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बायो-डी-कंपोजर के छिड़काव से धान अवशेषों का खेत में ही होगा समाधान : वर्मा

प्रदेश सरकार पराली और धान के अवशेष न जलाने के लिए किसानों को जागरूक कर रही है। सरकार धान के अवशेष से एथनॉल बनाने की योजना तैयार कर रही है, जबकि कृषि विभाग की ओर से नए कृषि यंत्र भी ईजाद किए गए हैं, जो पराली व धान अवशेषों का समाधान करने में कारगर सिद्ध हो रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 01:53 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 01:53 AM (IST)
बायो-डी-कंपोजर के छिड़काव से धान अवशेषों का खेत में ही होगा समाधान : वर्मा

प्रदेश सरकार पराली और धान के अवशेष न जलाने के लिए किसानों को जागरूक कर रही है। सरकार धान के अवशेष से एथनॉल बनाने की योजना तैयार कर रही है, जबकि कृषि विभाग की ओर से नए कृषि यंत्र भी ईजाद किए गए हैं, जो पराली व धान अवशेषों का समाधान करने में कारगर सिद्ध हो रहे हैं। इफको की ओर से भी धान के अवशेष को समुचित उपयोग करने कदम उठाए जा रहे हैं, ताकि पर्यावरण स्वच्छ रह सके। साप्ताहिक साक्षात्कार के दौरान इफको के राज्य विपणन प्रबंधक डॉ. पुष्पेंद्र वर्मा ने दैनिक जागरण संवाददाता विनीश गौड़ से बातचीत के दौरान बताया कि इफको की ओर से बायो-डी-कंपोजर बैक्टीरिया ईजाद किया है। उसके छिड़काव से 25 से 30 दिनों में धान के अवशेष स्वत: ही धरती में मिल जाते हैं। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश :

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किसान हित में इफको की ओर से क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

इफको की ओर से किसानों को नई तकनीक से खेती करने के किसान संगोष्ठियों गुर सिखाए जाते हैं, ताकि किसान नई तकनीक से खेती कर अपनी आमदन को बढ़ा सकें। इफको की ओर से गांव में प्रशिक्षण शिविर से लेकर तकनीकी कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं, किसानों को खेतों में इजाद की गई नई तकनीकों से अवगत कराया जाता है। किसानों को आधुनिक खेती के साथ जोड़ने के लिए इफको क्या कार्य कर रही है?

इफको का उत्तर प्रदेश में प्रशिक्षण केंद्र हैं, जिसमें पूरे देश से किसानों को एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें फसल उत्पादन से लेकर ग्रीन हाउस, मधुमक्खी पालन, पशुपालन सहित अन्य प्रशिक्षण दिए जाते हैं। इफको की ओर से किसानों को कौन-कौन से फसल बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं?

किसानों को इफको की ओर से सबसिडी पर सरसों, मूंग, जो व गेहूं का बीज उपलब्ध कराया जाता है। गेहूं की ज्यादा डिमांड रहती है। इफको की ओर से उपलब्ध कराया गया बीज पूर्ण रूप से प्रमाणिक होता है। पूरे प्रदेश में खाद की कितनी खपत है?

पूरे प्रदेश में छह लाख टन खाद इफको की ओर से सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को उपलब्ध को कराया जाता है। इसमें साढ़े चार लाख टन खाद यूरिया और डेढ़ लाख टन डीएपी शामिल है। प्रदेश में कितनी प्रतिशत भूमि में पोटाश की कमी है?

प्रदेश में भूमि में 50 से 60 प्रतिशत पोटाश की कमी है। इसका कारण असंतुलित खाद का प्रयोग है। किसान केवल नाइट्रोजन और फारफोरस पर ज्यादा जोर देता है। पोटाश की मात्रा बनाए रखने के लिए किसानों को ढैंचा, मूंग और अन्य फसलों की समय-समय पर बुलाई करनी चाहिए। आर्गेनिक खाद को लेकर क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

इफको की ओर से सागरिका खाद तैयार की गई है, जो पूरी तरह आर्गेनिक है। इसके प्रयोग से धरती में जीवाश्म की मात्रा बढ़ती है। किसानों को इफको के सहकारी केंद्रों पर यह खाद मुहैया कराई जा रही है। किसानों को तकनीक के साथ जोड़ने के लिए क्या कार्य किए जा रहे हैं?

इफको की ओर से प्रदेश भर में 21 गांवों को गोद लिया हुआ है। इन गांवों में कृषि से लेकर सामाजिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। इनमें किसान संगोष्ठी, कार्यशाला और तकनीक डेमो शामिल है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए पौधरोपण, जागरूकता अभियान से लेकर स्वच्छता अभियान भी चलाया जाता है। बायो-डी-कंपोजर किस तरह करेगा काम?

बायो-डी-कंपोजर की कीमत मात्र 30 से 50 रुपये निर्धारित की है। 200 लीटर पानी के घोल में धान के अवशेषों को पूरे खेत में बिछाकर छिड़काव करने से 25 से 30 दिन में अवशेष स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे। बायो-डी-कंपोजर के छिड़काव से न केवल किसानों को महंगे यंत्रों से छुटकारा मिलेगा, बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित भी नहीं होगा। इफको सहकारी केंद्रों के माध्यम से यह बैक्टीरिया किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा।


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