शरीर की बनावट देखकर किसी भी व्यक्ति का आंकलन करना नहीं चाहिए
दैनिक जागरण की संस्कारशाला के क्रम में घमंड का चक्रव्यूह कहानी प्रकाशित की गई है।
जागरण संवाददाता, कैथल : दैनिक जागरण की संस्कारशाला के क्रम में घमंड का चक्रव्यूह कहानी प्रकाशित की गई है। इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हम कभी भी घमंड में रहकर सफलता हासिल नहीं कर सकते हैं। यदि घमंड करेंगे तो इसका हमें काफी नुकसान होगा। कहानी के माध्यम से भी यह ही जानकारी दी गई है। कभी भी घमंड में रहकर अपने कामों को पूरा नहीं किया जा सकता है। यह हमारे लिए काफी घातक है। दैनिक जागरण की ओर से कोरोना महामारी के बीच स्कूल बंद होने के बाद भी विद्यार्थियों के बीच संस्कारों का पाठ पढ़ाने का कार्य कर रहा हैं, जो काफी सराहनीय है। यह कहना है डीएवी स्कूल की वाइस प्रिसिपल सुमन वधवा का। वधवा ने कहा कि हमें हमेशा भगवान का ध्यान लगा कार्य करना चाहिए। शरीर की बनावट देखकर किसी भी व्यक्ति का आंकलन नहीं करना चाहिए। जैसा कि कहानी में भी दिखाया गया कि जब राजकुमार बुजुर्ग कुलगुरु के पास पहुंचे तो वे उनकी काया देखकर हंसने लगे और कहने लगे कि मैं सबसे सर्वश्रेष्ठ हूं और जबकि ये अपने आप ठीक से खड़े ही नहीं सकते। जब कुलगुरु ने राजकुमार की परीक्षा ली तो वे कुलगुरु के सामने नतमस्तक हो गए। इसलिए विद्यार्थियों को भी किसी की काया देखकर उनका उपहास नहीं करना चाहिए। बल्कि यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि उस व्यक्ति में क्या खूबी है और वह किस प्रकार से उसे हासिल कर सकता है। जिससे वह एक अच्छा इंसान बन सके। दैनिक जागरण संस्कारशाला की कहानी हमें यह सिखाती है कि जब तक हम अहंकार के वशीभूत हैं तब तक हमारा ज्ञान निरर्थक है। अत: हमें सबसे पहले अपने अंत:करण में विनम्रता व सादगी लानी चाहिए। अहंकार से छुटकारा पाना चाहिए। तभी हमारा सर्वांगीण विकास संभव है और सफलता ही सफलता मिलने के हमें रास्ते मिलते हैं।
बौद्धिक बल से परिपूर्ण है तो हर कार्य में मिलती है सफलता
जाखौली अड्डा स्थित राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के प्रिसिपल पवन गर्ग ने कहा कि हर वर्ष दैनिक जागरण की ओर से संस्कारशाला के क्रम संस्कारों का विद्यार्थियों को पाठ पढ़ाने के लिए कहानियां प्रकाशित की जाती है। बुधवार को भी घमंड का चक्रव्यूह कहानी प्रकाशित की गई है। जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार से घमंड के कारण हम पीछे चले जाते हैं। बौद्धिक बल ही सर्वोपरि है। अगर कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से बलवान है और उसके पास कोई बौद्धिक क्षमता या सामर्थ्य नहीं है तो वह कार्यों को सफलतापूर्वक नहीं कर सकता है। जबकि शारीरिक बल कम होते हुए भी यदि बौद्धिक बल से परिपूर्ण है तो वह प्रत्येक कार्यों को सफलतापूर्वक और समय से कर सकता है।
इस कहानी में बताया गया है कि किस प्रकार से एक राजकुमार के घमंड के चर्चे होने लगते हैं। पूरे राज्य में उसके घमंड की ही चर्चाएं रहती हैं। इसमें मंत्री राजकुमार को कुलगुरु के आश्रम में ले जाने की बात करते हैं। ताकि राजकुमार सही रास्ते पर चल सकें, लेकिन राजकुमार वहां जाने से इंकार कर देते हैं। राजा ने कहा वहां एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो तुमसे हर बात में श्रेष्ठ न हुए तो तुम्हे सारा राजपाठ सौंपकर संन्यास ले लूंगा। इसके बादर राजकुमार ने उनकी बात मान ली। जब वे कुलगुरु के आश्रम में पहुंचे तो राजकुमार कुलगुरु की दुबली-पतली को देखकर हंसने लगा। उसने कहा, मैं संसार का सबसे श्रेष्ठ धनुधर, घुड़सवार, मल्लयोद्धा हूं। तलवार बाजी और गदायुद्ध में मेरा सा कोई सानी नहीं, आप कहते थे कि आपके कुलगुरु मुझसे श्रेष्ठ है। बस यहीं उसका घमंड था। अंत में कुलगुरु से अपने ज्ञान के माध्यम से तीर को हवा में भेद दिया। इसके बाद गद्धा से अग्नि को पराजित किया। इसके बाद उन्होंने तलवार उठाई और नदी के किनारे को काट दिया। इस प्रकार से कुलगुरु ने अपनी शक्ति का एहसास राजकुमार को दिखाया। इस समय राजकुमार का घमंड पूरी तरह से टूट चुका था। राजकुमार को एहसास हुआ कि वह बिना पराक्रम के ही अपना कला पर घमंड कर रहा था और सोच रहा था कि उससे अधिक बलवान और कोई नहीं। बस उसकी इसी घमंड के कारण अंत में वह कुलगुरु को जान गया था। अंत इस कहानी से यह ही सीख मिलती है हमें दूसरे की ताकत को बिना परखे घमंड में चूर नहीं होना चाहिए। यदि हम घमंड में चूर होंगे तो जरुर ही असफल होंगे। इस कहानी माध्यम यही दर्शाया गया है कि बस अपने बल और पराक्रम पर कभी घमंड न करें। घमंड करेंगे तो अपने से कमजोर व्यक्ति से मार खा जाएंगे। इसलिए हमें हमेशा भगवान का स्मरण कर अपने कार्य को करना चाहिए। इसी प्रकार से हम लगातार सफलता हासिल कर पाएंगे। संस्कारशाला में प्रकाशित कहानियां इस प्रकार की ही शिक्षाएं हमें देती हैं। इन शिक्षाओं को हम अपने जीवन में अपनाकर जीवन को सफल बना सकते हैं।