दिन में तीन बार सेल्फी ले रहे हैं तो आप सेल्फाइटिस विकार की बोर्डर लाइन पर
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : अगर आप दिन में तीन-तीन बार मोबाइल में सेल्फी लेते हैं और उसे सोशल मीडिया पर शेयर नहीं करते तो भी आप संभल जाइए, क्योंकि आप सेल्फाइटिस विकार की बोर्डर लाइन पर हैं।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र :
अगर आप दिन में तीन-तीन बार मोबाइल में सेल्फी लेते हैं और उसे सोशल मीडिया पर शेयर नहीं करते तो भी आप संभल जाइए, क्योंकि आप सेल्फाइटिस विकार की बोर्डर लाइन पर हैं। इसके बाद एक समय आता है जब सेल्फी लेकर मोबाइल में रखने वाले इन्हें तुरंत सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगते हैं और यह बीमारी तब ज्यादा खतरनाक रूप ले लेती है जब एक दिन में छह से ज्यादा फोटो सोशल मीडिया पर डालने लगते हैं। वे सेल्फी लेने के लिए अपनी जान तक को जोखिम में डाल देते हैं और खतरनाक स्थलों पर फोटो लेने से भी नहीं घबराते। यह कहना है मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर एवं एलएनजेपी अस्पताल के ब्लड बैंक परामर्श एवं पुनर्वास मनोवैज्ञानिक सीमा ¨सह का। दैनिक जागरण संवाददाता विनीश गौड़ से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि एक सीमित संख्या में सेल्फी लेना गलत नहीं है। ज्यादातर लोगों को फोटोग्राफी का शौक होता है, लेकिन सेल्फी की लत लग जाना खतरनाक हो सकता है।
प्रश्न : अब सेल्फी लेना एक साधारण बात हो गई है, इससे खतरा कैसे हो सकता है?
उत्तर : सेल्फी लेना तब तक साधारण बात है जब तक आपको इसकी लत नहीं लगती। बहुत से लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा लाइक एकत्रित करने के लिए जान जोखिम में डालकर ऐसी साइट पर सेल्फी करने के लिए पहुंच जाते हैं जहां जाना उनकी जान के लिए खतरा बन सकता है। ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं जब सेल्फी लेते हुए लोग दुर्घटना का शिकार हुए हैं। इसके लिए अपनी जान को जोखिम में न डालें। प्रश्न : सेल्फाइटिस विकार की चपेट में सबसे ज्यादा युवक व युवतियों में से कौन आते हैं?
उत्तर : युवतियों की तुलना में युवक इस विकार की चपेट में ज्यादा आते हैं, क्योंकि युवतियों के मुकाबले युवक ज्यादा जोखिम उठाकर उन खतरनाक जगहों पर पहुंच जाते हैं जहां दुर्घटना होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में युवकों को ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है। प्रश्न : यह समस्या उत्पन्न कैसे होती है?
उत्तर : अगर इसकी गहराई में उतरें तो पता लगता है कि एकल परिवार इसके पीछे का बहुत बड़ा कारण है। परिवार में बड़े-बुजुर्ग नहीं होने से बच्चों को जब भी समय लगता वे सोशल मीडिया और इंटरनेट में घुस जाते हैं। पहले बच्चे दादा-दादी की कहानियों में व्यस्त रहते थे और वे ही उन्हें अच्छे व बुरे का ज्ञान देते थे। अब इंटरनेट ने उनकी जगह ले ली है। मगर इंटरनेट अच्छे व बुरे की परख नहीं बताता। ऐसे में बच्चे के मस्तिष्क पर बड़ी तेजी से कोई भी बात हावी हो जाती है। इसलिए बच्चों को इंटरनेट से दूर रखें और उतनी ही देर मोबाइल दें जितना जरूरी है, क्योंकि स्कूल के प्रोजेक्ट में भी बच्चों को इंटरनेट का सहारा लेना पड़ता है। प्रश्न : ऊपर, आपने बताया कि किन लोगों को सेल्फाइटिस विकार से पीड़ित माना जा सकता है, मगर बचाव के लिए क्या करें?
उत्तर : अगर कोई सेल्फाइटिस विकार की चपेट में है तो उसे काउंसि¨लग की जरूरत है, क्योंकि काउंसि¨लग में ध्यान आकर्षित करने की प्रवृत्ति, चंचलता और जोखिम उठाने के व्यवहार को परखा जाता है। इसके बाद उसका उपचार शुरू किया जाता है।