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इंटरनेट मीडिया के आने पर हाशिये पर चला गया साहित्य : मंगल

सेवानिवृत्त प्रोफेसर साहित्यकार लाल चंद गुप्त मंगल ने कहा कि साहित्य लेखन एक सतत साधना है। इसमें निरंतर साधना की आवश्यकता होती है। साहित्य लेखन में जहां प्रतिभा अनिवार्य है वहीं सहृदयता व संवेदनशीलता भी अपरिहार्य होती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 06:26 AM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 06:26 AM (IST)
इंटरनेट मीडिया के आने पर हाशिये पर चला गया साहित्य : मंगल
इंटरनेट मीडिया के आने पर हाशिये पर चला गया साहित्य : मंगल

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : सेवानिवृत्त प्रोफेसर साहित्यकार लाल चंद गुप्त मंगल ने कहा कि साहित्य लेखन एक सतत साधना है। इसमें निरंतर साधना की आवश्यकता होती है। साहित्य लेखन में जहां प्रतिभा अनिवार्य है वहीं सहृदयता व संवेदनशीलता भी अपरिहार्य होती है। आपकी संवेदनशीलता ही आपकी अनुभूति को व्यापकता प्रदान करके उसे अभिव्यक्ति के स्तर पर लाती है। साहित्य की पगडंडी पर चलने के लिए मार्गदर्शन का होना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट मीडिया के आने से साहित्य हाशिये पर चला गया है। वर्तमान साहित्य अंतरराष्ट्रीय संदर्भों सैकड़ों आम आदमी तक पहुंच जाती है, यही आम आदमी के साथ-साथ रचनाकार के मानस को भी प्रभावित करती है। हर व्यक्ति उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। साहित्यकार संवदेनशील होता है इसलिए वो अपने विचार, उनके समाधान भी प्रस्तुत करता है। लेकिन शब्द की सत्यता हमेशा थी, हमेशा है और हमेशा रहेगी। इंटरनेट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया तत्काल तो प्रभावित करता है लेकिन जीवन के जो स्थाई मूल्य है, स्थान मान हैं, स्थाई सिद्धांत हैं वो आपको पुस्तकों के माध्यमों से और सत साहित्यों के माध्यम से ही मिलेंगे। साहित्य वही कहलाएगा जो सामाजिक सरोकारों को लेकर चलेगा, सामाजिक उत्थान की बात करेगा, आम आदमी की बात करेगा। समाज में सद्भाव और सहभाव रहे इसकी बात करेगा। सत साहित्य ही सही अर्थों में साहित्य है। उनके 50 सालों से लेखन के कार्य में लगे होने पर उन्हें प्रदेश सरकार की ओर से पंडित माधव प्रसाद मिश्र आजीवन साहित्य साधना सम्मान के तहत वर्ष 2019 की साहित्यकार की सूची के अंतर्गत चयनित किया गया है। सेवानिवृत्त होने के बाद भी 15 सालों में उनकी 10 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

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