Move to Jagran APP

जय ¨सह राणा ने पंच से लेकर मंत्री बनने तक का सफर तय किया

जय ¨सह राणा ने पंच से लेकर मंत्री बनने तक का सफर तय किया। अपने क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह चार बार विधानसभा चुनाव जीते।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 02:02 AM (IST)Updated: Tue, 04 Sep 2018 02:02 AM (IST)
जय ¨सह राणा ने पंच से लेकर मंत्री बनने तक का सफर तय किया

संवाद सूत्र, नीलोखेड़ी : जय ¨सह राणा ने पंच से लेकर मंत्री बनने तक का सफर तय किया। अपने क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह चार बार विधानसभा चुनाव जीते। इनमें से भी दो बार निर्दलीय चुनाव जीते तो उनका राजनीतिक कद और बढ़ गया। वह दो बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते। वह पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के नजदीकी रहे। लिहाजा हजकां का गठन हुआ तो वह कांग्रेस को अलविदा कहकर हजकां में चले गए थे।

loksabha election banner

उनके निधन का पता चलते ही समाजसेवी व शिक्षण संस्थाओं के साथ ही राजनीतिक दलों ने शोक जाहिर किया। नीलोखेड़ी हलके आरक्षित होने से पहले जय ¨सह राणा इस क्षेत्र की राजनीति में बड़ा कद रखते थे। राजनीति में कदम उन्होंने पंचायत चुनाव में उतरकर रखा। पहली दफा 1969 में अपने गांव नड़ाना में पंच बने। अपनी छवि के दम पर वह सर्वसम्मति से सरपंच बनाए गए। 1972 में वह फिर सरपंच बने। यही से उनका राजनीतिक व्यक्तित्व आगे बढ़ने लगा।

लगातार दो बार सरपंच बन जाने के बाद 1972 में वह नीलोखेड़ी से पंचायत समिति के चेयरमैन बने। वह इस पद पर पांच साल तक रहे। इस दौरान उन्होंने हलके लोगों के बीच में गहरी पैठ कायम कर ली थी। 1987 के चुनाव में इसी पैठ के बूते वह निर्दलीय विधायक बने। 1990 में हुकम ¨सह की सरकार गिरने के बाद वह 1991 में फिर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जनता के बीच में गए और जनता ने भी उन्हें फिर से विधायक बना दिया।

लगातार दो बार निर्दलीय विधायक बनने से उनका नाम प्रदेश के राजनीतिक फलक की ओर बढ़ा। उनका झुकाव कांग्रेस की ओर हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें 1996 में टिकट प्रदान किया। वह तीसरी बार फिर विधायक बने। वर्ष 2000 में वह चौथी पर हलके की जनता के बीच गए लेकिन इस बार उन्हें जनसमर्थन नहीं मिल सका। इस हार के बाद वह फिर से लोगों के बीच में सक्रिय हो गए। वर्ष 2005 में कांग्रेस के निशान पर चुनाव में उतरे। इस बार उन्हें जीत मिली। वह कांग्रेस सरकार में हरियाणा हाउ¨सग बोर्ड के मंत्री रहे। पूर्व सीएम भजन लाल के नजदीकी होने की वजह से उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहकर हजकां का दामन थाम लिया था।

नीलोखेड़ी हलका आरक्षित होने का सबसे ज्यादा नुकसान जय ¨सह को हुआ। इसके बाद उन्होंने अपना नया राजनीतिक क्षेत्र घरौंडा हलके को चुना। वर्ष 2014 में हजकां की टिकट पर उन्होंने घरौंडा से चुनाव लड़ा लेकिन यहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

इकलौते पुत्र की मृत्यु ने दिया था गहरा झटका

वर्ष 2009 में जय ¨सह राणा के इकलौते पुत्र देवेंद्र राणा की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। इस हादसे ने उन्हें गहरा सदमा प्रदान किया। उनके दो पोते हैं। एक पोता कानून की शिक्षा ले रहा है और दूसरा पोता एमबीबीएस कर रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.