पुलिस के तो पसीने काढ़ दिए
मौका था केंद्र सरकार की एक नीति के विरोध का जिसके लिए भारत बंद का आह्वान किया गया।
मौका था केंद्र सरकार की एक नीति के विरोध का जिसके लिए भारत बंद का आह्वान किया गया। आंदोलन को लेकर संबंधित सामाजिक संगठन के आह्वान पर दूसरे संगठन भी सेक्टर 12 में ही जिला सचिवालय से कुछ कदम दूरी पर एकत्रित हुए। बड़े स्तर पर आंदोलन की आशंका के चलते पुलिस के भी हाथ-पांव सुबह से ही फूलने लगे थे। जब रोष जताने के लिए तीन घंटे तक करीब सौ कार्यकर्ता एकत्रित हुए तो उनमें शामिल एक कार्यकर्ता को खुफियाकर्मी ने कहा कि मुट्ठी भर कार्यकर्ता तो एकत्रित हुए हैं। इस पर कार्यकर्ता ने कहा कि मुट्ठी भर ने ही ठंड में भी पुलिस के पसीने काढ़ दिए। पुलिस कर्मी सुबह से ही आपातकाल जैसी स्थिति बनाए घूम रहे सै। यह कसूती बात सुनकर खुफियाकर्मी कार्यकर्ता की तरफ देखता ही रह गया। वहीं पुलिस ने भी राहत की सांस उस समय ली जब कार्यकर्ता शांतिपूर्ण रोष जताकर लौट गए। मजबूरी का उठाते हैं फायदा
मौका था मेडिकल कॉलेज में एक चिकित्सक के रवैये पर चर्चा का। एक अधिकारी के समक्ष कुछ लोगों ने चिकित्सक द्वारा मरीजों से लेकर तीमारदारों के साथ किए जाने वाले रवैये पर कुछ कहना चाहा तो अधिकारी पल भर में सब कुछ समझ गए। उन्होंने कहा कि सभी को पता है कि अधिकतर चिकित्सकों का कैसा रवैया रहता है। लेकिन क्या करें मजबूरी का फायदा उठा रहे है। यह कसूती बात कहते हुए अधिकारी ने बात आगे बढ़ाई और कहा कि प्रशासनिक तौर पर बेहतर प्रयास रहते हैं, लेकिन चिकित्सक को खुद भी समझना चाहिए। अधिकारी ने यह भी कहा कि उनके कनिष्ठ तो अपनी हजूरी दिखाने के लिए बिना सोचे समझे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन ऐसे लोग बाद में पछताते हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी क्षेत्र के बजाय निजी में अधिक फायदा देखते हैं और यही कारण है कि इस क्षेत्र में चिकित्सकों की कमी रहती है। मांग पूरी हुई तो ली राहत की सांस
अपनी मांगों के लिए डीसी ऑफिस के समक्ष ही कई दिनों से धरना देने वाले लोगों का एक समूह आरोपित लोगों पर कार्रवाई की मांग को लेकर जिला सचिवालय में एक महिला अधिकारी के पास पहुंचे। उन्होंने आरोपितों पर कार्रवाई न होने पर उनके सामने रोष जताना शुरू किया ही था कि अधिकारी बोली वो बात बाद की है। पहले धरना उठाने की तैयारी करो। यह कसूती बात सुनकर सभी हक्के-बक्के रह गए। उन्होंने फिर नर्मी दिखाते हुए अधिकारी से नए सिरे से बातचीत करते हुए न्याय की गुहार लगानी शुरू की। हालांकि अधिकारी ने उनकी बात गंभीरता से सुनी, लेकिन कसूती बात फिर आगे बढ़ाते हुए स्पष्ट किया कि अनुमति खत्म हो चुकी है। अब उन्हें तंबू हटाना ही पड़ेगा। इसके बाद मांग करने पर अनुमति भी बढ़ाई गई, जिसके बाद रोष जताने वाले लोगों ने राहत की सांस ली तो रणनीति भी बदली। मामला चर्चा का विषय बना रहा। क्या करें नौकरी तो करनी है
एक पुलिस कर्मी अज्ञात शव लेकर कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज पहुंचा था। वह अभी कार्रवाई भी शुरू नहीं कर पाया था कि उनके जानकार वहां आ धमके। पहले हाल-चाल पूछा तो फिर यहां आने की बात चली। पुलिस कर्मी ने बताया कि वह अज्ञात शव लेकर पहुंचा है तो जानकार ने कहा शव ही ढोते रहोगे। इस पर पुलिस कर्मी ने भी बात आगे बढ़ाई और कहा कि क्या करें नौकरी करनी है। आधी नौकरी तो ऐसे ही काम में गुजर गई है। पुलिस कर्मी के टूटे मन को भांपते हुए जानकार ने हौसला बढ़ाया और कहा कि यह तो डयूटी का हिस्सा है। ऐसे लोग भी है जो बेहतर पढ़ाई करने के बाद भी पोस्टमार्टम करने के लिए हर रोज शव को ही खोलते और बंद करते रहते हैं। काम तो काम है। जानकार की यह बात सुनकर पुलिसकर्मी को कुछ तसल्ली हुई और वह फिर अपनी कार्रवाई में जुट गया।