प्रभु ने मनुष्य के विवेक पर छोड़ी अच्छे-बुरे, सत्य-असत्य की पहचान
श्री कपिल मुनि मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कथाव्यास हरिप्रिया ने भागवत में वर्णित गुरु दीक्षा भगवान का स्वधाम में गमन कलियुग का वर्णन व राजा परीक्षित की परम गति से श्रोताओं को अवगत करवाया।
संवाद सहयोगी, कलायत :
श्री कपिल मुनि मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कथाव्यास हरिप्रिया ने भागवत में वर्णित गुरु दीक्षा, भगवान का स्वधाम में गमन, कलियुग का वर्णन व राजा परीक्षित की परम गति से श्रोताओं को अवगत करवाया। हरिप्रिया ने कहा कि आत्मा ही आत्मा की गुरु है। ईश्वर ने कृपा करके मानव को इस नश्वर संसार में भेज दिया, लेकिन अच्छे-बुरे, सत्य-असत्य, ज्ञान-अज्ञान की पहचान स्वयं मनुष्य के विवेक पर छोड़ दी। उन्होंने कहा कि मनुष्य शरीर में जीव तीक्ष्ण और एकाग्र बुद्धियुक्त हो तो वह ईश्वर का साक्षात अनुभव कर सकता है। भगवान ने उद्धव को यदुराजा व दतात्रेय का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि दीक्षा गुरु एक होता है पर शिक्षा गुरु अनेक हो सकते हैं। इस संसार में उन्होंने 24 गुरुओं जिनमें धरती, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चंद्र, सूर्य, कबूतर, अजर, समुद्र, पतंगा, भ्रमर, हाथी, मधुमक्खी, स्पर्श, रस, वेश्या, कुर्री पक्षी, बालक, लोहार, सर्प, मकड़ी व कीटक से ज्ञान की प्राप्ति की है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में केवल नाम ही जीव को मुक्ति प्रदान कर सकता है। भगवान ने उद्धव को ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व सन्यास आश्रमों के धर्म भी समझाएं।