धार्मिक फिल्म चार साहिबजादे दिखाकर बच्चों को कराया इतिहास से रूबरू
दशमेश पिता गुरु गोबिद सिंह जी के छोटे साहिबजादों और माता गुजरी जी के शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में मंगलवार को लिटल एंजेल पब्लिक स्कूल में विद्यार्थियों को धार्मिक फिल्म चार साहिबजादे दिखाकर इतिहास से रूबरू कराया गया।
संवाद सूत्र, जलमाना: दशमेश पिता गुरु गोबिद सिंह जी के छोटे साहिबजादों और माता गुजरी जी के शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में मंगलवार को लिटल एंजेल पब्लिक स्कूल में विद्यार्थियों को धार्मिक फिल्म चार साहिबजादे दिखाकर इतिहास से रूबरू कराया गया। स्कूल प्रांगण में फिल्म चार साहिबजादे फिल्म को प्रोजेक्टर के माध्यम से बच्चों को दिखाया गया कि आनंदपुर साहिब पंजाब का किला छोड़ने और गुरु साहिब के चारों साहिबजादों की शहादत के बाद गुरुजी ने नांदेड़ (महाराष्ट्र) में गोदावरी नदी के तट पर डेरा लगाया। वहां तपस्या कर रहे माधोदास को पंजाब में मुगलों की ओर से हो रहे जुल्म और जबरन धर्म परिवर्तन कराने के बारे में बताते हुए इसका मुकाबला करने की प्रेरणा दी। माधेदास ने गुरुजी के आगे नतमस्तक होकर अमृत छका और माधोदास से बाबा बंदा सिंह बहादुर बन गए। बंदा सिंह ने नांदेड़ से फौज लेकर पंजाब की ओर कूच किया। पंजाब में मुगलों के अत्याचारों से त्रस्त जनता उनके साथ जुड़ती गई और बंदा सिंह ने समाना, कपूरथला, मुजफ्फराबाद को जीतने के बाद सरहिद पर हमला किया। छोटे साहिबजादों को जिदा दीवारों में चिनने वाले दो जालिम भाइयों, सरहिद के नवाब वजीर खां, उसके दरबारी सुच्चानंद को मौत के घाट उतार कर सन 1708 में पंजाब में खालसा पंथ स्थापित किया। स्कूल के निर्देशक दीपक कुमार अत्री व प्रधानाचार्य अजय कपूर ने कहा कि भारत हमेशा गुरु गोबिद सिंह का ऋणी रहेगा। उन्होंने अपने पूरे परिवार को देश और कौम के लिए कुर्बान कर दिया। पिता गुरु तेग बहादुर ने हिदू धर्म की खातिर चांदनी चौक में शहीदी दी। दो बड़े साहिबजादे चमकौर की जंग में शहीद हुए, दो छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (7 वर्ष) को इस्लाम कबूल न करने पर सरहिद पंजाब में जिदा दीवारों में चिनवा दिया गया। पोते की शहादत को देखकर गुरु जी की माता गुजरी जी ने भी प्राण त्याग दिए।