ढोल नगाड़ों से होता था प्रचार
आज से 50 वर्ष पहले भी एक अनोखा समय था जब यातायात के साधन काफी कम थे। किसी भी राजनैतिक दल के पास प्रचार के साधन न के बराबर होते थे।
दयानंद तनेजा, सीवन :
आज से 50 वर्ष पहले भी एक अनोखा समय था, जब यातायात के साधन काफी कम थे। किसी भी राजनैतिक दल के पास प्रचार के साधन न के बराबर होते थे। पार्टियों के प्रतिनिधि दिल्ली से साधनों की बुकिग करवा, उनमें बैठकर चुनाव प्रचार करते थे। साधनों के अभाव में हरेक लोकसभा सांसद का क्षेत्र काफी बड़ा समझा जाता था, जिसमें प्रचार के लिए कई-कई माह लग जाते थे। गांव में प्रचार के लिए तो रास्ते तक ठीक नहीं थे।
सुविधाओं के अभाव में संसदीय क्षेत्र से चुनाव में उठे उम्मीदवार ज्यादातर गांवों में तो पहुंच ही नहीं पाते थे। ये कहना है गांव सीवन के 88 वर्षीय बुजुर्ग भीष्म पितामह सरदाना का। उन्होंने बताया कि आज के प्रचार व प्रत्याशी के मतदाताओं से मिलने व पहले के प्रचार करने में काफी आया है। लोगों से स्पष्ट रूप से आमने-सामने मिलकर प्रचार करते थे, लेकिन अब सोशल मीडिया का जमाना है। प्रत्याशी को गांव-गांव घर-घर जाने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती।
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लोगों में जागरूकता की थोड़ी कमी थी।
चुनाव प्रचार का सबसे अच्छा तरीका लोकगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। उम्मीदवार ढोल व नगाड़े बजवा कर मुनादी करवाते थे कि कौन से मंदिर, चौपाल या पेड़ के नीचे किस पार्टी का नेता अपने प्रचार के लिए आ रहा है। लोग इकट्ठे होकर उसकी बात सुनते थे। उस समय लोगों में जागरूकता की थोड़ी कमी थी। गांव में मौजिज व्यक्ति ही तय करते थे कि किस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करना है। मतदान से पहले उम्मीदवार की छवि व उसके किए गए कार्याें के बारे में भी जाना जाता था। अब लोग परिवारवाद और क्षेत्रवाद को प्रमुखता देते हैं, जो राजनैतिक दृष्टि से सही नहीं है।
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प्रत्याशी के हक में वोट करने की अपील की जाती थी
चुनाव के दिन पोलिग बूथों से दूर घी के खाली टीन पर चुनाव चिन्ह लगा कर अपने प्रत्याशी के हक में वोट करने की अपील की जाती थी। टीन में पर्ची डाल कर वोट किया जाता था। बाद में बेल्ट का जमाना आया। अब तो तरह-तरह की मशीनें आ चुकी है। हर व्यक्ति के हाथ में बड़े-बड़े फोन हैं।
- भीष्म पितामह सरदाना, निवासी गांव सीवन।