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आर्थिक तंगी के चलते फुटबालर बेटियां कर रहीं खेतों में दिहाड़ी

सुरेंद्र सैनी, कैथल : राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतने पर करोड़ों रुपये का इनाम व सरकारी नौकरी भी पक्की। हरियाणा प्रदेश की साख ऐसी ही है, लेकिन खिलाड़ियों को तमाम सुविधा देने का दम भरने वाले प्रदेश में तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। ग्रामीण अंचल में आर्थिक तंगी के चलते कई खेल प्रतिभाएं दम तोड़ रही है। इसका जीता-जागता उदाहरण गांव मानस की फुटबालर बेटियां है। राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई बार गोल्डन किक लगाने वाली बेटियां आज दूसरों के खेतों में गेहूं की फसल काटने को मजबूर हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 18 Apr 2018 06:36 PM (IST)Updated: Wed, 18 Apr 2018 06:36 PM (IST)
आर्थिक तंगी के चलते फुटबालर 
बेटियां कर रहीं खेतों में दिहाड़ी
आर्थिक तंगी के चलते फुटबालर बेटियां कर रहीं खेतों में दिहाड़ी

सुरेंद्र सैनी, कैथल : राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतने पर करोड़ों रुपये का इनाम व सरकारी नौकरी भी पक्की। हरियाणा प्रदेश की साख ऐसी ही है, लेकिन खिलाड़ियों को तमाम सुविधा देने का दम भरने वाले प्रदेश में तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। ग्रामीण अंचल में आर्थिक तंगी के चलते कई खेल प्रतिभाएं दम तोड़ रही है। इसका जीता-जागता उदाहरण गांव मानस की फुटबालर बेटियां है। राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई बार गोल्डन किक लगाने वाली बेटियां आज दूसरों के खेतों में गेहूं की फसल काटने को मजबूर हैं। परिवार की आर्थिक तंगी के चलते फुटबालर बेटियों को 20 से 25 दिन खेल छोड़कर सालभर का अनाज एकत्रित करने के लिए दिहाड़ी करनी पड़ती है। इन दिनों राष्ट्रीय खिलाड़ी सुदेश व पूनम सहित कई खिलाड़ियां खेतों में परिवार के अनाज के लिए काम करने को मजबूर हैं। सरकार या अन्य संस्थाओं से इन बेटियों को किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिल रही है।

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ब्याज पर पैसे लेकर खिला रहे पिता

फुटबालर खिलाड़ी सुदेश ने कहा, परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। पिता कर्मबीर भट्ठे पर ईंट पथाई का काम करते हैं। छह भाई-बहन हैं। गरीबी के कारण न तो खुराक पूरी हो पाती है और न ही खेलों का सामान मिल पाता है। फटे-पुराने सामान के साथ खेल मैदान में खेलने जाती हूं। जब दूसरे जिलों व राज्यों में जाती हूं तो मेरे पिता दूसरों से उधार या ब्याज से पैसे लेकर उसे बाहर भेजते हैं। वह पिछले छह सालों से राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर जिला व प्रदेश को गोल्ड जितवा चुकी है। एक बार फ्रांस खेलने के लिए देश की टीम में चयन हुआ था। परिवार ने ब्याज पर पैसे उठाकर पासपोर्ट व टिकट का प्रबंध भी कर दिया था, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते यह प्रतियोगिता स्थगित कर दी गई, इस कारण विदेश में खेलने का उसका सपना अधूरा रह गया। खिलाड़ी सुदेश ने बताया कि वे रेलवे विभाग में जॉब करना चाहती है। खेल के साथ एचएससी की को¨चग ले रही है। वर्ष 2014 में रांची में आयोजित प्रतियोगिता में प्रदेश की टीम को गोल्ड दिलवाया। अंबाला में वर्ष आयोजित हुई स्टेट चैंपियनशिप में गोल्ड टीम को दिलवाया।

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फुटबालर पूनम के पिता भी ईंट-भट्ठा पर काम करते हैं। पिछले पांच सालों से लगातार जिले व प्रदेश की टीम में खेलते हुए पदक जीत रही है, लेकिन इसके बावजूद कोई सुविधाएं नहीं मिल रही है। वर्ष 2015 में मुम्बई में आयोजित प्रतियोगिता में प्रदेश की टीम को दूसरा स्थान दिलवाया प्रदेश व जिला स्तर पर चार बार गोल्ड टीम ने जीता। पूनम ने कहा, परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के कारण खेलने में काफी दिक्कत आ रही है। घर की आर्थिक तंगी को देखते हुए कई बार तो खेल छोड़ने को दिल करता है। गांव में कोई खेल का मैदान भी नहीं है। सरकारी स्कूल में ही अभ्यास करने को मजबूर हैं, जहां काफी दिक्कतें महिला खिलाड़ियों को आती है।


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