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कृषि उत्पादन में बेहिसाब रसायनों का इस्तेमाल, बिगड़ी मृदा की सेहत

जागरण संवाददाता करनाल प्रदेश की कृषि योग्य 36 लाख हेक्टेयर भूमि में वर्ष-1996 के आंकड़ो

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 08:07 AM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 08:07 AM (IST)
कृषि उत्पादन में बेहिसाब रसायनों का इस्तेमाल, बिगड़ी मृदा की सेहत

जागरण संवाददाता, करनाल : प्रदेश की कृषि योग्य 36 लाख हेक्टेयर भूमि में वर्ष-1996 के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा की 2.03 लाख हेक्टेयर भूमि को खराब माना गया था जबकि अब यह दायरा बढ़कर 3.01 लाख हेक्टेयर हो गया है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो यह चिताजनक है और किसानों के अलावा आमजन को भी मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए जागरूक होना होगा। बढ़ते प्रदूषण और खेती में रसायनों के लगातार बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की क्वालिटी लगातार खराब हो रही है। 2013 से हर वर्ष पांच दिसंबर को विश्व मिट्टी दिवस होता है लेकिन मिट्टी की सेहत के लिए लापरवाही प्रकृति के साथ-साथ मानव जीवन पर भारी पड़ रही है। मिट्टी का गिरता स्तर सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष-2015 में मृदा सोयल हेल्थ कार्ड जारी करने के लिए अभियान शुरू किया था। इस मुहिम का किसानों को लाभ मिल रहा है लेकिन अधिकतर किसान अधिक पैदावार का लालच करते हैं। 1.35 लाख हेक्टेयर भूमि में सुधार चुनौती

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केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान ने क्षारीय व लवणीय भूमि में सुधार कर देश के किसानों को नई जीवनरेखा दी है। प्रदेश में 3.01 लाख हेक्टेयर हिस्सा क्षारीय व लवणीय भूमि का है, जिसमें लवणीय 1.8 लाख हेक्टेयर और 1.3 क्षारीय हिस्सा है। 65 हजार हेक्टेयर में सुधार है जबकि 1.35 लाख हेक्टेयर में सुधार बाकी है। संस्थान ने 50 वर्ष में काफी सुधार किया है। संस्थान में मृदा एवं फसल प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष व प्रिसिपल साइंटिस्ट डा. आरके यादव ने बताया कि पानीपत, सोनीपत, कैथल, कुरुक्षेत्र, करनाल, अंबाला में क्षारीय क्षेत्रों में काफी सुधार है। सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, हांसी, रोहतक, बहादुरगढ़, झज्जर क्षेत्रों में अधिकतर कृषि नहरी पानी से होने के कारण भू-जल नीचे से ऊपर आता गया। जमीनी पानी में खारेपन के कारण सुधार की गुजांयश कम रही। हरियाणा ओपरेशनल पायलट प्रोजेक्ट (एचओपीपी) के तहत चौवा मैनेज करने के प्रयोग हो रहे हैं। केमिकल से बंजर हो रही उपजाऊ मिट्टी

सिचाई एवं जल निकास अभियांत्रिकी विभाग के अध्यक्ष डा. डीएस बुंदेला ने बताया कि मिट्टी के जैविक गुणों में कमी आने की वजह से उपजाऊ क्षमता घटी है और प्रदूषण की शिकार हो रही है। भोजन का 95 फीसद हिस्सा मिट्टी से ही आता है। पिछले आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में मिट्टी का 50 फीसद हिस्सा खराब हुआ है। प्रदेश के काफी हिस्सों में उपजाऊ मिट्टी लगातार बंजर हो रही है। ज्यादा रासायनिक खादों और कीड़ेमार दवाओं के इस्तेमाल से उपजाऊ क्षमता में गिरावट है। जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सूक्ष्म तत्व (माइक्रोन्यूट्रेएंट्स) के अनुपात का गणित गड़बड़ा गया है। क्या है क्षारीय और लवणीय भूमि

क्षारीय भूमि में सोडियम कार्बोनेट, बाइकार्बोनेट तथा सिलीकेट लवणों की अधिकता होती है। विनिमय योग्य सोडियम 15 फीसद से अधिक और पीएच मान 8.2 से अधिक हो तो क्षारीय भूमि होती है। इसमें घुलनशील लवण ऊपरी सतह पर सफेद पाउडर के रूप में एकत्रित हो जाते हैं। लवणीय भूमि में नमक की मात्रा अधिक होती है। इसमें पानी सोखने की क्षमता कम होती है। आमतौर पर क्षारीय भूमि वाले क्षेत्रों में भूमिगत जल की गुणवत्ता अच्छी होती है और उसका उपयोग फसल उत्पादन में किया जा सकता है। क्षारीय सुधार से भूमि, जल, वातावरण और अनेक अनूकुल परिस्थिति का सीधा प्रभाव लोगों के रहन-सहन, स्वास्थ्य एवं उपयोग पर पड़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास की संभावनाएं हैं। बोले विशेषज्ञ

मृदा सोयल हेल्थ कार्ड पर गंभीरता जरूरी

सीएसएसआरआइ के विशेषज्ञों की मानें तो मृदा सोयल हेल्थ कार्ड अभियान से काफी हद तक मिट्टी के सुधार में सफलता मिली है। विभाग की ओर से दस टीम भी बनाई गई हैं। क्षारीय मिट्टी में काफी हद तक सुधार हुआ है, लेकिन 70 फीसद जिप्सम नहीं मिल रहा है। समय-समय पर कृषि विभाग के साथ कार्य करते हैं। मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का अनुपात 4:2:1 होना चाहिए लेकिन जांच से पता चला है कि मिट्टी में नाइट्रोजन की बहुत कमी हुई है और पौधों को सांस लेने और भोजन के लिए नाइट्रोजन की ही जरूरत होती है। लवणीय मृदा में जड़ों तक पानी पहुंचाने पर काम किया जाता है।


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