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आत्मनिरीक्षण का संदेश देता है संवत्सरी पर्व : मुनि पीयूष

श्री एसएस जैन सभा हनुमान गली में पीयूष मुनि महाराज ने आध्यात्मिक महापर्व संवत्सरी के उपलक्ष्य में कहा कि एक वर्ष के बाद आने वाली तिथि जब साधक आत्मनिरीक्षण कर मन वचन तथा शरीर के द्वारा लगे दोषों के लिए प्रायश्चित तथा पश्चाताप करता है वह संवत्सरी कही जाती है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 Sep 2021 10:28 PM (IST)Updated: Sat, 11 Sep 2021 10:28 PM (IST)
आत्मनिरीक्षण का संदेश देता है संवत्सरी पर्व :  मुनि पीयूष
आत्मनिरीक्षण का संदेश देता है संवत्सरी पर्व : मुनि पीयूष

करनाल (विज्ञप्ति) : श्री एसएस जैन सभा हनुमान गली में पीयूष मुनि महाराज ने आध्यात्मिक महापर्व संवत्सरी के उपलक्ष्य में कहा कि एक वर्ष के बाद आने वाली तिथि जब साधक आत्मनिरीक्षण कर मन, वचन तथा शरीर के द्वारा लगे दोषों के लिए प्रायश्चित तथा पश्चाताप करता है, वह संवत्सरी कही जाती है। इस दिन विशेष रूप से आध्यात्मिक साधना की जाती है तथा बाहरी प्रवृत्तियों से निवृत्ति लेकर आत्मचितन एवं मनन किया जाता है। साधक आत्मलीन होकर निश्चल चित्त से साधनाएं करता है। अपने से नाराज हुए लोगों से क्षमा मांगकर मैत्री के मीठे संबंध स्थापित करना तथा वैर-विरोध को छोड़ना इस पर्व का उद्देश्य है। यह दिन परम पावन और पुनीत है। यह पर्व स्वयं नहीं चला बल्कि भगवान महावीर ने इसका प्रारंभ किया है। चातुर्मास के पचास दिन बीतने तथा सत्तर दिन बाकी रह जाने पर संवत्सरी पर्व की आराधना प्रभु महावीर स्वामी ने की थी। किसी वंश के पूर्वज किसी महान कार्य के लिए कोई दिन नियत कर दें तो सदा के लिए उस दिन का महत्व माना जाता है तो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी प्रभु के द्वारा निश्चित इस पर्व की महिमा को भी आसानी से समझा जा सकता है।

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मुनि ने कहा कि वर्तमान समय में संवत्सरी महापर्व के पहले के सात दिनों को भी इसके साथ जोड़ा गया है जबकि शास्त्रों में यह सिर्फ एक दिन का ही नियत है। पहले के सात दिन आज के संवत्सरी पर्व की आराधना हित तैयारी के समझने चाहिए। जिन दिनों राग-द्वेष, विषय-विकार आदि पर विजय पाने का प्रयत्न किया जाता है। इन दिनों अहिसा, संयम, तप, त्याग के द्वारा आत्मिक बल बढ़ाया जाता है ताकि विकारों को दबाया जा सके।


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