मां ने 17 साल बीमारी से लड़ी जंग, अब डाक्टर बिटिया निभा रही मानवता का धर्म
पवन शर्मा करनाल मां को 17 साल तक रोग शैया पर जिदगी और मौत से जूझते देखकर हम भाई-बहन कसमसाते रह जाते। उनकी बीमारी इतनी असाध्य थी कि न शरीर हिलता और न कुछ खा सकती थीं।
पवन शर्मा, करनाल: मां को 17 साल तक रोग शैया पर जिदगी और मौत से जूझते देखकर हम भाई-बहन कसमसाते रह जाते। उनकी बीमारी इतनी असाध्य थी कि न शरीर हिलता और न कुछ खा सकती थीं। सब कृत्रिम तरीके से करना पड़ता। लेकिन, जीने की इच्छाशक्ति इतनी प्रबल कि केंद्र सरकार ने भी बाकायदा प्रोत्साहन पत्र भेजकर उनका हौसला बढ़ाया था। आज मां दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे संतोष है कि कोरोना से लड़ रहे मरीजों को बचाने में कुछ योगदान दे पा रही हूं। ये इतने टूटे हुए हैं कि, मुझे किसी की बहन तो किसी की दोस्त बनकर उन्हें भावनात्मक सहारा देना पड़ता है। आइसीयू में तमाम खतरे हैं लेकिन कुछ घंटे की ड्यूटी के बाद इन मरीजों के चेहरों पर मुस्कान देखती हूं तो हर तकलीफ भूल जाती हूं।
कोरोना वायरस का आतंक चरम पर है। ऐसे में करनाल की बेटी डा. आकांक्षा भाटिया ग्रेटर नोएडा के स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च स्थित स्पेशल कोरोना आइसीयू पहुंचीं तो यहां भर्ती मरीजों के मन में समाई दहशत देखकर एक बार वह भी सिहर गईं। फिर अगले ही पल खुद को संभाला और जी-जान से इन रोगियों की सेवा में जुट गईं। एमडी शिक्षित डा. आकांक्षा ने फोन पर दैनिक जागरण को बताया कि पिता वनीत भाटिया उद्योग विभाग में उपनिदेशक हैं और छोटा भाई सार्थक एमबीबीएस फाइनल इयर में है। वह बहुत छोटी थीं, जब मां को असाध्य बीमारी सेरेबल पॉलिसी से ग्रस्त होने के कारण बिस्तर पर देखा। वह इसी अवस्था में 17 वर्ष तक रहीं और जब उनका प्राणांत हुआ तो हम दोनों भाई-बहन ठान चुके थे कि डाक्टर ही बनना है ताकि ऐसे तमाम लोगों की सेवा कर सकें।
डा. आकांक्षा ने बताया कि चंद रोज पहले उन्हें ग्रेटर नोएडा स्थित कोरोना आइसीयू बुला लिया गया। कुछ पता नहीं था, कितना रिस्क होगा। लेकिन पापा व भाई ने हौसला बढ़ाया। सात दिन से आइसीयू में हूं और रोजाना आठ घंटे की नॉनस्टॉप ड्यूटी है। न वॉशरूम जा सकते हैं और न पानी पी सकते हैं। चारों तरफ कोरोना पॉजिटिव मरीज हैं, जिन्हें दवा व इंजेक्शन देने क्लोज कॉन्टेक्ट में आना पड़ता है। ऐसे में पीपीई यानी विशेष वस्त्र से बचाव करते हैं। सात दिन का पीरियड पूरा होने के बाद 14 दिन क्वारंटाइन में रहेंगे।
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दीदी..प्लीज मेरे पास आओ न
करनाल: आकांक्षा बताती हैं कि आइसीयू में भर्ती हर मरीज की अलग दास्तान है। सबको कठिन समय में भावनात्मक सहारा चाहिए। एक 17 वर्षीय युवती अक्सर दीदी कहकर उन्हें पास बुलाती तो एक दंपती भी यहां भर्ती रहा। पति ज्यादा गंभीर होने के चलते आइसीयू में भर्ती था तो पत्नी आइसोलेशन वार्ड में लेकिन दोनों के बीच बात संभव नहीं थी। अक्सर फोन पर दोनों से बात करके उनका मन बहलाना पड़ता। ये मरीज इतने सहमे हैं कि मैं उन्हें एक पल के लिए अकेला महसूस नहीं होने देती।
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मेरा हौसला, मेरा परिवार
करनाल: बकौल डा. आकांक्षा, उनका परिवार ही उनका हौसला है। मां 17 साल रोग शैया पर थीं लेकिन जिदगी के आखिरी पल तक उनमें झलकती रही जीने की ललक नई ताकत देती है। पिता हमेशा मानवता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताते रहे तो छोटा भाई भी जल्द डाक्टर बनकर चिकित्सीय सेवा में सर्वस्व न्योछावर करना चाहता है।