पहचान खो रहा है कपिल मुनि सरोवर, ध्यान देने की मांग
प्राचीन काल में कलायत क्षेत्र में बहने वाली दृष्टवति नदी देखते ही देखते न जाने कब ओझल हो गई। वर्तमान परिदृश्य में इसके प्रवाह क्षेत्र से जुड़े अवशेष भी आसपास नजर नहीं आते। हालांकि बुजुर्ग लोग आज भी चंडीगढ़-हिसार राष्ट्रीय मार्ग के क्षेत्र को नदी पार की पहचान से जानते है।
संवाद सहयोगी, कलायत :
प्राचीन काल में कलायत क्षेत्र में बहने वाली दृष्टवति नदी देखते ही देखते न जाने कब ओझल हो गई। वर्तमान परिदृश्य में इसके प्रवाह क्षेत्र से जुड़े अवशेष भी आसपास नजर नहीं आते। हालांकि बुजुर्ग लोग आज भी चंडीगढ़-हिसार राष्ट्रीय मार्ग के क्षेत्र को नदी पार की पहचान से जानते है। प्राचीन श्री कपिल मुनि मंदिर के मुख्य पुजारी वेदप्रकाश गौतम भी इस बात की पुष्टि करते है कि करीब पांच दशक पहले भी शमशान भूमि के पास नदी पुल के अवशेष विद्यमान थे। पुल का निर्माण बाबा भारती के जन सहयोग से करवाया गया था। ताकि लोगों के आवागमन में किसी तरह की दुविधा न हो। श्रीमछ्वागवत के अनुसार भगवान विष्णु के छठे अवतार कपिल मुनि ने इसी स्थान पर माता देवहुति को सांख्य दर्शन का ज्ञान करवाया था। उन्हीं के नाम से कलायत को पूर्व में कपिलायत से जाना जाता था। ऐतिहासिक पहलुओं को देखते हुए भू-वैज्ञानिकों की टीमें कई बार सरोवर में रह-रहकर फुट रही जलधारा के कणों की जांच कर चुकी है। इस क्रम में राष्ट्रीय स्तर पर भी नगर के सजूमा रोड पर सेमिनार हो चुका है। इसमें वैज्ञानिकों ने सरस्वती को विकसित करने पर बल दिया था।