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कहीं करोड़ों की बारिश और यहां दूसरों के खेतों में गेहूं काट रहीं फुटबॉलर बेटियां

सरकार प्रतियोगिताओं में पदक जीतने वाले खिलाडियों पर करोड़ाें रुपये की बारिश कर रही है। दूसरी ओर, फुटबाल में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर नाम कमा रही बेटियां मजदूरी करने को विवश हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 20 Apr 2018 10:04 AM (IST)Updated: Sat, 21 Apr 2018 08:52 PM (IST)
कहीं करोड़ों की बारिश और यहां दूसरों के खेतों में गेहूं काट रहीं फुटबॉलर बेटियां
कहीं करोड़ों की बारिश और यहां दूसरों के खेतों में गेहूं काट रहीं फुटबॉलर बेटियां

कैथल, [सुरेंद्र सैनी]। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतने पर करोड़ों रुपये का इनाम और सरकारी नौकरी भी पक्की। देश के खेल जगत में हरियाणा की छवि ऐसी ही है, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू बेहद स्याह है। देशभर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली की मानस की फुटबॉलर बेटियां इन दिनों दूसरे के खेतों में गेहूं काटने को मजबूर हैं।

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राज्य व राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में जीत चुकीं है स्वर्ण पदक

जिले के मानस गांव की इन बेटियों ने राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते हैं। परिवार की आर्थिक तंगी के कारण इन्हें 20 से 25 दिन खेल छोड़कर सालभर का अनाज एकत्र करने के लिए दिहाड़ी करनी पड़ रही है। इनमें सुदेश हरियाणा की टीम में गोल कीपर हैं। सुदेश के मुताबिक पांच सालों से वह हरियाणा की टीम का हिस्सा हैं। अब तक तीन गोल्ड सहित पांच पदक जीते हैंं। वर्ष 2014 में रांची में प्रदेश की टीम को गोल्ड दिलाया था।

परिवार में चार बहन व दो भाई हैं। बड़े भाई सहित दो बहनों की शादी हो चुकी है। पिता कर्मबीर व बड़ा भाई बलजीत ईंट भट्ठे पर काम करते हैं। ईंट पथाई के सीजन में वे भी परिवार के साथ काम करने जाती हैं। अब खेतों में गेहूं का सीजन चला हुआ है तो माता-पिता व भाई के साथ दूसरों के खेत में दिहाड़ी करने जाती हैं। इस दौरान खेल भी छोड़ना पड़ता है। परिवार बेहद गरीब है। घर वाले कई बार उसे खेल छोडऩे को कह चुके हैं, लेकिन उसकी जिद के आगे वे झुक जाते हैं।

अपने जीते हुए मेडल दिखाते हुए राष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी सुदेश।

ब्याज पर पैसे लेकर बाहर खेलने भेजते हैं पिता

सुदेश बताती हैं कि खुराक तो दूर खेलों का सामान दिलाने के लिए भी परिवार के पास पैसे नहीं हैं। जब दूसरे जिलों या राज्यों में खेलने के लिए जाती हूं तो पिता ब्याज पर पैसे लेकर बाहर भेजते हैं। सरकार व प्रशासन की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिल रही है। खेल का ग्राउंड तक गांव में नहीं है। उबड़ खाबड़ ग्राउंड में अभ्यास करना पड़ता है। वह खुद रेलवे में जॉब करना चाहती हैं।

पूनम ने नेशनल लेवल पर जीते हैं तीन पदक

कुछ ऐसी ही हालत खिलाड़ी पूनम के परिवार की है। तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी पूनम के पिता महाबीर ङ्क्षसह ईंट-भट्ठे पर दिहाड़ी करते हैं। गेहूं के सीजन में उसके माता-पिता व भाई दूसरों के खेतों में दिहाड़ी कर अनाज एकत्रित कर रहे हैं। पूनम चंडीगढ़ के एक कॉलेज में पढ़ाई कर रही है। पूनम ने बताया कि अब तक उसने तीन पदक नेशनल स्तर पर जीते हैं। इनमें एक गोल्ड व दो सिल्वर मेडल हैं।


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