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मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना..हिदी हैं हम

पवन शर्मा करनाल देश के संविधान ने हर नागरिक को मौलिक अधिकारों के रूप में वह अमूल्य नि

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 06:02 AM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 06:02 AM (IST)
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना..हिदी हैं हम
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना..हिदी हैं हम

पवन शर्मा, करनाल: देश के संविधान ने हर नागरिक को मौलिक अधिकारों के रूप में वह अमूल्य निधि दी है, जिसकी बदौलत वे अपने राष्ट्र के प्रति सदा सतत समर्पित रहकर गौरव की अनुभूति करते हैं। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी ऐसा ही हथियार बना है, जिसके सहारे मुस्लिम समुदाय में बड़ा बदलाव झलक रहा है। खासकर, मुस्लिम महिलाओं की जिदगी में नया उजाला आने लगा है। करनाल की सामाजिक कार्यकर्ता नाजमा इन्हीं महिलाओं में शामिल हैं, जो न केवल तीन तलाक की कुप्रथा खत्म करने को सकारात्मक कदम मानती हैं बल्कि, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से भी वे खासी खुश हैं। मंदिर के भूमि पूजन पर उन्होंने मोमबत्तियां जलाकर इसका इजहार भी किया। नाजमा चाहती हैं कि मुस्लिम समुदाय में तालीम और तरबियत को लेकर सोच बदले। खासकर, लड़कियों को आगे बढ़ाने पर पूरा ध्यान दिया जाए। इसी सोच के साथ वह ऐसी बच्चियों को दुनियावी तालीम देती हैं।

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जागरण से खास गुफ्तगू में मुस्लिम वेलफेयर सोसायटी से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता नाजमा कहती हैं कि, अल्लामा इकबाल की सदाबहार पंक्तियां मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिदी हैं हम वतन हैं हिदोस्ता हमारा, से उन्हें अलग ही हौसला और सीख मिलती है। बेशक, यह भारतीय लोकतंत्र की खूबी है कि यहां जाति, धर्म और वर्ग की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर हर तरफ विविधता में एकता के अनूठे रंग झलकते हैं। इसके बावजूद कई समुदाय आज भी विसंगतियों के शिकार हैं। इस नजरिए से परखें तो जिस समाज की ओर सबसे पहले नजर घूमती है, वह मुस्लिम समुदाय है। यकीनन, लंबे वक्त से इस समाज की अपनी कुछ बुनियादी समस्याएं रहीं लेकिन अब बदलते दौर के साथ इस समाज की महिलाएं भी बराबर कदमताल कर रही हैं। वह खुद इसकी मिसाल हैं। शायद पहले जैसा माहौल होता तो शादी के बाद उन्हें कुछ न करने दिया जाता। लेकिन वह न सिर्फ आजादी के साथ अपनी संस्था के जरिए नियमित रूप से समाजसेवा से जुड़े कार्यों में दिन-रात व्यस्त रहती हैं बल्कि, समाज की बच्चियों को तालीम की राह पर आगे बढ़ाने के लिए उन्हें बिला नागा नियमित रूप से पढ़ाती भी हैं। इसके तहत उन्हें केवल दीन ही नहीं, दुनियावी तालीम भी देती हैं ताकि, वे आगे बढ़कर अलग मुकाम हासिल कर सकें। इसी तरह मुस्लिम समाज की बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें सिलाई-कढ़ाई, कसीदाकारी, हैंडीक्राफ्ट, पेंटिग और अन्य रचनात्मक गतिविधियों में हुनरमंद बनाने के लिए भी जीनत निरतंर प्रयासरत हैं।

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मनाती हैं सभी त्योहार

करनाल की दुर्गा कॉलोनी में रहने वाली जीनत बताती हैं कि उन्हें कभी महसूस नहीं हुआ कि उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई पहरा है। इबादत से लेकर सामाजिक क्रियाकलाप तक उन्हें भरपूर आजादी है। ईद ही नहीं, होली, दीवाली, गुरु पर्व, क्रिसमस तक वह सभी पर्व-त्योहार मनाती हैं, जिनमें उनकी दोनों बच्चियों सहित घर के सभी सदस्य शामिल होते हैं।

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कुप्रथा मिटने से मिला सुकून

जीनत कहती हैं कि पिछले साल जब तीन तलाक की कुप्रथा मिटाई गई तो उन्हें बहुत खुशी और सुकून महसूस हुआ। यह किसी श्राप से कम नहीं था। शौहर के मुंह से तीन बार तलाक शब्द निकला और रिश्ता खत्म हो गया लेकिन मोदी सरकार के एक फैसले ने मुस्लिम महिलाओं की जिदगी में नए रंग भर दिए। इसका शुक्रिया अदा करने के लिए उन्हें पास अल्फाज नहीं हैं। खुद उनके पति काम के सिलसिले में काफी समय से सऊदी अरब में हैं और अक्सर वह खुद को लेकर भी चितित हो उठती थीं लेकिन अब यह कुप्रथा ही खत्म हो गई है तो उनको अलग ही राहत मिली है।

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एकता के सूत्र में बांधेगा राम मंदिर

अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया आगे बढ़ने से नाजमा बेहद खुश हैं। उन्होंने भूमि पूजन के दिन अपने घर की छत पर मोमबत्तियां जलाकर इसका इजहार भी किया। उनके चाचा राज्य हज कमेटी के मीडिया समन्वयक खुर्शीद आलम और अन्य स्वजन भी खुशियों में शरीक हुए। नाजमा कहती हैं कि मंदिर बनने से देश में एकता का स्वर मजबूत होगा। सभी को आगे बढ़कर इस फैसले का स्वागत करना चाहिए। सांप्रदायिक विद्वेष किसी समस्या का हल नहीं है। इंसानियत और भाइचारे की डोरी में सब बंधे रहें, इसी से देश आगे बढ़ेगा।


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