एक हुए दो कट्टर राजनीतिक दुश्मन, सुरजेवाला-जेपी ने मिलाया हाथ
कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में कभी एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला और कलायत के विधायक जयप्रकाश (जेपी) ने हाथ मिला लिया है।
कैथल [पंकज आत्रेय]। कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में कभी एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला और कलायत के विधायक जयप्रकाश (जेपी) ने हाथ मिला लिया। कैथल बार एसोसिएशन की ओर से अपने अभिनंदन समारोह में दोनों दिग्गजों ने कहा कि हम पुरानी बातें भूल दोस्ती की इबारत लिखेंगे। विधायक जयप्रकाश बोले, मेरी तरफ से दोस्ती पक्की है तो सुरजेवाला ने कहा कि हम इसकी मिसाल पेश करेंगे।
जेपी ने कहा कि यह लड़ाई व्यक्तिगत नहीं, राजनीतिक थी। मुझसे कहा गया कि मेरा टिकट (विधानसभा का) सुरजेवाला ने कटवा दिया, लेकिन यह भी मेरे पक्ष में रहा। मैंने तो केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह से भी समझौता कर लिया है। सुरजेवाला ने कहा कि हमें यह लगा कि जब तक हम अलग-अलग लड़ते रहेंगे, तब तक हम ताकत में हिस्सेदारी करने में चूकते रहेंगे। जब हमने बैठकर बातचीत की तो किसी के छोटा या बड़ा होने की सोच नहीं थी। सोच थी कि इस इलाके में सरकार कैसे लाई जाए। हम एक-एक ग्यारह होकर काम करेंगे।
निर्दलीय विधायक जेपी कभी चौधरी देवीलाल की ग्रीन ब्रिगेड के कमांडर हुआ करते थे। उन्हें चौधरी देवीलाल ने हिसार लोकसभा क्षेत्र से सन् 1989 में चुनाव लड़ाया और जीतने के बाद केंद्र में मंत्री बनवाया। इसके बाद लगभग एक दशक तक वह चौटाला परिवार से जुड़े रहे, फिर मतभेद हो गए तो तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्ड़ा के जरिये कांग्रेस में एंट्री मारी।
हुड्डा और सुरजेवाला में प्रतिद्वंद्विता थी, जो हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद और बढ़ गई। जेपी हुड्डा खेमे में थे। चौधरी भजनलाल के निधन के बाद हिसार लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में बीरेंद्र सिंह अपने बेटे को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन हुड्ड़ा ने जेपी को टिकट दिला दिया था। हालांकि जेपी हार गए थे। जेपी पिछला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर चाहते थे, लेकिन टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय लड़े और जीते।
इस हद थी दोनों में दुश्मनी
सन् 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद कैथल से रणदीप सिंह सुरजेवाला तो कलायत से जयप्रकाश की जीत के बाद समर्थक जश्न मना रहे थे। कैथल के छोटू राम चौक दोनों के कार्यकर्ता आमने-सामने हो गए जीत का गुलाल उड़ाने वाले हाथों में पत्थर आ गए और जमकर खून बहा।