किसान अभी भी नहीं चेते तो प्रकृति को पहुंचेगा नुकसान, बढ़ेगा तापमान, घटेगा पानी
पराली जलने के कारण जमीन, आसमान, हवा और पताल चारों प्रभावित हो रहे हैं। इससे मिट्टी की ऊर्वरा शक्ति तो खत्म हो ही रही है, साथ ही पानी की कमी भी हो सकती है।
जेएनएन, करनाल। महज धुएं से होने वाले प्रदूषण का मसला नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे जमीन, आसमान, हवा और पताल चारों प्रभावित हो रहे हैं। हरियाणा में 40 लाख टन पराली जलाई जाती है। पर्यावरणविदों के अनुसार यदि किसान नहीं जागे तो अगले 20 से 30 साल में भूमि की उत्पादन क्षमता बहुत कम हो जाएगी। आकृति संस्था के अध्यक्ष अनुज सैनी ने का कहना है कि तापमान बढ़ने से पानी की मांग 20 फीसद तक बढ़ेगी, जबकि इसकी उपलब्धता 15 फीसद तक घट जाएगी।
पराली में जहरीली गैसें
एक टन पराली जलाने से हवा में तीन किलो कार्बन कण, 1513 किग्रा कार्बन डाइऑक्साइड, 92 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 3.83 किग्रा नाइट्रस ऑक्साइड, 0.4 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड, 2.7 किग्रा मीथेन और 200 किलो राख घुल जाती है।
खेती पर मार
भूमि की ऊर्वरा शक्ति लगातार घट रही है। इस कारण भूमि में 80 फीसद तक नाइट्रोजन, सल्फर और 20 फीसद अन्य पोषक तत्वों में कमी आई है। मित्र कीट नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ा है, जिससे फसलों में बीमारियां हो रही हैं। मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जलधारण क्षमता में कमी आई है।
बढ़ने लगे मरीज
प्रदूषित कण शरीर के अंदर जाकर खांसी को बढ़ाते हैं। अस्थमा, डायबिटीज के मरीजों को सांस लेना दूभर हो जाता है। फेफड़ों में सूजन सहित टांसिल, इन्फेक्शन, निमोनिया और हार्ट की बीमारियां जन्म लेने लगती हैं। खासकर बच्चों और बुजुर्गो को ज्यादा परेशानी होती है।
गंभीरता दिखाए सरकार
सिर्फ कानून बनाकर ही समस्या से पार पाना संभव नहीं। सरकारी स्तर पर हैप्पी सीडर, जीरो टीलेज मशीन, रोटावेटर जैसे कृषि यंत्रों पर अनुदान बढ़ाया जाए। किसानों को अनुदान पर बीज मिले। बॉयोमास पावर प्लांट लगाए जाएं तो करीब 44 लाख टन कृषि वेस्ट की खपत हो सकती है।
आकृति ने अंबाला, कुरुक्षेत्र, यमुानगर, करनाल और कैथल मे चलाया अभियान
अनुज ने बताया कि उन्होंने अंबाला, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, करनाल और कैथल में पराली के लिए एक अभियान चलाया है। इसमें उन्होंने किसानों को न सिर्फ पराली जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक कर रहे हैं, इसके साथ ही उन्हें इससे निपटने के उपाय की भी जानकारी दी जा रही है। देखने में आ रहा है कि सरकारी स्तर पर घोषणाएं तो खूब हो रही है। इस वजह से किसानों के सामने आग लगाने के सिवाय कोई चारा नहीं बच रहा है। पराली से निपटने के लिए उपकरण नहीं मिल रहे हैं।