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संस्कृत में बसती है भारत की आत्मा : डा. श्रेयांश

कैथल महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय में चल रही पूर्व परीक्षा मूल्यांकन कार्यशाला के पांचवें दिन भी संस्कृत भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। पांचवें दिन भी विवि के संस्थापक कुलपति डा. श्रेयांश द्विवेदी ने कहा कि भारत की आत्मा संस्कृत भाषा में एवं संस्कृत शास्त्रों में बसती है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 27 Feb 2021 07:06 AM (IST)Updated: Sat, 27 Feb 2021 07:06 AM (IST)
संस्कृत में बसती है भारत की आत्मा : डा. श्रेयांश
संस्कृत में बसती है भारत की आत्मा : डा. श्रेयांश

जागरण संवाददाता, कैथल : महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय में चल रही पूर्व परीक्षा मूल्यांकन कार्यशाला के पांचवें दिन भी संस्कृत भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। पांचवें दिन भी विवि के संस्थापक कुलपति डा. श्रेयांश द्विवेदी ने कहा कि भारत की आत्मा संस्कृत भाषा में एवं संस्कृत शास्त्रों में बसती है। अत: रामायण, महाभारत, गीता, पुराण, वेद, दर्शन, साहित्य, ज्योतिष ग्रंथों को व महर्षि वाल्मीकि, पाणिनी, पतंजली, वेदव्यास, कालिदास, भारवी, वाराह मिहिर शास्त्रकारों को जाने बिना हम भारत को पूर्णरूपेण नहीं जान सकते। संस्कृत भाषा एवं संस्कृत शास्त्रों की रक्षा स्वयं भारत की रक्षा है। अत: शास्त्रों को पढ़ना, उसे कंठाग्र करना व उनमें विद्यमान गुणों का प्रचार-प्रसार करना हमारा प्रथम एवं पुनीत कर्तव्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन समस्त विश्वविद्यालयों में अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जिससे बालकों को समस्त शास्त्र अनायास हृदयागम हो सकें। तभी हमारे समाज को इनसे विशिष्ट गति मिलेगी एवं हमारा भारत विश्व गुरु पद को प्राप्त कर पाएगा। उन्होंने कहा कि कार्यशाला में विद्यार्थियों को ज्ञान प्राप्त होता है। कॉलेजों में समय समय पर इस तरह के कार्यशाला का आयोजन किया जाना चाहिए। विद्यार्थी मन लगा कर पढ़ाई करें। संस्कृत भाषाओं की जननी है। इसे देव भाषा भी कहा जाता है। भविष्य में इस भाषा के सीखने वाले लोगों की संख्या में इजाफा होगा। उन्होंने कहा कि बचपन से ही किसी भाषा पर पकड़ बनानी पड़ती है। हालांकि किसी उम्र का व्यक्ति कोई भाषा सीख सकता है। कार्यक्रम का सफल संचालन संस्कृत पत्रकारिता के छात्रा शीतल व रजनी ने किया।

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