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कारगिल युद्ध के बाद एक महीने की छुट्टी लेकर आने का वायदा कर गया था शहीद संजीव

कारगिल युद्ध में शहीद संजीव जब रामगढ़ रेजीमेंट से ट्रेनिग के बाद एक रात के लिए अपने गांव कौलापुर आया तो घर में उसकी शादी की बातें चलने लगी थी। संजीव ने अपनी मां पार्वती और पिता रणजीत को कहा कि वह इस समय देश की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में जा रहा है। युद्ध जीतने के बाद ही वह शादी के बारे में सोचेगा लेकिन पहले अपनी बहनों की शादी करेगा। वह युद्ध के बाद एक महीने की छुट्टी लेकर आएगा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 06:17 AM (IST)
कारगिल युद्ध के बाद एक महीने की छुट्टी लेकर आने का वायदा कर गया था शहीद संजीव
कारगिल युद्ध के बाद एक महीने की छुट्टी लेकर आने का वायदा कर गया था शहीद संजीव

बाबूराम तुषार, पिपली : कारगिल युद्ध में शहीद संजीव जब रामगढ़ रेजीमेंट से ट्रेनिग के बाद एक रात के लिए अपने गांव कौलापुर आया तो घर में उसकी शादी की बातें चलने लगी थी। संजीव ने अपनी मां पार्वती और पिता रणजीत को कहा कि वह इस समय देश की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में जा रहा है। युद्ध जीतने के बाद ही वह शादी के बारे में सोचेगा, लेकिन पहले अपनी बहनों की शादी करेगा। वह युद्ध के बाद एक महीने की छुट्टी लेकर आएगा।

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इतना कुछ कहते ही पिता रणजीत सिंह की आंखें आज भी नम हो रही हैं। उन्होंने कहा कि संजीव इसके बाद घर नहीं लौटा, बल्कि तिरंगा में लिपटा हुआ आया। उन्हें अपने बेटे की शहादत पर गर्व है।

रणजीत सिंह बताते हैं कि उनका बेटा होनहार था और उसमें देशभावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। देश के प्रति जज्बा को देखते हुए संजीव ने बचपन से ही सेना में जाने का निर्णय लिया था।

शहीद संजीव के पिता रणजीत सिंह ने बताया कि संजीव का जन्म 10 अप्रैल 1979 को हुआ था। गांव की मिट्टी में खेलकूद कर बड़ा हुआ और अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही ली। कुरुक्षेत्र के सीनियर हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद बीए की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर 24 फरवरी 1998 को भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट में भर्ती हो गया।

सेना में प्रशिक्षण लेने के उपरांत द्रास सेक्टर में तैनाती की गई। वह कारगिल युद्ध में कई दिनों तक दुश्मनों के दांत खट्टे करता रहा और चार घुसपैठियों को मार गिराया। वह गोली लगने से घायल हो गया, लेकिन दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने दिया। उसने आखिरी समय में भी एक घुसपैठिये को मार गिराया।

बचपन से ही था बंदूक चलाने का शौक

मां पार्वती देवी बताती हैं कि संजीव को बचपन से ही बंदूक चलाने का शौक था। यही शौक उसे सेना में ले गया। उसके बेटे संजीव की यादें आज भी जिदा हैं। वे अपने लाडले की शहादत को कभी भूला नहीं सकते। शहीद संजीव की बहनों को अपने इकलौते भाई पर नाज है। उसने 19 वर्ष की आयु में ही अपने प्राण देश के लिए न्यौछावर कर दिए थे। बहनें हर वर्ष रक्षाबंधन व भैयादूज पर अपने भाई की प्रतिमा पर राखी बांध कर उन्हें याद करती हैं।


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