निर्णायक भूमिका में रहेगा इनेलो का छिटका वोट बैंक
कुरुक्षेत्र जिला की चारों विधानसभा सीटों पर इनेलो का अच्छा खासा दबदबा रहा है। पिछले कई चुनावों में चारों विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी ने या तो जीत दर्ज करवाई है या दूसरे नंबर पर रही है। पिहोवा में तो इनेलो ने साल 2014 में भाजपा की लहर के बावजूद जीत दर्ज करवाई थी और शाहाबाद में पार्टी मात्र 562 वोट से पिछड़ी थी।
विनोद चौधरी, कुरुक्षेत्र: कुरुक्षेत्र जिला की चारों विधानसभा सीटों पर इनेलो का अच्छा खासा दबदबा रहा है। पिछले कई चुनावों में चारों विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी ने या तो जीत दर्ज करवाई है या दूसरे नंबर पर रही है। पिहोवा में तो इनेलो ने साल 2014 में भाजपा की लहर के बावजूद जीत दर्ज करवाई थी और शाहाबाद में पार्टी मात्र 562 वोट से पिछड़ी थी। थानेसर और लाडवा में भी इनेलो पार्टी के प्रत्याशी ही दूसरे नंबर पर रहे थे। लेकिन ताजा हालातों में इनेलो पार्टी में दरार के बाद से हालात बदले हुए हैं। लाडवा को छोड़कर बाकी तीनों विधानसभा क्षेत्रों से इनेलो के प्रत्याशी रहे दावेदारों ने पार्टी को अलविदा कह दिया है। पार्टी में आई इस दरार से इनमें से ज्यादातर वोट बैंक पार्टी से खिसक गया है। इसी में से काफी बड़ा वोट बैंक लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के साथ हो लिया था, अब विधानसभा चुनाव में यही वोट बैंक निर्णायक की भूमिका निभा सकता है। पार्टी के बड़े दिग्गजों के बगावत के बाद पार्टी को इसी वोट बैंक दोबारा वापस लेकर आना चुनौती बना हुआ है।
थानेसर विधानसभा क्षेत्र से साल 2014 में भाजपा के सुभाष सुधा ने जीत दर्ज करवाई थी, उन्हें 68080 वोट मिले थे और इनेलो के प्रत्याशी रहे अशोक अरोड़ा को 42442 वोट मिले थे। इससे पहले 2009 के चुनावों में इनेलो ने जीत दर्ज करवाई थी, साल 2005 में भी 40943 वोट के साथ इनेलो के ही प्रत्याशी दूसरे स्थान रहे थे। साल 2000 और 1996 के चुनावों में तो इनेलो प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज करवाई थी। अब लंबे समय से इनेलो का चेहरा रहे अशोक अरोड़ा कांग्रेस पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं और इनेलो के ज्यादातर चेहरे उनके साथ ही खड़े हैं। इसी तरह पिहोवा से 2014 में इनेलो के जसविद्र सिंह संधू विधायक बने, जनवरी 2019 में उनके निधन के बाद से सीट खाली पड़ी थी और अब उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी गगनजोत संधू ने भी इनेलो को छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इससे पहले साल 2009 में 31349 वोट के साथ इनेलो प्रत्याशी ही दूसरे नंबर पर रहे थे। कभी गढ़ था इनेलो का
साल 2000 और 1996 के चुनावों में यहां से इनेलो के ही विधायक रहे हैं। इसी से मिलते-जुलते हालात शाहाबाद हलके में भी रहे हैं। 2014 के चुनावों में भाजपा के कृष्ण बेदी जीते और इनेलो के प्रत्याशी मात्र 562 वोट से ही हारे। इससे पहले भी 2009 और 2005 के चुनावों में यहां से इनेलो प्रत्याशी ही दूसरे नंबर पर रहे। परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए लाडवा हलके में भी 2009 में इनेलो के ही शेर सिंह बड़शामी विधायक बने। इसके बाद 2014 में भाजपा के प्रत्याशी डॉ. पवन सैनी विधायक बने और इनेलो दूसरे स्थान पर रही। साल 2014 के चुनावों में जहां इनेलो को चारों विधानसभाओं में 1,76,158 वोट मिले थे, वहीं लोकसभा चुनावों में 27035 वोट मिले थे।