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सियासी शह के सहारे चैन की बंसी बजा रहे डिफाल्टर, निगम बेपरवाह

राजनीतिक संरक्षण और नगर निगम प्रशासन की लापरवाही के कारण करोड़ों रुपये का प्रॉपर्टी टैक्स शहर के डिफाल्टर डकार कर बैठे हुए हैं। सरकारी खजाने को चूना लगाकर अपना घर भरने वालों में आवासीय मकान दुकान व्यापारिक संस्थान प्राइवेट स्कूल अस्पताल अन्य भवनों और सरकारी कार्यालय शामिल हैं। वर्ष-2010 से बकाया 12

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 09:33 AM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 09:33 AM (IST)
सियासी शह के सहारे चैन की बंसी बजा रहे डिफाल्टर, निगम बेपरवाह

जागरण संवाददाता, करनाल : राजनीतिक संरक्षण और नगर निगम प्रशासन की लापरवाही के कारण करोड़ों रुपये का प्रॉपर्टी टैक्स शहर के डिफाल्टर डकारकर चैन से बैठे हैं। सरकारी खजाने को चूना लगाकर अपना घर भरने वालों में आवासीय मकान, दुकान, व्यापारिक संस्थान, प्राइवेट स्कूल, अस्पताल, अन्य भवनों और सरकारी कार्यालय शामिल हैं। 2010 से बकाया 128 करोड़ रुपये में से 78 करोड़ रुपए के टैक्स की देनदारी सरकारी कार्यालयों की है। देनदारों पर नेताओं व निगम प्रशासन की मेहरबानी पिछले पांच साल से है। नतीजा यह है कि नगर निगम प्रशासन 47 डिफाल्टर संस्थानों पर नोटिस चस्पा करने के बावजूद सांप-सीढ़ी के खेल में उलझा हुआ है। सभी दांवपेच के बावजूद निगम के खाते में मात्र 11.60 करोड़ ही जमा हुए हैं। नगर निगम के गिरते राजस्व का असर विकास कार्यों पर पड़ रहा है। ---बॉक्स----

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1.40 लाख यूनिट से 23 करोड़ रुपये की टैक्स वसूली का लक्ष्य

नगर निगम प्रशासन के अंतर्गत शहर की 1.40 लाख यूनिट से 23 करोड़ रुपये की टैक्स वसूली का लक्ष्य रहता है। कमजोर रणनीति के कारण सरकारी पैसे को चूना लगाने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है और निगम प्रशासन का खजाना खाली होता जा रहा है। विधायक व मेयर बेशक शहर में विकास के दावों पर अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते, लेकिन डिफाल्टरों से सरकारी पैसा निकलवाने में स्थाई योजना तैयार नहीं करवा सके हैं। हालात ये हैं कि संपत्तियों के मालिक अपनी जेब में पैसा रखकर निगम प्रशासन को अंगूठा दिखा रहे हैं। निगम की आय निरंतर घटने के कारण विकास तो दूर कर्मचारियों को वेतन के लाले तक पड़ने के आसार बनते जा रहे हैं। ---बॉक्स----

समय से डवलप नहीं करवाया गया सॉफ्टवेयर

प्रापर्टी टैक्स वसूली को ऑनलाइन करने के लिए नगर निगम प्रशासन वर्ष-2019 में छह माह तक सॉफ्टवेयर डवलप कराने की उलझन में फंसा रहा। प्रॉपर्टी की खरीद-फरोकत करने वाले को मजबूरन पर्चा भरकर टैक्स जमा करवाया गया, लेकिन अधिक टैक्स दाता अपनी बकाया राशि जमा करवाने में हाथ खींचते रहे। इसके अलावा, सरकारी खजाने को चूना लगवाने वाले नगर निगम अधिकारियों ने किसी तरह का जागरूक अभियान भी नहीं चलाया गया। सरकार की ओर से 2010-11 से 2018-19 तक के टैक्स पर ब्याज माफी के पत्र का भी डिफाल्टरों पर कोई असर नहीं पड़ा। अगर नगर निगम के वार्षिक खर्च की बात करें तो 85 करोड़ रुपये से अधिक बताया जा रहा है। ---बॉक्स---

टैक्स लागू होने से ही बकाया का सफर शुरू

नगर निगम प्रॉपर्टी टैक्स वसूली में लागू होने के समय से ही कमजोर साबित हो रहा है। वर्ष-2010-11 से लागू हुए टैक्स में अब तक 128 करोड़ रुपये बकाया लोगों के पास है। अगर ब्याज सहित गणना की जाए तो राशि 159 करोड़ रुपये बन जाती है। नगर निगम प्रशासन 128 करोड़ रुपये तो दूर चालू वित्त वर्ष का भी वसूल नहीं कर पा रहा है। चालू वित्त वर्ष में अधिकारियों की लापरवाही के कारण सॉफ्टवेयर का भी अड़ंगा रहा, जोकि छह माह तक लटकता रहा। बाद जब सॉफ्टवेयर पर अधिकारी स्पष्ट हुए तो नगर निगम का सर्वर ठप हो चुका था। इन हालातों में नगर निगम के खाते में मात्र 11.60 करोड़ रुपये ही ईमानदार टैक्स धारकों का जमा हो सका है। ---बॉक्स----

शहर की प्रत्येक संपत्ति टैक्स के घेरे में

हरियाणा नगर निगम अधिनियम 1994 की धारा 104 व 145 के अंतर्गत प्रत्येक सम्पत्ति कर दाता अपने मकान, प्लाट का पूर्ण विवरण देने के लिए बाध्य है। इसके लिए सरकार की ओर से अधिकृत की गई प्राइवेट कंपनी के कर्मचारी शहर में घर-घर जाकर संपत्ति कर का सर्वे किया गया है। प्रत्येक संपत्ति मालिक को अपनी प्रॉपर्टी को सरकारी रिकार्ड में दर्ज करवाने के आदेश जारी किए गए थे। इसके अलावा, बिजली व पानी के बिल की कॉपी, फोटो युक्त आईडी प्रूफ तथा पूर्व में जमा करवा कर अपना रिकार्ड में नाम दर्ज करवा सकते हैं। सर्वे के बाद संपत्ति व सूचनाओं को ऑनलाइन किया गया है, जिससे प्रॉपर्टी टैक्स बारे में पूरी जानकारी कम्प्यूटर में दर्ज है। ---बॉक्स----

अब तक कुर्की की कार्रवाई बेहद कम

अधिवक्ता रामकुमार ने बताया कि नगर निगम जब भी बड़े बकायादारों के खिलाफ अभियान चलाता है तब-तब राजनीतिक विरोध सामने आने पर कदम वापस पीछे खींच लिए जाते हैं। दिखावे के नाम पर प्रशासन की ओर से नोटिस चस्पाए जाते हैं ताकि खुद की कुर्सी को सुरक्षित कर सकें। डिफाल्टरों की अगर लिस्ट को खंगाला जाए तो अधिकतर राजनेताओं और नगर निगम अधिकारियों के चहेते निकलेंगे। पिछले आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो निगम प्रशासन की ओर से अब खानापूर्ति के नाम पर प्रॉपर्टी टैक्स वसूली के लिए कुर्की के आदेश जारी किए गए होंगे। ---बॉक्स----

बकायेदारों पर कार्रवाई के लिए टीम का गठन

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नगर निगम कमिश्नर राजीव मेहता ने बताया कि प्रॉपर्टी टैक्स जमा करवाने के लिए सरकार की ओर से 31 जनवरी तक छूट दी गई है। बकायादारों से वसूली के लिए नगर निगम की ओर से टीम का गठन किया जाएगा। निर्धारित समयाविधि के बावजूद टैक्स जमा नहीं कराने पर कार्रवाई की जाएगी। वहीं, उपायुक्त निशांत कुमार यादव ने बताया कि बकाया वसूली में किसी किस्म की रियायत नहीं दी जाएगी। रि-असेसमेंट की प्रक्रिया पूरी होते ही इस दिशा में कड़े कदम उठाए जाएंगे।


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