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बच्चों के उज्जवल भविष्य से देश बनेगा विश्व गुरु : देवव्रत

हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि अध्यापक माता-पिता के विश्वास को कायम रखते हुए सभी विद्यार्थियों को अपने बच्चे की तरह शिक्षा प्रदान करके उनके उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करें।

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Nov 2018 11:29 PM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2018 11:29 PM (IST)
बच्चों के उज्जवल भविष्य से देश बनेगा विश्व गुरु : देवव्रत

जागरण संवाददाता, कैथल : हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि अध्यापक माता-पिता के विश्वास को कायम रखते हुए सभी विद्यार्थियों को अपने बच्चे की तरह शिक्षा प्रदान करके उनके उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करें। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य से देश विश्व गुरू बनने में सफल होगा।

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ढांड रोड स्थित इंडस पब्लिक स्कूल में आयोजित वार्षिक उत्सव में बतौर मुख्यातिथि आचार्य देवव्रत ने शिक्षा व खेल के क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों को सम्मानित किया।

आचार्य देवव्रत ने कहा कि भारतीय प्राचीन संस्कृति में गुरू व शिष्य का पवित्र रिश्ता रहा है। एक मां अपने बच्चे को अध्यापक पर विश्वास करके ही विद्यालय में सौंपती है, ताकि अध्यापक उस बच्चे का उज्ज्वल भविष्य बनाएंगे। अध्यापकों को माता-पिता के इस विश्वास पर खरा उतरना होता है, यदि वे ऐसा नहीं कर पाते तो यह अभिभावकों के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा। हमें बच्चों को गुणवतापरक शिक्षा के साथ-साथ उनमें अच्छे संस्कार भी विकसित करने होंगे।

उन्होंने कहा कि स्व. मित्र सैन ¨सधु ने हमेशा से सिद्धांतों पर चलते हुए शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया है। बच्चों को बेहतर शिक्षा व संस्कारवान बनाने के उद्देश्य से इंडस शिक्षण संस्थाएं स्थापित की हैं। जहां पर नन्हे-मुन्ने बच्चों में मानवीय गुणों के विकास पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है। स्कूल निदेशक सुभाष श्योराण ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर डीसी धर्मवीर ¨सह, एसपी वसीम अकरम, चेयरमैन अरूण सर्राफ, कुलबीर सुरजेवाला, बिमला सुरजेवाला, डा. एकता ¨सधु, डीईओ जो¨गद्र हुड्डा, कमलेश ढांडा, तुषार ढांडा मौजूद थे।

नैतिक शिक्षा हमारी मूल संस्कृति : वित्तमंत्री

वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा बच्चों को संस्कार युक्त शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने का निर्णय लिया गया है। भारतीय प्राचीन संस्कृति में गुरू शिष्य का पवित्र रिश्ता रहा है। नैतिक शिक्षा हमारी मूल संस्कृति का हिस्सा रहा है।

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