मुख्य आरोपित की गिरफ्तारी के लिए सिरसा पहुंची जांच टीम
मुख्यमंत्री राहत कोष योजना में फर्जी आवेदन कर लाभ लेने के मामले में मुख्य आरोपित की गिरफ्तारी को लेकर गठित एसआइटी ने सिरसा फतेहाबाद सहित अनय ठिकानों पर छापेमारी की। हालांकि अभी तक पुलिस टीम को सफलता नहीं मिली है। इस मामले में अब तक पुलिस मां-बेटा सहित तीन आरोपितों को गिरफ्तार कर चुकी है।
जागरण संवाददाता, कैथल :
मुख्यमंत्री राहत कोष योजना में फर्जी आवेदन कर लाभ लेने के मामले में मुख्य आरोपित की गिरफ्तारी को लेकर गठित एसआइटी ने सिरसा, फतेहाबाद सहित अनय ठिकानों पर छापेमारी की। हालांकि अभी तक पुलिस टीम को सफलता नहीं मिली है। इस मामले में अब तक पुलिस मां-बेटा सहित तीन आरोपितों को गिरफ्तार कर चुकी है। इस मामले में सिविल सर्जन की शिकायत पर अगस्त 2018 में 31 लोगों के खिलाफ फर्जी आवेदन करने का मामला सामने आया था।
इस मामले में जांच के बाद यह भी सामने आया कि छह लोगों ने तो फर्जी आवेदन करते हुए हजारों रुपये की राशि को हड़प लिया, लेकिन 25 लोगों ने आवेदन तो किए, मगर लाभ नहीं ले पाए। इस फर्जी आवेदन के तार न केवल कैथल बल्कि सिरसा, फतेहाबाद, पंजाब व राजस्थान से भी जुड़े हुए हैं। मुख्य आरोपित फतेहाबाद जिले का बताया जा रहा है।
इस मामले में फंसे लोगों का कहना है कि उन्होंने नियम अनुसार आवेदन किए थे, लेकिन अब आवेदनों को फर्जी बता फंसाया जा रहा है। जांच टीम के एक अधिकारी ने बताया कि अब तक तीन आरोपितों को गिरफ्तार किया जा चुका है, अन्य आरोपितों की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस जांच कर रही है।
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इस तरह से किए गए थे फर्जी आवेदन
मुख्यमंत्री राहत कोष में लाभ लेने के लिए लोगों ने आवेदन किया था। इसमें फर्जी कागजात लगाए गए थे। जिन अस्पतालों की रिपोर्ट लगाई थी, उन्हें इस बारे में जानकारी तक नहीं थी। यहां तक की बीमारियों के नाम भी गलत भरे हुए थे। जब चिकित्सकों ने इसकी जांच की तो आवेदन फर्जी मिले। फर्जी आवेदन करने वालों ने साढ़े तीन से चार लाख रुपये तक का क्लेम डाला हुआ था, जबकि राहत कोष से कुल राशि का 25 प्रतिशत ही क्लेम मरीज को मिलता है।
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ये होती है लाभ लेने की प्रक्रिया
कैंसर, ह्दय व गुर्दे रोग के इलाज को लेकर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मुख्यमंत्री राहत कोष से आर्थिक सहायता दी जाती है। जरूरतमंद मरीजों को इसका लाभ लेने के लिए डीसी कार्यालय में आवेदन करना होता है, इसके बाद डीसी के आदेशों के बाद सिविल सर्जन से बीमारी की स्थिति एवं तहसीलदार से आवेदककर्ता की आर्थिक स्थिति की पुष्टि की जाती है, इसके बाद रिपोर्ट मुख्यमंत्री सेल भेज जाती है। आवेदक जिस अस्पताल से भी इलाज करवा रहा होता है उस अस्पताल की तरफ से खर्चे के अनुमान का प्रमाण पत्र भी साथ लगाया जाता है, इसके बाद पूरी जांच प्रक्रिया होने पर यह सहायता राशि मरीज को उपलब्ध करवाई जाती है।