्रवृत्ति माना गया है और एक दूसरे के साथ जीने को ही मनुष्यता का नाम दिया गया है। आज के दौर में सिमटते परिवारों ने कहीं न कहीं बच्चों की मानसिकता पर असर डाला है। बच्चे अब एकजुटता में भरोसा नहीं करते। वे जो बड़ों को करते हुए देखते हैं वही स्वयं भी अपनाते हैं।
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अपने आसपास के लोगों के बारे में भी जानें : गुरजीत
गुरजीत कौर ने कहा कि हमें पशु-पक्षियों के साथ ही अपने आसपास के लोगों के बारे में भी जानना चाहिए, ताकि हम किसी को बेवजह परेशान न करें। इससे आगे चलकर समाज को सही दिशा प्राप्त होगी। फोटो संख्या- 19
बड़ों का सम्मान जरूरी : राशि
छात्रा राशि का मनाना था कि कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि अपने बड़ों की बाते जरूर माननी चाहिए। साथ ही बड़ों को भी बच्चों को पशु प्रेम और अन्य सही कार्यों के बारे में पूरी जानकारी देकर उनका साथ देने का प्रयास करना चाहिए। फोटो संख्या- 20
कहानियों से मिलती सीख :
मन्नत
छात्रा मन्नत ने कहा कि आधुनिक समय में टीवी और मोबाइल को छोड़कर अपने दादा-दादी को भी समय देना चाहिए। उनसे हमें सही अर्थों में जीवनोपयोगी जानकारी प्राप्त होती हैं। अगर हम अपने परिजनों के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं तो दूसरों के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए। फोटो संख्या- 21
ताकि बना रहे प्रकृतिक संतुलन : कोमल
छात्रा कोमल ने कहा कि हमारे दादा-दादी और नाना-नानी द्वारा प्रतिदिन पशु-पक्षियों के लिए किए जाने वाले कार्यों से भी सीख लेनी चाहिए कि वे किस प्रकार पशु-पक्षियों के लिए भी समय निकालते हैं और उनके प्रति सेवाभाव रखते हैं। उससे प्रकृति का संतुलन बना रहता है। फोटो संख्या- 22
बड़ों का सहयोग जरूरी : नितेश
छात्र नितेश का मना था कि अच्छे कार्यो के लिए भी अपने बड़ों का सहयोग और राय लेना जरूरी है। कहानी में आरुषी ने गिलहरी के बच्चे को बचाने के लिए अपने माता-पिता से बात की तो उन्होंने उसे सही स्थान पर डॉक्टर को दिखाया। अगर दोनों बच्चे अपने आप ऐसा करते तो यह संभव नहीं हो पाता और वे उसे पेड़ पर छोड़ देते उसे कुत्ता या फिर कौवा खा जाता।
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परिजनों का ध्यान रखना जरूरी :ध्रुव
छात्र ध्रुव ने कहा कि अपने परिजनों का भी ख्याल रखना जरूरी है। बच्चों को हमेशा अपने बुजुर्गों के पास रहना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए। रिया ने कहानी में अपनी गलती मानी और कहा कि वह हमेशा मोबाइल से चिपकी रहती है जिस बारे में उनकी दादी उसे टोकती है। अब में ऐसा नहीं करूंगी। कहानी में रिया ने माफी मांगी।