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रक्तदान करने से कई रक्तदाताओं के जीवन पर मंडरा रहा खतरा टला

आपका रक्तदान करना किसी दूसरे की ही जान नहीं बचाता बल्कि रक्तदान करने से कई लोगों के सिर पर मंडरा रहा गंभीर बीमारियों का खतरा भी टल सकता है। सोच रहे होंगे कैसे वो ऐसे कि रक्तदान करने के बाद होने वाली जांच में कई लोगों को हेपेटाइटिस-सी यानी काला पीलिया होने का पता चला।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Feb 2019 07:07 AM (IST)Updated: Sun, 24 Feb 2019 07:07 AM (IST)
रक्तदान करने से कई रक्तदाताओं के जीवन पर मंडरा रहा खतरा टला
रक्तदान करने से कई रक्तदाताओं के जीवन पर मंडरा रहा खतरा टला

विनीश गौड़, कुरुक्षेत्र : आपका रक्तदान करना किसी दूसरे की ही जान नहीं बचाता बल्कि रक्तदान करने से कई लोगों के सिर पर मंडरा रहा गंभीर बीमारियों का खतरा भी टल सकता है। सोच रहे होंगे कैसे, वो ऐसे कि रक्तदान करने के बाद होने वाली जांच में कई लोगों को हेपेटाइटिस-सी यानी काला पीलिया होने का पता चला। जिसके बाद वे लीवर का कैंसर बनने से पहले इस बीमारी का उपचार करा पाए। विशेषज्ञ के मुताबिक काला पीलिया के 70 से 80 प्रतिशत लोगों में इसके लक्षण नहीं आते, जिसके चलते लोगों को शरीर में पनप रही इस बीमारी का पता ही नहीं चल पाता। फिर या तो उन्हें आखिरी स्टेज पर जब यह वायरस उनके शरीर में कैंसर का रूप ले लेता है तब या फिर रक्तदान और मेडिकल कराने पर इसका पता चलता है। जिले में पिछले 14 महीनों में इसके 156 मरीज मिल चुके हैं। विदेश जाने के लिए मेडिकल कराने का पता चला

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हेपेटाइटिस-सी के मरीजों को किसी भी तरह के लक्षण नहीं होने के चलते ज्यादातर लोगों को इसका पता रक्तदान, मेडिकल जांच में पता लगता है। यही यहां पर भी हुआ। कुरुक्षेत्र के जिला में पिहोवा में अब तक सबसे ज्यादा हेपेटाइटिस-सी के मरीज मिले हैं। इनमें ज्यादातर लोगों को तब इस बीमारी से पीड़ित होने का पता चला जब विदेश जाने से पहले उन्हें मेडिकल जांच करानी पड़ी। इस जांच के बाद उन्हें इस संक्रमण की बीमारी होने की बात पता चली। साथ ही इसके वायरस ने उनके विदेश में जाने पर भी ब्रेक लगवा दी। जिले में अब तक मिले 156 हेपेटाइटिस-सी के मरीज

जिले में अब तक 156 हेपेटाइटिस-सी के मरीज मिले हैं। वर्ष 2018 में 145 मरीज मिले, जिनका उपचार या तो जिले के सरकारी अस्पताल में चल रहा है या निजी अस्पतालों में। वहीं इस वर्ष जिला जेल परिसर में स्क्रीनिंग के दौरान 11 विचाराधीन कैदियों को हेपेटाइटिस-सी से प्रभावित पाया गया। इनका भी उपचार शुरू कर दिया गया है। 70 से 80 प्रतिशत मरीजों में नहीं दिखते इसके लक्षण

हेपेटाइटिस-सी के नोडल अधिकारी डॉ. गौरव ने बताया कि 70 से 80 प्रतिशत मरीजों में इसके लक्षण नहीं होते। जबकि शरीर में दर्द, भूख कम लगना, हल्का बुखार होना, उल्टी आना इत्यादि समस्याएं इसी के लक्षण हैं। ज्यादा बढ़ जाने पर पेट में पानी भर जाना, उल्टी में खून, दौरा पड़ना जैसी समस्याएं आती हैं। अगर समय पर इसका उपचार नहीं कराया जाए तो 15 से 20 साल में यह संक्रमण लीवर का कैंसर बना देता है। इसका उपचार तीन से छह महीने के बीच में हो जाता है। इसके बाद मरीज सामान्य जीवन जीता है। पांच तरह के टेस्ट किए जाते : डॉ. विनोद

ब्लड बैंक के नोडल अधिकारी डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि रक्त एकत्रित करने के बाद पांच तरह के टेस्ट किए जाते हैं। हेपेटाइटिस-सी, हेपेटाइटिस-बी, एचआइवी, मलेरिया का टेस्ट किया जाता है। अगर इनमें से एक भी पॉजिटिव होता है तो उस रक्त को जारी नहीं किया जाता और उस व्यक्ति को बुलाकर काउंसि¨लग करके बीमारी के बारे में बताया जाता है।


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