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सरकारी स्कूलों में घटते बच्चे, बढ़ते सवाल

इन प्राथमिक स्कूलों में 25 से कम बच्चे पढ़ रहे हैं और शिक्षकों की संख्या पर्याप्त नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 31 Jan 2020 08:34 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jan 2020 08:34 AM (IST)
सरकारी स्कूलों में घटते बच्चे, बढ़ते सवाल
सरकारी स्कूलों में घटते बच्चे, बढ़ते सवाल

जागरण संवाददाता, करनाल : शिक्षा व्यवस्था सुधारने के तमाम प्रयासों के बावजूद जिले के 31 स्कूल बंद होने के कगार पर हैं। इन प्राथमिक स्कूलों में 25 से कम बच्चे पढ़ रहे हैं और शिक्षकों की संख्या पर्याप्त नहीं है। ऑनलाइन आंकड़ों के आधार पर मुख्यालय ने 25 से कम बच्चों वाले स्कूलों के नाम जिलास्तरीय अधिकारियों को भेज रिपोर्ट मांगी है। सक्षम व निष्ठा कार्यक्रमों में करोड़ों रुपये खर्चने के बावजूद सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर नहीं सुधर रहा है। नतीजतन अभिभावकों का झुकाव निजी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है। वहीं, सरकार को सरकारी स्कूल चालू रखने के लिए मिड-डे-मील, छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का सहारा लेना पड़ रहा है। तीन साल से स्ट्रेंथ पर नहीं सुधार

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जिले में 488 प्राइमरी व मिडल स्कूल हैं और डोर-टू-डोर प्रचार के बावजूद इन स्कूलों में अभिभावकों ने बच्चों को दाखिला नहीं दिलाया। इससे पहले नलवीखुर्द, रुकनपुर के स्कूल मर्ज हो चुके हैं जबकि जीपीएस डाकवाला रोड़ान, जीपीएस राय फार्म, जीपीएस नलवी खुर्द सहित जिले के 31 स्कूलों की वेरीफिकेशन रिपोर्ट को उच्चाधिकारियों को भेज दी गई है। विभाग का मानना है कि तीन साल से बच्चों की स्ट्रेंथ सुधर नहीं पा रही है, जबकि बजट पूरा खर्च हो रहा है। डाकवाला रोड़ान निवासी सुरजीत कुमार ने बताया कि अगर सरकारी स्कूलों पर नजर दौड़ाएं तो कुछ स्कूल बिना मुखिया के ही चल रहे हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में आधे से अधिक पद खाली हैं। शिक्षकों से विभाग द्वारा अन्य कार्य लेने पर बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है। रट्टा पद्धति के चलते पिछड़ रहे सरकारी स्कूल

अधिवक्ता रामकुमार ने बताया कि अधिकतर सरकारी स्कूलों में रट्टा पद्धति पर बच्चों को पढ़ाई करवाई जा रही है, जिसके चलते सरकारी स्कूलों में बच्चों के ज्ञान में वृद्धि नहीं हो पाती। प्रतिस्पर्धीय युग में माता-पिता अपने बच्चों को केवल किताबी पढ़ाई में टॉप करने को प्रेरित न करें। बालक या बालिका किस क्षेत्र में अग्रणी है उसे वैसी ही शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए। बुनियादी शिक्षा के तौर पर गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अंग्रेजी, हिदी, कम्प्यूटर ज्ञान, शारीरिक व्यायाम, पर्यावरण जागरूकता, राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों को शामिल किया जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर खेल-खेल में बच्चों को सिखाएं, माध्यमिक स्तर पर बच्चों में जागरूकता लाने के प्रयास जरूरी हैं। प्रायोजित तरीके से बनाया जा रहा निशाना

एंलीमेंटरी एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष दलबीर सिंह मलिक ने बताया कि सरकारी स्कूलों को प्रायोजित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। प्राइवेट स्कूलों की समर्थक लॉबी की तरफ से बहुत ही आक्रामक ढंग से इस बात का दुष्प्रचार किया गया है कि सरकारी स्कूलों से बेहतर निजी स्कूल होते हैं और सरकारी स्कूलों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची है। शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुए 9 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन आज 90 फीसदी से अधिक स्कूल आरटीई के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं। इसके बावजूद निजी संस्थान लगातार फले-फूले हैं। स्कूलों को ठीक करने की बजाए बंद या मर्जर करने का प्रयास किया जा रहा है। वेरीफिकेशन किया, रिपोर्ट मुख्यालय भेजी

जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी राजपाल चौधरी ने बताया कि एक स्कूल में कम से कम दो शिक्षक होने जरूरी हैं। जबकि 25 बच्चों पर एक शिक्षक होता है। अगर किसी स्कूल में 25 से कम बच्चे हैं और दो शिक्षक हैं ऐसे स्कूलों की संख्या पूरी करने व बच्चों का अनुपात बढ़ाने के लिए विभाग की ओर से युक्तिकरण करने की योजना बनाई गई है। आदेशानुसार 25 से कम बच्चे वाले स्कूलों की वेरीफिकेशन कर विभाग के पास रिपोर्ट भेज दी गई है। फिलहाल स्कूलों को बंद या मर्ज करने के लिए नोटिफिकेशन नहीं मिला है।


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