तापमान बढ़ने से गेहूं में पीला रतुआ की आशंका
कैथल कई दिनों से लगातार तापमान बढ़ रहा है। इससे किसानों को गेहूं के दाने में नुकसान होने का डर सता रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य समन्वयक डा.रमेश चंद्र वर्मा का कहना है कि गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए इन दिनों मौसम में ठंडक बनी रहनी जरूरी है लेकिन अधिकतम तापमान 29 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया है।
जागरण संवाददाता, कैथल : कई दिनों से लगातार तापमान बढ़ रहा है। इससे किसानों को गेहूं के दाने में नुकसान होने का डर सता रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य समन्वयक डा.रमेश चंद्र वर्मा का कहना है कि गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए इन दिनों मौसम में ठंडक बनी रहनी जरूरी है, लेकिन अधिकतम तापमान 29 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया है। तापमान में बढ़ोतरी से गेहूं की नमी खत्म हो सकती है। इससे गेहूं का दाना पूरी तरह फूलने से पहले ही सिकुड़ जाता है, जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा। पीला रतुआ बीमारी की भी आशंका बनी रहती है। जिसे देखते हुए कृषि विभाग ने सतर्कता शुरू कर दी है। गेहूं की प्रमुख बीमारी पीला रतुआ की रोकथाम के लिए कृषि विभाग ने विशेष अभियान शुरू किया है। इसके तहत किसानों को पीला रतुआ बीमारी के प्रति जागरूक करने के साथ ही आवश्यकता पड़ने पर सब्सिडी पर दवा भी उपलब्ध करवाई जाएगी। इस बीमारी में गेहूं की पत्ती पीली हो जाती है और उसे छूने पर हल्दी जैसा पाउडर हाथ पर लग जाता है। यही नहीं, ऐसे खेत से गुजरने पर कपड़ों पर भी पीलापन दिखाई देने लगता है। यह बीमारी तेजी से खेत में फैलती है और उत्पादन को काफी अधिक प्रभावित करती है। इस बार ठंड कम पड़ने व बरसात नहीं आने के कारण गेहूं की वृद्धि पर असर पड़ रहा है। इसके साथ ही गेहूं में बीमारियां फैलने की संभावनाएं भी बनी हुई है। जिसे देखते हुए कृषि विभाग किसानों में बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के अभियान में जुट गया है।
एक लाख 70 हजार हेक्टेयर गेहूं की होती है फसल
कैथल में करीब एक लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की फसल होती है। इन दिनों में गेहूं की फसल में बाली बनने के बाद दाना बन रहा है। अक्सर इन दिनों में मार्च तक ठंड रहने पर बाली में दाना पूरी तरह से फूलता है। मौसम जितना ठंडा रहता है उतना ही फसल को पकने के लिए पूरा समय मिलता है, जिससे दाना पूरी तरह से परिपक्व हो जाता है।
वर्जन :
गेहूं की फसल में पीलापन शुरू हो जाए तो डाक्टरों की सलाह लेकर जल्द ही फंफूदनाशक दवा प्रोपीकोनाजॉल का छिड़काव करें। इसकी मात्रा 200 मिली लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से रखी जानी चाहिए।
कर्मचंद
उपनिदेशक, कृषि विभाग, कैथल