खेल-खेल में
कागजों में अचीवमेंट दिखाने के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों ने धड़ाधड़ सवा लाख मिट्टी के सैंपल की जांच करा दी।
..जब डॉक्टर ही हो गए ब्लैकलिस्ट
कुछ समय पहले की बात है। एक निजी अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर को हैवी लाइसेंस बनवाने का मन हुआ। नियम तो कहता था कि इसके लिए परिवहन विभाग में रोजाना हाजिरी देनी होगी। ट्रेनिग बस को रोजाना चलाना होगा। लेकिन यह सब झंझट डॉक्टर साहब की समझ से बाहर थे। जुगाड़ लगाने का प्रयास शुरू कर दिए। प्रयास कुछ हद तक सफल भी हुआ। उन्हीं के अस्पताल में एक डॉक्टर के रिश्तेदार रोडवेज में अधिकारी थे। उनके माध्यम से सेटिग भी हो गई कि वह केवल सप्ताह में एक बार हाजिरी लगा दें, यही काफी है। अब डॉक्टर साहब ने जब हाजिरी भरी तो संडे भी उपस्थिति दर्ज करा दी। मीडिया को मामले भी भनक लग गई। छानबीन शुरू की तो जांच भी हुई। डॉक्टर साहब दोषी पाए गए तो उन्हें हमेशा के लिए ब्लैक लिस्ट कर दिया गया कि वह कभी हैवी लाइसेंस के लिए अप्लाई नहीं कर सकेंगे।
आगे दौड़ पीछे छोड़ की नीति पर क्यों कृषि विभाग
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग में रोजाना नई योजनाएं आ रही हैं। एक महत्वपूर्ण योजना सॉयल हेल्थ कार्ड की भी है। मिट्टी की जांच से लेकर उसकी रिपोर्ट किसानों तक पहुंचाने के लिए जो तौर-तरीका होना चाहिए वह नहीं अपनाया जा रहा है। कागजों में अचीवमेंट दिखाने के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों ने धड़ाधड़ सवा लाख मिट्टी के सैंपल की जांच करा दी, लेकिन किसानों को पता ही नहीं है कि सॉयल हेल्थ कार्ड का क्या मतलब है? जब ये कार्ड बनकर कुछ किसानों के हाथ में गए उन्होंने महत्वपूर्ण कागज का टुकड़ा समझकर महफूज कर लिया। यह किस काम का है और उसके फायदे क्या हैं, यह उन्हें पता नहीं है। अब ऐसे में करोड़ों रुपये जिस योजना पर खर्च हो रहे हैं उसके बाद भी किसानों को इसकी जानकारी नहीं है। ऐसे में कृषि विभाग आगे दौड़ पीछे छोड़ की नीति पर क्यों चल रहा है। आसान नहीं इन्क्वास की परीक्षा
शहर के नागरिक अस्पताल में इन्क्वास की नेशनल टीम इसी माह में कभी भी विजिट कर सकती है। इसलिए हर छोटे से लेकर बड़े कार्यों को सेहत विभाग के बड़े अधिकारी बारीकी से देख रहे हैं। सख्ती भी की, लेकिन किसी को यह सख्ती रास नहीं आ रही है। अपनी ड्यूटी कटवाने के लिए चक्कर लगा रहा है तो कोई संस्थान की इज्जत समझकर कार्यों में जुट गया है। सिफारिशों के इस दौर में साहब भी परेशान हैं। सीमित मैन पावर के चलते जरूरत के अनुसार ड्यूटियां लगा दी हैं। इस परीक्षा में उत्तीर्ण होंगे या नहीं यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन अस्पताल में जिस प्रकार की व्यवस्था इस समय देखने को मिल रही है वह बहुत ही कम देखने को मिलती है। यह आने वाले कल की तैयारियों के एक ट्रायल के तौर पर देखी जा रही है। कुल मिलकार इन्क्वास की परीक्षा आसान नहीं है।
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हड़ताल अब सफल नहीं रही
हरियाणा राज्य परिवहन करनाल डिपो घाटे में जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है इसके लिए कई बार बैठक हुई, जिसमें मंथन हुए। एक पहलू निकलकर यह भी सामने आया कि कर्मचारी यूनियनों की आड़ में रूट पर दौड़ने की बजाय चौधर करना चाहते हैं। अब उन्हें रूट पर जाने के लिए कहें भी तो कैसे, क्योंकि उसका मामला भी इतना बढ़ जाता है। छोटी सी बात को लेकर बसों के पहिये जाम ना हो जाए इसलिए जिलास्तर के अधिकारी भी मौन हैं। चौधर की इस लड़ाई में किसी भी रूट का भला कम बल्कि नुकसान ज्यादा हुआ है। कर्मचारियों की मांगों को उठाया गया, लेकिन समय-समय पर दबती भी रही हैं। धीरे-धीरे कर्मचारियों को भी यह बात समझ आने लगी है कि अब समय नहीं है कि एक आवाज में एकजुट होंगे। हड़ताल अब कामयाब कम होने लगी हैं। एकजुटता पर काफी गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।