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सियासत में प्रभाव रखने वाले बदलेंगे चुनाव की दिशा

यदि गठबंधन करनाल में मजबूती के साथ चुनाव में सामने आता है तो निश्चित तौर इससे मुकाबला रोचक होगा।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 09:00 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 09:00 AM (IST)
सियासत में प्रभाव रखने वाले बदलेंगे चुनाव की दिशा

अश्विनी शर्मा, करनाल

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जजपा-आप गठबंधन ने सोची-समझी रणनीति के तहत कृष्ण कुमार अग्रवाल को टिकट थमाया है। करनाल संसदीय क्षेत्र में प्रभाव छोड़ने वाली वैश्य बिरादरी के साथ ही जाट वोट बैंक का अच्छा सहारा मिलने की उम्मीद के साथ अग्रवाल मैदान में आए है। गठबंधन की सोच है कि दोनों दलों का वोट बैंक मिलकर एक कड़ी चुनौती पेश कर सकता है। स्पष्ट तौर पर गठबंधन का सामना भाजपा के साथ है। यदि गठबंधन करनाल में मजबूती के साथ चुनाव में सामने आता है तो निश्चित तौर इससे मुकाबला रोचक होगा।

क्यों वैश्य समाज से उम्मीदवार बनाया गया

जाहिर तौर पर यह पार्टी की रणनीति का अहम हिस्सा था कि करनाल संसदीय क्षेत्र से किस बिरादरी को टिकट दिया जाए। चूंकि भाजपा पहले ही पंजाबी प्रत्याशी मैदान में उतार चुकी है। पंजाबी बिरादरी का वोट बैंक करनाल में दो लाख से ज्यादा है। इनेलो ने धर्मवीर पाढ़ा को प्रत्याशी बनाकर जाट कार्ड खेला हुआ है। इस बिरादरी के भी करीब दो लाख वोट हैं।

कांग्रेस से यह संकेत लगातार मिलते रहे हैं कि यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी उतारा जाएगा। यहां करीब डेढ़ लाख ब्राह्मण मतदाता हैं। जाहिर कि करनाल की राजनीति में बड़ा वोट बैंक रखने वाली तीन बिरादरियों से एक एक प्रत्याशी आ चुका है। ऐसे में करनाल की राजनीति में प्रभाव रखने वाला वैश्य समाज बाकी था। इस बिरादरी के करीब 75 हजार वोट हैं। अहम बात यह है कि यह बिरादरी 36 बिरादरियों के साथ खासा जुड़ाव रखती है। चुनाव के समय वह दूसरी बिरादरी के लोगों का झुकाव अपनी ओर करने की क्षमता रखती है। करनाल के नगर निगम का चुनाव इस बात का उदाहरण है कि वोट बैंक में मजबूत पंजाबी बिरादरी को टिकट देने के बजाय वैश्य समाज की रेणु बाला गुप्ता को भाजपा ने टिकट दिया था। इन्हीं समीकरणों को ध्यान में रखते हुए जजपा और आप गठबंधन ने अग्रवाल समाज के कृष्ण अग्रवाल को यह सोचकर मैदान में उतारा है कि वह करनाल संसदीय क्षेत्र में एक नया उदाहरण पेश करेंगे।

नवीन जयहिद के बजाय अग्रवाल को चुना

परंपरागत ब्राह्मण सीट के रूप में करनाल के प्रचारित होने की वजह से गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर आप के प्रदेशाध्यक्ष नवीन जयहिद भी यहीं से चुनाव लड़ना चाह रहे थे। इसके लिए उन्होंने खूब पैरवी भी की। वह ब्राह्मण बिरादरी से आते हैं। लिहाजा एक सोच यह भी थी कि गठबंधन के बैनर तले ब्राह्मण और जाट बैंक को लामबंद करके एक मजबूत चुनौती पेश की जा सकती है। इसी वजह से पार्टी नेता और स्थानीय डॉ. बीके कौशिक का नाम भी रेस में शामिल था, लेकिन कांग्रेस से ब्राह्मण प्रत्याशी आने की संभावनाएं मजबूत होने की वजह से ऐन वक्त पर गठबंधन को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। आखिरी क्षणों में कृष्ण अग्रवाल को नवीन जयहिद व कौशिक पर तरजीह दी गई।

वोट ट्रांसफर कितना होगा, यह अहम मंथन का विषय

जजपा और आप गठबंधन में यह चुनाव लड़ रहे हैं। करनाल सीट आम आदमी पार्टी के पास गई है। जजपा ने अपने उदय के बाद करनाल संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले हलकों में जनाधार बढ़ाने के लिए काम किया। इससे वोट बैंक भी तैयार हुआ। लेकिन जो वोट बैंक जजपा ने अपने लिए तैयार किया, वह किस हद तक आप प्रत्याशी को ट्रांसफर होगा। यह भी एक अहम मंथन का विषय है। लिहाजा वोट को शत प्रतिशत ट्रांसफर करवाने के लिए भी दोनों दलों को खूब जोर अजमाइश करनी होगी।


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