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सवाल : जो विवादित जमीन प्रशासन के अंडर, उस पर ग्रामीण कैसे कर रहे खेती

दिगताना गांव में जमीन विवाद में तीन हत्याओं के तार राजस्व विभाग में फैले भ्रष्टाचार से जुड़ते नजर आ रहे हैं। मामले में रेवेन्यू विभाग के अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। जो जमीन विवादित है इस पर खेती करने की इजाजत दी किसने। यह काम एक दिन में नहीं हो सकता। इस तरफ पहले ध्यान क्यों नहीं दिया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 07:58 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 07:58 AM (IST)
सवाल : जो विवादित जमीन प्रशासन के अंडर, उस पर ग्रामीण कैसे कर रहे खेती

जागरण संवाददाता करनाल : दिगताना गांव में जमीन विवाद में तीन हत्याओं के तार राजस्व विभाग में फैले भ्रष्टाचार से जुड़ते नजर आ रहे हैं। मामले में रेवेन्यू विभाग के अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। जो जमीन विवादित है, इस पर खेती करने की इजाजत दी किसने। यह काम एक दिन में नहीं हो सकता। इस तरफ पहले ध्यान क्यों नहीं दिया गया। यदि प्रशासन अलर्ट होता तो जमीन पर खेती नहीं होती। और शनिवार को हुई वारदात को भी रोका जा सकता था।

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गौरतलब है कि दिगताना गांव में मंदिर की विवादित जमीन से फसल काटने को लेकर दो पक्षों में विवाद था। शनिवार को इसी विवाद के चलते एक पक्ष ने राजेश के घर पर धारदार हथियारों से हमला कर जामनी गांव जिला जींद निवासी नफेसिंह और रवि की हत्या कर दी। जबकि राजेश की पत्नी नीतू और उसका साला प्रवीण व उसका दोस्त रोहित घायल हो गए थे। प्रवीण ने भी रविवार को उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। विवाद की वजह मंदिर की डेढ़ एकड़ जमीन से गेहूं की कटाई बताया जा रहा है।

महंत को सरपंच बनाया तो उसने जमीन बांटी रिश्तेदारों में

मंदिर की 619 एकड़ जमीन विवादों में है। पंचायत बनते ही ग्रामीणों ने इस मंदिर के महंत बशेसर दास को सरपंच चुन लिया। सरपंच बनते ही महंत ने 619 एकड़ जमीन अपने रिश्तेदारों को बांटनी शुरू कर दी। मौजूदा सरपंच सतबीर सिंह ने बताया कि तब किसी ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन करीब 40 से 50 परिवार बाहर से गांव में आकर जमीन पर खेती करने लगे। बशेसर 2006 में अपनी मौत तक सरपंच पद पर रहे। यूं शुरू हुआ विवाद

अब ग्रामीणों ने विरोध करना शुरू कर दिया कि जमीन तो मंदिर की है, इस पर बाहर से आए लोग कैसे कब्जा कर सकते हैं। यहीं से विवाद शुरू हुआ। मामला कोर्ट में गया। अब गांव में दो तरह की सोच के लोग हैं। एक पक्ष तो चाहता है कि जमीन पर मंदिर का दोबारा कब्जा हो। दूसरा पक्ष चाहता है कि जमीन इस पर खेती करने वालों के बीच में बांट दी जाए। क्योंकि अभी तक जमीन की मलकीत क्लियर नहीं है। ऐसे में रेवेन्यू रिकार्ड के मुताबिक जिसका जहां कब्जा है, वह वहां खेती कर रहा है।

डीसी की अध्यक्षता में बनी कमेटी

वर्ष 2002 में करनाल के मौजूदा डीसी आरएस दून को इस जमीन का चेयरमैन बनाया गया था, उनकी जिम्मेदारी थी कि जमीन से कब्जा छुड़ाया जाए, लेकिन तब से लेकर अभी तक इस दिशा में ज्यादा कुछ नहीं हुआ। गांववासी जिले सिंह, रामकुमार, हुक्म सिंह, राजपाल, गजे सिंह, राजकुमार, मदन लाल, राम सिंह, पाला राम व राजबीर ने बताया कि प्रशासन व प्रदेश सरकार से कई बार मंदिर की कमेटी बनाने की मांग कर चुके हैं। ताकि मंदिर के नाम 619 एकड़ जमीन की आमदनी को मंदिर व वेदवर्ती तीर्थ की बदहाल स्थिति सुधारने पर खर्च किया जा सके।

विवाद खूनी संघर्ष में क्यों बदला

अब क्योंकि रेवेन्यू रिकार्ड में जमीन की मलकियत किसी के नाम स्पष्ट नहीं है। इस पर खेती करने वालों को लगता है कि उन्हें कोर्ट से जमीन का मालिकाना हक मिल जाएगा। इसलिए वह किसी भी तरह से इस पर अपना कब्जा जमाए रखना चाहते हैं। यहीं कोशिश खूनी विवाद की वजह बन रही है। जमीन पर काबिज लोग हर हालत में अपना कब्जा जमाए रखना चाह रहे हैं। इसके लिए वह बल और धन दोनों का प्रयोग कर रहे हैं।

रेवेन्यू विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए

जमीन विवादस्पद है। मालिकाना हक क्लियर नहीं है। जमीन सुरक्षित रहे, यह देखना रेवेन्यू विभाग का काम है। यह जमीन एग्रेरियन(ऐसी जमीन जिस पर खेती हो सकती है) मानी जाती है। क्षेत्र के पटवारी को यह ध्यान रखना था कि जमीन पर खेती कौन कर रहा है और किस हक से कर रहा है। यदि यह जमीन प्रशासन ने ठेके पर दी है, तो इसकी उसी वक्त निशानदेही क्यों नहीं की। जिससे इस तरह का विवाद ही पैदा न होता।

पटवारी कर्मसिंह ने बताया कि उसे तो इस मामले की जानकारी नहीं है। क्षेत्र के नायब तहसीलदार अनिल ने बताया कि उन्हें भी विवाद का पता नहीं है। इससे साफ है कि रेवेन्यू विभाग के अधिकारी कुछ छिपा रहे हैं।


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