श्रीमद्गवद्गीता में मानवाधिकार भारतीय ¨चतन का ही अंग : डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : भारत की सनातन संस्कृति में श्रीमद्गवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुक
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : भारत की सनातन संस्कृति में श्रीमद्गवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुकरणीय भी है। श्रीमद्गवद्गीता में मानवीय न्याय की प्रकृति में सबल द्वारा निर्बल के उपभोग के स्थान पर सबल द्वारा निर्बल की रक्षा तथा सर्व समाज की रक्षा का भाव निहित है। श्रीमछ्वगवद्गीता में मानवाधिकार भारतीय ¨चतन का ही अंग है। मानवीय समाज के संचालन में जैविक प्रेरणाओं से कहीं अधिक भूमिका सामाजिक-सांस्कृतिक प्रेरणाओं की होती है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने अंतरराष्ट्रीय श्रीमद्गवद्गीता जयंती समारोह 2018 के अवसर पर मातृभूमि सेवा मिशन और ¨हदी विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वाधान में श्रीमद्गवद्गीता में मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र, अफगानिस्तान के शोधार्थी ब्रह्म रमेश, ¨हदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. पुष्पा रानी के द्वारा सामूहिक रूप से दीप प्रज्वलन से हुआ। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ. पुष्पा रानी ने कहा कि कर्म एवं ज्ञान का गीता में विलक्षण मिश्रण है। श्रीमद्गवद्गीता में समाहित कर्म संस्कृति को अपना कर ही हम अपनी समाज तथा अपने राष्ट्र की उन्नति कर सकते हैं। अफगानिस्तान के शोधार्थी ब्रह्म रमेश ने कहा कि हजारों वर्ष से संपूर्ण विश्व श्रीमद्गवद्गीता एवं रामायण से प्रेरणा ले रहा है। गीता में मानवाधिकार का स्वरूप व्यापक एवं सार्वभौम है। संगोष्ठी के विशिष्ठ अतिथि पंजाबी विभाग के डॉ. कुलदीप ¨सह ने कहा कि गीता की परिधि में नैतिक, वैधानिक, मौलिक, सकारात्मक सभी अधिकार आते हैं। संगोष्ठी में मिशन के वरिष्ठ सदस्य एसपी त्रिपाठी ने कहा कि मानव मात्र के प्रति कामना, सदभावना तथा सौहार्द के प्रतिपादक आदर्शमय उपदेश देने वाले वेद विश्व साहित्य में अनुपम ग्रंथ हैं। संगोष्ठी का संचालन मिशन के सदस्य कपिल मदान ने किया।