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भारत में बच्चों के लापता होने के रोजाना आ रहे 174 केस, जो दुनिया में सबसे ज्यादा : डा. मधुलिका

विद्यालय परिसर में विद्यार्थियों की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से तैयार की गई नियमावली को लेकर मंगलवार को वर्कशॉप का आयोजन हुआ। मौलिक शिक्षा विभाग की ओर से कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में बच्चों की सुरक्षा को लेकर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्यों ने भी अपनी भागीदारी रखी।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 09:40 AM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 09:40 AM (IST)
भारत में बच्चों के लापता होने के रोजाना आ रहे 174 केस, जो दुनिया में सबसे ज्यादा : डा. मधुलिका

जागरण संवाददाता, करनाल : विद्यालय परिसर में विद्यार्थियों की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से तैयार की गई नियमावली को लेकर मंगलवार को वर्कशॉप का आयोजन हुआ। मौलिक शिक्षा विभाग की ओर से कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में बच्चों की सुरक्षा को लेकर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्यों ने भी अपनी भागीदारी रखी।

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एनसीपीसीआर की सलाहकार डॉ. मधुलिका शर्मा ने कहा कि देश में हर वर्ष करीब 80 हजार बच्चे लापता हो जाते हैं, प्रतिदिन की संख्या देखे तो यह 174 है और यह आंकड़े दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में हैं। उन्होंने कहा कि लापता बच्चों में कुछ अपनी मर्जी से, भटक जाने से या अपहरण से गायब होते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो कभी लौटकर वापस घर नहीं आए। बच्चों की तस्करी भी बच्चों के लापता होने का एक कारण है। बच्चों से जुड़ी इस समस्या को लेकर समाज, परिवार, सरकारी तंत्र या किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी से समाधान किया जा सकता है। बिछड़े बच्चों की सूचना हेल्पलाइन नंबर 1098 पर देकर भी उनकी मदद कर सकते हैं।

बच्चों को डांटने के बजाय करें फेवर

वर्कशॉप में एनसीपीसीआर के टेक्नीकल एक्सपर्ट रजनीकांत व दिव्यांशी ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय व भारतीय कानूनों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अध्यापक व माता-पिता बच्चे को डांटने के बजाय उसकी छोटी-छोटी बातों को समझें और उसके साथ फेवर करें। रेगुलर काउंसिलिग रखें, पॉजीटिव एंगेजमेंट के साथ-साथ अभिभावक अपनी इन्वोल्वमेंट बनाए रखें। उन्होंने कहा कि किताबी ज्ञान हासिल करने के साथ-साथ डिजिटल लर्निंग भी कराएं, जिसे बच्चे आसानी से कर लेते हैं।

वाहन चालकों को किया नियमावली के प्रति जागरूक

तकनीकि सत्र में स्कूल वाहन और बच्चों की सुरक्षा को लेकर वक्ताओं ने चर्चा की। वाहन चालकों से कई तरह के सवाल किए और बच्चों की सुरक्षा को लेकर वे कितने सजग रहते हैं, नियमावली का पालन कर रहे हैं या नहीं, इसकी परख की। यातायात पुलिस के प्रचार अधिकारी राजीव रंजन ने प्रदेश में साल में 6 हजार लोग सड़क पर अपनी जान गवां देते हैं, इनमें ज्यादा बच्चे होते हैं। इनकी सुरक्षा का जिम्मा राजनीतिक दलों के मसौदे में शामिल होना चाहिए।

मीटिग के एजेंडे में हो सुरक्षा नियमावली : डीईईओ

जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी राजपाल ने कहा कि विद्यालयों में छात्रों की सुरक्षा के लिए जो नियमावली 2017 में तैयार की गई थी, सभी स्कूलों को उसका पालन करना चाहिए। प्रत्येक 15 दिन में स्कूल कमेटी की मीटिग के एजेंडे में इसे जरूर शामिल रखें। कार्यक्रम में आरटीए सहायक सचिव सतीश जैन व निरीक्षक जोगिन्द्र ढुल उपस्थित रहे।


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