समाज का हर अंग यदि मिलकर उन्नति की ओर अग्रसर हो तो समाज रूपी शरीर स्वस्थ रहेगा : सत्यभामा
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से बाबैन स्थित आश्रम में आयोजित साप्ताहिक सत्संग में आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी सत्यभामा भारती ने कहा कि पूरा समाज एक मानव शरीर जैसा है। समाज का हर अंग यदि सुचारू रूप से मिलकर उन्नति की ओर अग्रसर हो तो समाज रूपी शरीर स्वस्थ रहेगा।
संवाद सहयोगी, बाबैन : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से बाबैन स्थित आश्रम में आयोजित साप्ताहिक सत्संग में आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी सत्यभामा भारती ने कहा कि पूरा समाज एक मानव शरीर जैसा है। समाज का हर अंग यदि सुचारू रूप से मिलकर उन्नति की ओर अग्रसर हो तो समाज रूपी शरीर स्वस्थ रहेगा। आज समाज रूपी मानव शरीर जमीन पर अपने कटे-सड़े-गले अंग टटोलने में लगा है। आज भ्रष्ट समाज को अपने उत्थान के लिए कहीं से भी मार्ग नहीं मिल रहा। स्वामी विवेकानंद ने कहा है जब-जब समाज पर दुखों के ऐसे बादल उमड़े कि उसे कोई मार्ग नहीं मिला, तब-तब अध्यात्म ने उसका मार्ग प्रशस्त किया है। जब एक तत्ववेता सतगुरु जीवन में आते हैं, तो वे मानव को ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं। ब्रह्मज्ञान ही मानव के भ्रष्ट मन से उपजे भ्रष्ट आचरण को समाप्त कर, सदाचार को जाग्रत करने में सक्षम है। ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करने पर आरंभ होता है आंतरिक मंथन जिसके द्वारा सबसे पहले व्यक्ति के मन में बसी बुराइयां, विकृतियां व निर्बलताएं बाहर आती हैं। मंथन के अगले चरण में जाग्रत होते हैं सद्गुण, जो आचरण को श्रेष्ठता की ओर अग्रसर करते हैं। आदि शंकराचार्य जी, महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव जी, संत सुकरात आदि महापुरुषों ने इसी ब्रह्मज्ञान के सामर्थय को सिद्ध किया। आज भ्रष्टाचार व अनैतिकता से त्रस्त हुए समाज को एक बार पुन: इसी ब्रह्मज्ञान की आवश्यकता है।