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गन्ने की फसल पर रहस्यमयी बीमारी का प्रकोप, किसान बेहाल

-यमुना से सटे इलाकों में नजर आ रहा व्यापक प्रभाव

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Sep 2020 06:40 AM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 06:40 AM (IST)
गन्ने की फसल पर रहस्यमयी बीमारी का प्रकोप, किसान बेहाल

-यमुना से सटे इलाकों में नजर आ रहा व्यापक प्रभाव

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-विशेषज्ञों ने माना-रोग नियंत्रण करना अब आसान नहीं

-बिजाई के समय ही दवा नहीं डालने से बिगड़ी स्थिति

फोटो 13

जागरण संवाददाता, करनाल: पहले कोरोना काल और अब तीन अध्यादेशों को लेकर मचे बवाल के बीच किसानों की चिता बढ़ाने वाली नई समस्या खड़ी हो गई है। यह स्थिति गन्ने में लगे रहस्यमय रोग के कारण उत्पन्न हुई है। इसमें गन्ने के ऊपरी हिस्से में सुंडीनुमा कीट लग रहा है, जो गन्ने को ऊपर से खाना शुरू करता है तो गन्ने की ग्रोथ रुक जाती है। इसके बाद यह धीरे धीरे सूख जाता है। इससे काफी बड़े क्षेत्र में फसल पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिससे किसानों का बुरा हाल है। विशेषज्ञों ने जो दवा इसके उपचार के लिए बताई, वह भी कारगर साबित नहीं हुई। नतीजतन, गन्ने की प्रचलित 238 वैरायटी बड़े पैमाने पर बर्बाद हो रही है। विशेषज्ञों ने ऐसे में किसानों को अलग-अलग किस्मों की बुआई करने की सलाह दी है ताकि उन्हें अधिक नुकसान न हो। गन्ने की अर्ली प्रजाति कोसा-238 को गन्ना किसान वरदान मानते रहे हैं लेकिन अब कई जगह और खासकर यमुना नदी से सटे क्षेत्रों में यह लगातार असाध्य बीमारियों की शिकार बन रही है। इससे किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर यमुना नदी से सटे क्षेत्रों में नजर आ रहा है, जिनमें नबीपुर, महमदपुर सहित दर्जनों गांवों के खेत शामिल हैं। प्रभावित किसानों में शामिल नबीपुर के कमल काम्बोज ने बताया कि यह रोग इतना रहस्यमयी है कि तमाम प्रयासों के बावजूद इस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा। फसल बर्बाद होने का खतरा खड़ा हो गया है। वहीं विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि इस बार गन्ने की सीओ-238 वैरायटी यमुना से सटे क्षेत्रों में बीमारी की शिकार हो रही है। पहले इसमें टॉप बोरर की शिकायत रही जबकि बाद में इसे पोका बोइंग रोग ने भी काफी नुकसान पहुंचाया। अब जो स्थिति है, उसमें प्रभावित फसल को बचाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है। गन्ना विभाग के एडीओ सुभाष जागलान ने बताया कि यह स्थिति अनायास नहीं बनी। किसानों को अप्रैल-मई में बिजाई के समय ही आवश्यक एहतियात बरतनी चाहिए थी। लेकिन तब कई किसानों ने फसल में बचाव के लिए दवा का प्रयोग नहीं किया। अगस्त में भी पोका बोइंग से बचाव के लिए फसल में कोराजन के साथ 13 किलो प्रति एकड़ कार्बोपुरान का स्प्रे करना चाहिए था। ऐसा नहीं करने से ही फसल बर्बादी के कगार पर पहुंच गई है। प्रचलित वैरायटी है सीओ-238

विशेषज्ञ बताते हैं कि सीओ-238 प्रचलित वैरायटी है, जो दरअसल कई वर्ष पूर्व प्रचलित रही सीओ-89003 वैरायटी की तुलना में बेहतर यील्ड देने के कारण काफी प्रयुक्त की जा रही है। पुरानी वैरायटी में गन्ने का कैंसर कहलाने वाला रेड रोट रोग लगने के कारण इसे किसानों ने बहुतायत से अपनाया लेकिन अब इसमें भी तमाम किस्म की शिकायतें देखने को मिल रही है। बेहतर यही है कि किसान इसकी बिजाई के समय से ही आवश्यक दवाओं का प्रयोग करें ताकि उचित समय पर इसमें रोग नियंत्रण हो सके। वैरायटी बढ़ाने पर दें ध्यान

एडीओ सुभाष जागलान ने बताया कि गन्ना किसानों को फसल उत्पादन में वैरायटी बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। मसलन, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सीओएच-160 वैरायटी बहुत अच्छी है। इसी तरह करनाल स्थित गन्ना प्रजनन अनुसंधान संस्थान की ओर से भी कई किस्में विकसित की गई हैं, जिनका प्रयोग करना चाहिए। किसान एक ही वैरायटी पर निर्भर रहेंगे तो इसी प्रकार की समस्याएं आ सकती हैं।


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