बिगड़ते घरेलू हालात में अपनों से दूर भाग रहे मासूम, छिन रहा बचपन
कहीं माता-पिता की भाग-दौड़ भरी जिदगी तो कहीं पारिवारिक झगड़े से बिगड़ते घरेलू हालात बचपन पर भारी पड़ रहे हैं। इससे न केवल मासूमों का बचपन छिन रहा है।
सेवा सिंह, करनाल : कहीं माता-पिता की भाग-दौड़ भरी जिदगी तो कहीं पारिवारिक झगड़े से बिगड़ते घरेलू हालात बचपन पर भारी पड़ रहे हैं। इससे न केवल मासूमों का बचपन छिन रहा है, बल्कि वे अपनों से दूर भी भाग रहे हैं। उनकी सोच-समझ पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है। हालात ये हैं कि एक साल के दौरान ही 574 बच्चे प्रदेश के विभिन्न जिलों के साथ आसपास के दूसरे प्रदेशों तक से अपनों से बिछुड़कर करनाल पहुंचे हैं। इनमें चार से लेकर 17 साल तक के बच्चे शामिल हैं। हालांकि ऐसे बच्चों को अपनों से मिलाने के लिए जिला बाल कल्याण समिति सेतु बन रही है, जिसने 529 बच्चों को अपनों से मिला दिया। मासूमों की जिदगी पर पड़ता असर व परिवारों के हालात देख समिति पदाधिकारी भी चितित हैं। कई मामले ऐसे हैं, जिनमें स्वजनों ने बच्चों को अपनाने में असमर्थता जताई। 2019 में ही समिति के संज्ञान में आए 33 बच्चों को बाल कल्याण संस्थानों में भेजना पड़ा जबकि 10 बच्चों को सरकार की आर्थिक सहायता की योजना के तहत स्वजनों को सौंपा गया है।
कहीं नशा तो कहीं गरीबी आ रही आड़े
बाल कल्याण समिति के पदाधिकारियों की मानें तो कहीं नशा तो कहीं गरीबी मासूमों के आड़े आ रही है। ऐसे बच्चे भी सामने आए हैं, जिनकी आधारभूत जरूरत परिवार में पूरी नहीं हो पाती, जिससे वे स्वजनों से दूर हो जाते हैं। कई बच्चों पर गलत संगत का असर पड़ रहा है, तो कई माता-पिता या शिक्षकों से उत्पीड़ित होने पर घर छोड़ रहे हैं।
सामूहिक दुष्कर्म पीड़ित को नई जिदगी देने का प्रयास
असंध क्षेत्र में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार बच्ची को समिति ने नई जिदगी देने का प्रयास किया है। समिति ने उसके उपचार के दौरान देखभाल की जिम्मेदारी निभाई। किशोर न्याय निधि से उसे 15 लाख रुपये की सहायता दिलाने के प्रयास किए। उनमें तीन लाख 75 हजार रुपये जारी हो चुके हैं। बॉक्स
भागने वालों में चार से 17 साल तक के बच्चे : चानना
जिला बाल कल्याण समित के चेयरमैन उमेश चानना का कहना है कि अपनों से बिछुड़ने वालों में चार से 17 साल तक के बच्चे हैं। इनमें छात्रों से लेकर घर पर ही रहने वाले बच्चे शामिल हैं। कई बच्चों को मासूमियत में परिवार का प्यार नहीं मिल पाया है। समिति को ऐसा कोई बच्चा मिलता है तो उसकी बेहतर माहौल में गहन काउंसिलिग की जाती है, ताकि हकीकत पता चल सके। फिर स्वजनों का पता कर उन्हें मिलाया जाता है। समिति हर हालात के बच्चे को संभालने के लिए तैयार है।