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उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ छठ महापर्व

रविवार को उगते हुए सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ आस्था और संस्कार के महापर्व छठ संपन्न हो गया। छठ पर्व मनाने वाले व्रती महिलाओं ने बाबा शीतलपुरी डेरे के घाट पर पूजा अर्चना की। बाबा शीतलपुरी के घाट पर नए वस्त्र धारण कर पूजन करने के लिए छठ पर्व मनाने वाले लोग पहुंचे थे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Nov 2019 09:25 AM (IST)Updated: Mon, 04 Nov 2019 09:25 AM (IST)
उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ छठ महापर्व
उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ छठ महापर्व

जागरण संवाददाता, कैथल :

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रविवार को उगते हुए सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ आस्था और संस्कार के महापर्व छठ संपन्न हो गया। छठ पर्व मनाने वाले व्रती महिलाओं ने बाबा शीतलपुरी डेरे के घाट पर पूजा अर्चना की। बाबा शीतलपुरी के घाट पर नए वस्त्र धारण कर पूजन करने के लिए छठ पर्व मनाने वाले लोग पहुंचे थे। छठ का व्रत काफी मुश्किल होता है इसलिए इसे महाव्रत भी कहा जाता है। इस दौरान छठी देवी की पूजा की जाती है। छठ देवी सूर्य की बहन हैं लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। छठ महापर्व के दौरान शनिवार की रात को जन विकास सेवा समिति की ओर से छठ माता का जागरण भी आयोजित किया गया। इसमें प्रसिद्ध गायकों में छठ माता का गुणगान किया।

जागरण के कार्यक्रम में कैथल के विधायक लीला राम ने मुख्यातिथि के रूप में शिरकत की। इस दौरान लोग भक्ति भाव में डूबे नजर आए और घाट के किनारे आस्था का सैलाब देखने को मिला। बाबा शीतलपुरी डेरे के घाट पर महिलाएं भगवान सूर्य की उपासना के लिए सुबह चार बजे से घाट पर पहुंच गई थी। इसके बाद ही महिलाओं ने उगते हुए सूर्य को अ‌र्घ्य दिया। छठ पर्व मनाने वाले श्रद्धालुओं में काफी उत्साह रहा। अ‌र्घ्य देने के बाद छठी मइया के लिए बनाए गए खास व्यंजन का प्रसाद लोगों में बांटा गया। चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत 31 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ था। पर्व को लेकर लोगों में उत्साह का माहौल रहा। इस आयोजन में पांच से छह हजार के करीब लोगों ने शिरकत की।

शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाता छठ

जन विकास सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. बीएन शास्त्री ने बताया कि हर वर्ष दिवाली के छठे दिन यानि कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को छठ पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को दिवाली के छठ दिन मनाया जाता है, जबकि अगले दिन सूर्याेंदय के समय अ‌र्घ्य देने के बाद यह संपन्न होता है। इसकी शुरूआत चतुर्थी को नहाय-खाय से होती है। अगले दिन खरना, जिसमें गन्ना के रस से बनी खीर प्रसाद के रूप में दी जाती है। षष्ठी को डूबते सूर्य और सप्तमी को उगते सूर्य को जल चढ़ाकर इस पर्व की समाप्ति होती है। छठी मइया को अ‌र्घ्य देकर संतान प्राप्ति और उनके अच्छे भविष्य की कामना की जाती है।


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