कदम-कदम पर हक की जंड लड़ रहे शहीद पिदरपाल के पिता
पंकज आत्रेय कुरुक्षेत्र मैंनू उस वक्त सरकार ते बड़ा गुस्सा आया। मेरा बच्चा देश की सुरक्षा करदे शहीद हो गया तो साड्डे हलके दे मंत्री कंहदे फौजी तां रोज ही मरदे रहंदे ने।
पंकज आत्रेय, कुरुक्षेत्र : मैंनू उस वक्त सरकार ते बड़ा गुस्सा आया। मेरा बच्चा देश की सुरक्षा करदे शहीद हो गया तो साड्डे हलके दे मंत्री कंहदे फौजी तां रोज ही मरदे रहंदे ने। किसी ने दस्या के पिदरपाल दे तेरवें तक मंत्री जी आ नी सकदे, उन्नां दा बेटा औणगा। कलासो वी जदों एमपी सी। पर कोई नी आया। हुण रसोई गैस दी सब्सिडी वी नीं मौड़ रहे। दो साल तौं धक्के खा रयां हां। किन्नी वारी लिख के वी दे लया। इक दिन फोन उत्ते गलती नाल कोई बटण दब गया सी। उसतो बाद सब्सिडी औणी बंद हो गई। दूजी ओर शहीदां के परिवार वाल्यां नूं गैस एजेंसियां वी दे रे ने। मेरी सब्सिडी वी नी मौड़ रहे।
यह सब कहते हुए 21 मार्च 2003 में उल्फा आतंकियों से लड़ते शहीद हुए गांव धीरपुर के सैनिक पिदरपाल सिंह के पिता सुखविद्र सिंह की आंखें डबडबा गईं। उनके चेहरे पर एक लाचारी-सी तो थी ही प्रदेश के नेताओं के प्रति गुस्सा भी खूब था। आज होली है और 16 साल पहले वर्ष 2003 में होली के ठीक तीन दिन बाद उनके 21 वर्षीय बेटे पिदरपाल सिंह ने वीरगति प्राप्त की थी। सुखविद्र सिंह कहते हैं, हुण मोदी पहले आदमी ने, जिन्हांने शहीदां ते पैर छुए। उन्नां तो बाद तुसी खुद वेख ल्यो सारे इंज करण लग पये ने। मोदी ने सैनिकां ते शहीदां दा मान वधाया है।
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दो हजार का चालान काटा 65 वर्षीय बुजुर्ग सुखविद्र सिंह ने बताया कि वह और उनका बड़ा बेटा ऑटो रिक्शा चलाकर गुजर-बसर कर रहे थे। पिदरपाल सिंह की शहादत के दो माह बाद वे घर से आ रहे थे। तब चौटाला की सरकार थी। रास्ते में आरटीओ वालों ने रोक दोनों का दो हजार रुपये का चालान कर दिया। उन्होंने बड़ी मिन्नतें की, लेकिन चालान भरकर उन्हें आरटीओ दफ्तर में बुलाया गया। चालान माफ कराने के लिए वे यहां के तत्कालीन मंत्री से मिलने उनके घर गए, लेकिन वे बाहर तक नहीं निकले। उन्हें दो हजार रुपये का चालान भुगतना पड़ा। बॉक्स
बेटे की पूरी पेंशन के लिए लड़ी लड़ाई सुखविद्र सिंह ने बताया, पिदरपाल की पेंशन की राशि दूसरे शहीदों से कम आ रही थी। साथ के गांव के एक शहीद के पिता ने बताया कि उन्हें 29 हजार रुपये पेंशन मिलती है, लेकिन पिदरपाल की 20 हजार थी। इसके लिए वे जिला सैनिक बोर्ड में गए, लेकिन वहां बताया गया कि पिदरपाल की सेवा की अवधि कम थी। इसलिए पेंशन भी कम मिलेगी। फिर कोर्ट में काम कर रहे एक रिटायर्ड सूबेदार से उन्होंने बात की उन्होंने पेंशन के लिए लड़ाई में उनका साथ दिया और दो माह पहले ही पौने आठ लाख रुपये एरियर मिला।