दुकानों पर मूíतयों की सप्लाई करते-करते बन गया अवार्डी मूíतकार
कहते हैं हुनर किसी का मोहताज नहीं होता यदि किसी के पास हो तो वह पत्थर को सजीव रूप दे सकता है। ऐसे ही हुनर अजमेर के शिल्पकार सुधीर कुमार के हाथों में है। उनकी कारीगरी लोगों के दिलों पर राज कर रही है। वह कभी मूíत बनाकर तो कभी पेंटिग बनाकर लोगों को अचंभित कर रहे हैं। 21 वर्ष पहले दुकानों पर मूर्तियों की सप्लाई करने वाले सुधीर कुमार आज हाथों की कारीगरी से खूब नाम कमा रहे हैं।
अश्वनी धनौरा, कुरुक्षेत्र : कहते हैं हुनर किसी का मोहताज नहीं होता, यदि किसी के पास हो तो वह पत्थर को सजीव रूप दे सकता है। ऐसे ही हुनर अजमेर के शिल्पकार सुधीर कुमार के हाथों में है। उनकी कारीगरी लोगों के दिलों पर राज कर रही है। वह कभी मूíत बनाकर तो कभी पेंटिग बनाकर लोगों को अचंभित कर रहे हैं। 21 वर्ष पहले दुकानों पर मूर्तियों की सप्लाई करने वाले सुधीर कुमार आज हाथों की कारीगरी से खूब नाम कमा रहे हैं। कुरुक्षेत्र स्थित ब्रह्मसरोवर पर अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2019 के क्राफ्ट मेले में लगाई गई, कैनवास पेंटिग की स्टाल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। शिल्पकार सुधीर कुमार की धर्मपत्नी वर्षा नागवंसी बताती है कि वे पर्यटकों के लिए गांव, प्रकृति, किसान और भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ देवी-देवताओं की तस्वीर बनाकर लाए है।
राजस्थान के अजमेर निवासी वर्षा नागवंसी का कहना है कि उन्हें ब्रह्मसरोवर के तट आकर्षित करते हैं। वे प्रत्येक महोत्सव में कुछ न कुछ नया बनाकर लाने का प्रयास करते हैं। इस बार पर्यटकों के लिए 130 सेंटीमीटर की बड़ी तस्वीर के साथ-साथ मेटल कॉपर, गांव के माहौल, प्रकृति और देवी-देवताओं की तस्वीर बनाकर लाए हैं। महोत्सव में उन्हें 126 व उनकी पति को 312 नंबर स्टाल अलाट हुआ है। उन्होंने कहा कि महोत्सव में कपड़े पर रेडियम से बने रंगों से कृष्ण अर्जुन रथ, सभी देवी-देवताओं की तस्वीर बनाकर लाए है। ये तस्वीरें रात के समय घर में अपना प्रकाश छोड़ेंगी। रेडियम से गांव के माहौल, प्रकृति आदि विषय को लेकर तस्वीरें बनाई गई हैं। तस्वीरों की कीमत 120 रुपये से 1350 रुपये तक है। कैनवस पर पेंसिल से बने चित्र भी खास हैं। ये तस्वीरे भी रात्रि के समय थोड़ी सी रोशनी पड़ने पर चमकने लगती हैं। इन तस्वीरों की कीमत 300 रुपये से लेकर 1500 रुपये है।
वर्षा बताती हैं कि वह पिछले 10 साल से कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर पर लगने वाले मेले में आ रहे हैं। उनके परिवार के सभी सदस्य इस काम में माहिर है। करीब 21 साल से वह इस काम को करते है। उनके परिवार में उनके पति व दो बेटियां हैं। उनकी दोनों बेटियां पढ़ाई के साथ-साथ मूíत व पेंटिग भी बनाती हैं। उसके पति को सन् 1999 में मूíत कला प्रतियोगिता में स्टेट अवार्ड भी मिल चुका है। इसके अलावा जिला स्तर पर भी अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं। उनका कहना है कि उसके पति सुधीर को सोशल वर्क के लिए भी सम्मानित किया जा चुका है। उनके पति जरूरतमंद महिलाओं को मूíतयां बनाना सिखाते है और उन्हें काम भी दिलाते है, जिसके लिए उन्हें सम्मानित किया गया है।