इस बार 100 एमएमटी उत्पादन की उम्मीद : डॉ. जीपी ¨सह
जागरण संवाददाता, करनाल राष्ट्रीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र प्रत
जागरण संवाददाता, करनाल
राष्ट्रीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप ¨सह ने कहा कि गेहूं बिजाई के लिए उपयुक्त मौसम है। अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी है कि किसान गेहूं बुआई से पहले अच्छी किस्मों का चुनाव करें। इससे उत्पादन तो अच्छा होता ही है साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है। वह सोमवार को संस्थान में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देशभर में 30.6 मीलियन हेक्टेयर में गेहूं की बिजाई होगी। उत्पादन भी 100 मीलियन मीट्रिक टन होने की उम्मीद है। इस बार रकबे में बढ़ोतरी नहीं हुई है, लेकिन उम्मीद है कि उत्पादन अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि गेहूं की एचडी-2967, एचडी-3086, डब्ल्यूबी-2, डब्ल्यूएच-1105 अरली किस्में हैं। इस समय बुआई हो जानी चाहिए। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि विश्वसनीय सोर्स से ही गेहूं का बीज लें। डॉ. जीपी ¨सह ने कहा कि अच्छे बीज से ही 50 प्रतिशत समस्या दूर हो जाती है। डीबीडब्ल्यू-90, एचडी-3059 आधुनिक वैरायटियां भी आई हैं। नवंबर के पहले पखवाड़े में इनकी बिजाई जरूरी कर लेनी चाहिए। इस मौके पर उनके साथ राजेंद्र शर्मा भी मौजूद थे।
धान के अवशेषों को जलाने की बजाए मिट्टी में मिलाएं
डब्ल्यूआर के निदेशक ने किसानों से आह्वान किया कि वह धान के अवशेषों को जलाने की बजाए उसमें ही मर्ज करें। इससे जमीन को जो नाइट्रोजन चाहिए उसकी कमी पूरी होगी। जहां किसान तीन खाद डालते हैं उन्हें दो खाद ही डालने पड़ेंगे। इसके अलावा नीम कोटिड यूरिया का इस्तेमाल करने की सलाह दी है। धान की फसल लेने के बाद खेती की बिना जुताई करे डायरेक्ट सी¨डग करें। इसे जुताई का खर्च बच जाता है।
20 से 22 डिग्री होना चाहिए तापमान
गेहूं बिजाई के लिए तापमान 20 से 22 डिग्री होना चाहिए। बिजाई इस तापमान में बीज जर्मिनेशन अच्छा होता है। मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नमी होना जरूरी है। किसानों को तापमान को ध्यान रखते हुए गेहूं की बिजाई करें। यह बिल्कुल उपयुक्त है।
गेहूं के अच्छे उत्पादन में सोयल हेल्थ कार्ड की भी अहम भूमिका
निदेशक ने कहा कि हरियाणा व पंजाब गेहूं उत्पादन में अग्रणी हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बेहतर उत्पादन में सोयल हेल्थ कोर्ड की अहम भूमिका है। मृदा की खराब हो रही सेहत को ध्यान में रखते हुए सोयल हेल्थ कार्ड अनिवार्य किए गए, जिसका फायदा भी किसानों को मिला है। उन्होंने बताया कि मिट्टी की जांच में किसानों को पता चल जाता है कि जमीन में किन पोषक तत्वों की कमी है और उसको पूरा करने के लिए क्या करना चाहिए।
15 प्रतिशत होता है अधिक उत्पादन
डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप ¨सह ने कहा कि हमारे शोध में यह बात सामने आई है कि धान के अवशेषों को जलाने की बजाय खेत में ही मर्ज कर दिए जाएं तो इससे नाइट्रोजन की कमी दूर हो जाएगी। भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी। इससे 10 से 15 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि होती है। किसानों हा होने वाला खर्च भी बचता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसानों की आय दोगुनी करने के वायदे को कहीं ना कहीं यह बल देगा। उन्होंने कहा कि अमूमन किसान साल में दो फसलें ही लेता है। लेकिन सही तरीके व समयबद्ध तरीके से खेती की जाए तो तीन फसल आसानी से ली जा सकती है।