पटियाला जूती और लकड़ी के ज्वैलरी बॉक्स का क्रेज
पटियाला के तोपखाना में बनने वाली जूती की धाक 15 से ज्यादा देशों में है।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र :
पटियाला के तोपखाना में बनने वाली जूती की धाक 15 से ज्यादा देशों में है। यही जूतियां अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के शिल्प मेले में भी पहुंची हैं। विदेशों में जूती की सप्लाई करने के लिए स्पेशल टीम लगाई है और इन जूतियों को हाथों से बनाया जा रहा है। इन जूतियों को सुंदर बनाने के लिए रेशम की कढ़ाई और जरी का काम किया जाता है। जूतियों के निर्माता और शिल्पकार नंदलाल पिछले आठ सालों से महोत्सव में आने वाले पर्यटकों की डिमांड को पूरा करने का काम कर रहे हैं। नंदलाल ने बताया कि पटियाला के तोपखाना में कई पीढि़यों से उनके परिवार के सदस्य जूती बनाने का काम कर रहे हैं। इसे पटियाला जूती के नाम से भारत में ही नहीं 15 से ज्यादा देशों में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है। इस महोत्सव में 200 रुपये से लेकर 450 रुपये तक की जूती पर्यटकों के लिए लेकर आए हैं। हालांकि वह 2500 रुपये तक की जूती तैयार करते हैं। उन्होंने कहा कि देश के हर मेले में पंजाबी जूती के कद्रदान हैं, इसके अलावा चीन, साउथ अफ्रीका, वेस्टइंडीज, मलेशिया, सिगापुर, थाईलैंड, मारीशस, हॉलैंड, पोलैंड, दुबई, बंग्लादेश, आबूदाबी सहित अन्य देशों में भी पटियाला जूती भेजी जा रही है। यह जूती हाथ से बनाई जाती है और रेशम के धागे और जरी से इस पर कढ़ाई की जाती है। गीता महोत्सव में भी पंजाबी जूती की अच्छी बिक्री हो जाती है। सोलोवुड से बनी दुर्गा की प्रतिमा की रूस और बांग्लादेश में धाक फोटो संख्या : 24
कुरुक्षेत्र : पश्चिमी बंगाल की विशेष सोलावुड (लकड़ी) से बनी दुर्गा मां की प्रतिमा को रूस और बंग्लादेश में पूजा जाता है। इस सोलावुड को बहुत पवित्र माना जाता है इसलिए इस लकड़ी से बनी मूर्ति को श्रद्धा से पूजा जाता है। दुर्गा मां की प्रतिमा को सोलावुड की लकड़ी को हाथों से तराश कर ही तैयार किया जाता है। शिल्पकार कृष्णा और उनकी धर्मपत्नी तपोशी पाल महोत्सव में दुर्गा मां की अलग-अलग आकार की प्रतिमाएं लेकर पहुंचे हैं। इन प्रतिमाओं को महोत्सव में आने वाले पर्यटक भी श्रद्धा और चाव के साथ खरीद रहे हैं। इस सोलावुड से तैयार की गई दुर्गा मां की प्रतिमाएं देश के हर मेले में पर्यटकों को पसंद आती हैं। इतना ही नहीं रूस और बंग्लादेश में भी दुर्गा मां की प्रतिमाओं की काफी डिमांड रहती है। इस महोत्सव में बच्चों के खेलने और घर के सजावट के लिए टैराकोटा से बने खिलौने भी यहां के पर्यटकों की खास पसंद हैं। इन पर्यटकों की पसंद को पूरा करने के लिए खेत खलिहानों में काम करने वाले ग्रामीण परिवेश में काम करने वालों की छोटी-छोटी प्रतिमाएं भी तैयार की गई हैं। उन्होंने कहा कि 12 सालों से गीता महोत्सव में पर्यटकों की पसंद को पूरा करने के लिए ब्रह्मसरोवर पर पहुंच रहे हैं। ज्वैलरी बॉक्स बना महिलाओं की पहली पसंद
फोटो संख्या : 25
कुरुक्षेत्र : उत्तर प्रदेश के हाथरस गांव में प्रत्येक परिवार लकड़ी और लाख से ज्वैलरी बॉक्स तैयार कर शिल्पकला के काम में जुटा है। इस गांव में हस्त शिल्पकला को संरक्षण देने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के प्रतीक ज्वैलरी बॉक्स को भी बचा कर रखा है। इस विशेष लकड़ी और लाख के बने बॉक्स पहली बार अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पहुंचे हैं। हाथरस से आए शिल्पी गौरव ने अपने स्टाल पर पर्यटकों के लिए विशेष ज्वैलरी बाक्स सजाए हैं। इस बाक्स का साईज तीन गुणा पांच इंच से लेकर 10 गुणा 17 इंच तक का है। हालांकि उन्होंने अपने जीवन में 10 गुणा 18 फुट का बड़ा ज्वैलरी बॉक्स भी तैयार किया है जो हर मेले में अपनी एक अलग पहचान बनाता है। इस मेले में वह छोटे बाक्स ही लेकर आए हैं। वह महोत्सव में पहली बार पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि ज्वैलरी बॉक्स तैयार करने में लकड़ी का प्रयोग किया जाता है, यह लकड़ी भी हाथ से काटकर बाक्स की शेप में लाई जाती है। एक बाक्स को तैयार करने में चार से पांच दिन लगते हैं और इसपर चार से पांच लोग कार्य करते हैं। पिछले तीन सालों से वे इस शिल्पकला के साथ जुडे़ हैं और इस महोत्सव में ज्वैलरी बॉक्स की कीमत 150 रुपये से लेकर 2500 रुपये तक तय की है। इस शिल्पकला के साथ उनका परिवार ही नहीं पूरा हाथरस गांव जुड़ा है।