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हुड्डा गुट ने दिया आशा को समर्थन, तंवर बोले-हर कार्यकर्ता खुद निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र

मनोज ठाकुर, करनाल हुड्डा गुट ने मेयर पद की आजाद प्रत्याशी आशा वधवा को समर्थन दिया है। इसे

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 01:32 AM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 01:32 AM (IST)
हुड्डा गुट ने दिया आशा को समर्थन, तंवर बोले-हर कार्यकर्ता खुद निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र
हुड्डा गुट ने दिया आशा को समर्थन, तंवर बोले-हर कार्यकर्ता खुद निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र

मनोज ठाकुर, करनाल

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हुड्डा गुट ने मेयर पद की आजाद प्रत्याशी आशा वधवा को समर्थन दिया है। इसे इनेलो-बसपा भी समर्थन दे चुकी है। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कुलदीप शर्मा के आवास पर स्थानीय नेताओं की मौजूदगी में आशा वधवा को समर्थन का एलान किया था। इस दौरान कुलदीप शर्मा के अलावा पूर्व विधायक सुमिता सिंह, पूर्वमंत्री भीमसेन मेहता, पूर्व विधायक राकेश काबोज, काग्रेस नेता मराठा वीरेंद्र वर्मा, कर्मचारी चयन आयोग के पूर्व सदस्य ललित बुटाना, काग्रेस के पूर्व ग्रामीण जिलाध्यक्ष सुरेंद्र नरवाल और पूर्व पार्षद जोगिंद्र चौहान उपस्थित थे। हुड्डा गुट के समर्थन के सियासी मायने 1 सीएम पर निशाना साधने की कोशिश

क्योकि भाजपा नगर निगम चुनाव अपने चिह्न पर लड़ रही है। करनाल सीएम का अपना विधानसभा क्षेत्र भी है। हुड्डा गुट आशा वधवा को समर्थन देकर सीएम पर निशाना साधने की कोशिश में है। यदि आशा वधवा जीत जाती हैं तो यह खेमा हुड्डा को बड़े रणनीतिकार के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकता है। 2 पार्टी में मजबूती मिल सकती है

हुड्डा इन दिनों जमीन मामलों की चल रही जाच की वजह से जाच एजेंसियों के निशाने पर हैं। ऐसे में इनकी रणनीति यदि कामयाब रहती है तो इससे हुड्डा को मजबूती मिलेगी, खास तौर पर पार्टी के भीतर। इसका लाभ विधानसभा चुनाव में भी मिलेगा। 3 प्रतिद्वंद्वी गुट पर भारी पड़ सकते हैं

पूर्व सीएम को सबसे ज्यादा चुनौती प्रदेशाध्यक्ष अशोक तवंर से मिल रही है। तंवर गुट बार-बार कह रहा है कि काग्रेस का समर्थन किसी को नहीं है। अब यदि यह गुट एक-दो मेयर भी जितवा ले जाता है तो केंद्रीय नेतृत्व के सामने तंवर की बात को काटने का बेस मिल सकता है। इस नुकसान की ओर नहीं देख रहा हुड्डा खेमा

1 राजनीतिक प्रतिबद्धता पर सवाल उठ सकता है। इनेलो-बसपा प्रत्याशी को समर्थन देने का सीधा सा मतलब यह है कि इस खेमे की राजनीति प्रतिबद्धता क्या है? इस मसले पर इन्हें घेरा जा सकता है। आशा वधवा मनोज वधवा की पत्नी है। मनोज इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़ा था। 2 प्रत्याशी क्यों नहीं खड़ा किया

यदि इस गुट को जीत का इनता ही भरोसा है तो फिर चुनाव में अपने प्रत्याशी क्यों खड़े नहीं किए। ऐसे में अवसरवादिता का आरोप भी इस गुट पर लग सकता है। इनेलो बसपा गठबंधन भी इन्हें घेर सकता है। जिसका जवाब देना मुश्किल होगा। 3 पार्टी में फूट का आरोप लगेगा

एक बार फिर से यहीं संदेश जा रहा है कि काग्रेस में आपसी फूट है। नेता मिलकर चल ही नहीं सकते हैं। आशा को समर्थन देने वाले नेताओं की जानें सियासी जमीन

सुमिता सिंह करनाल से असंध चली गई थीं। वहा जमानत जब्त हुई। करनाल से दो बार काग्रेस टिकट पर विधायक बन चुकी सुमिता सिंह ने पिछला विधानसभा चुनाव असंध से लड़ा था। वहां सीएम मनोहर लाल से हार का मुंह देखना पड़ा था। सुरेंद्र नरवाल भी नहीं बचा पाए थे जमानत

पिछले विधानसभा चुनाव में करनाल से काग्रेस के पूर्व ग्रामीण जिलाध्यक्ष सुरेंद्र नरवाल को टिकट थमाया था। बाद भी वह अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। कुलदीप शर्मा लोस चुनाव में जब्त करा चुके हैं जमानत

वर्ष 2004 में काग्रेस से लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं मिलने पर ये बागी हो गए थे और निर्दलीय करनाल से चुनाव मैदान में उतरे। चुनाव में 26 हजार के करीब मत मिले थे और जमानत जब्त हो गई थी। इंद्री की राजनीति में खुद को तलाशने वाले यहां आए समर्थन में

इंद्री की राजनीति में खुद को फिर से स्थापित करने की प्रक्रिया से गुजर रहे पूर्व मंत्री भीमसेन मेहता और पूर्व विधायक राकेश काबोज का भी नाम आशा वधवा को समर्थन देने वालों के रूप में सामने आया है। हजका के गठन के समय पूर्व विधायक राकेश काबोज काग्रेस को अलविदा कह कर हजका में शामिल हो गए थे। इसके बाद से ही वह लगातार संघर्ष की राजनीति करते आ रहे हैं। पूर्व मंत्री भीम सेन मेहता भी दोबारा से इंद्री से विधायक बनने का सपना रखते हैं। जनकपुरी ओशो सुमधुर ध्यान केंद्र में कार्यक्रम कल जागरण संवाददाता करनाल

शहर के जनकपुरी स्थित ओशो सुमधुर ध्यान केंद्र में 11 दिसंबर को ओशो का जन्मदिन मनाया जाएगा। इसकी जानकारी स्वामी जीवनपरितोष ने दी। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम में भजन कीर्तन, प्रवचन सहित कई आयोजन होंगे। उन्होंने कहा कि सुबह नौ बजे से शाम तक कार्यक्रम चलेंगे। कार्यक्रम की सभी तैयारिया पूरी हो चुकी है। जीवनपरितोष ने बताया कि कार्यक्त्रम को लेकर ओशो संन्यासियों में भारी उत्साह है। उन्होंने बताया कि गुरु ने जो फिलास्पी दी, वह आज भी उतना ही मायने रखती है, जितना उस वक्त थी। उन्होंने तनावरहित जीवन के सूत्र दिए हैं। जिनकी आज के प्रतिस्पर्धा के दौर में सख्त जरूरत है। भागदौड़ भरी जिंदगी में हम खुश होना भूल से गए हैं।


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