मानव नहीं मानवता का मिलन दुर्लभ है : मुनि राकेश
रामराये गेट स्थित जैन स्थानक में जैन मुनि राकेश ने प्रवचन में फरमाया कि मानव का मिलना कोई दुर्लभ नहीं है। मगर मानवता का मिलना दुर्लभ है। आज जनसंख्या वृद्धि की सरकार को चिता हो रही है। मगर हमें मानव नहीं मानवता को बढ़ावा देना है।
जागरण संवाददाता, जींद : रामराये गेट स्थित जैन स्थानक में जैन मुनि राकेश ने प्रवचन में फरमाया कि मानव का मिलना कोई दुर्लभ नहीं है। मगर मानवता का मिलना दुर्लभ है। आज जनसंख्या वृद्धि की सरकार को चिता हो रही है। मगर हमें मानव नहीं, मानवता को बढ़ावा देना है।
भगवान महावीर का संदेश हमें मानवता का पाठ सिखाता है कि आप जिस स्थान पर और जिन लोगों के बीच रहते हो, वहां आपका व्यवहार एवं विचार कैसे है। अच्छे व्यवहार और विचार वाले को मानवता की श्रेणी में रखा है। आओ हम अपने व्यवहार और विचार पर ध्यान दें। मुनिश्री ने फरमाया कि भगवान महावीर स्वामी के 10 उपासक इस मानवता की श्रेणी में खरे उतर रहे थे। आनंद श्रावक का जिक्र चल रहा है। इस व्यक्ति ने भगवान महावीर स्वामी के चरणों मे जाकर अनेक प्रकार के नियम उपनियम लेकर मानवता का परिचय दिया। धर्म की शरण में आकर अपनी आत्मा का उत्थान किया। मुनि श्री ने इसी प्रसंग पर एक कहानी का जिक्र किया। एक कछुआ समुद्र में अनेकों कच्छ-मच्छ के साथ रहता है। उस समुद्र पर काई गहरी छाई हुई है। एक बार ऐसा हुआ कि हवा के झोंके से काई कुछ हट गई और संयोग से वह कछुआ उधर ही घूम रहा था। उसने पानी से बाहर अपना मुंह निकाला तो उसे चांद तारे नजर आए थे। नजारा उसे पहली बार ही नजर आया और बड़ा खुश होकर अपने साथियों को बताने चला गया। पहले तो उसके साथियों ने मजाक उड़ाया। ज्यादा जोर देने पर कुछ साथी तैयार हो गये। मगर वहां देखा तो हवा के कारण दोबारा शैवाल छा गई। अब कछुआ अपने साथियों को लेकर कभी इधर कभी उधर घूम रहा है, मगर उसे वह नजारा दोबारा देखने को नहीं मिला। इसी प्रकार ये संसार चक्र है। आत्मा का उत्थान करने के लिए धर्म ही सहारा है। धर्म का सहारा छूट जाता है तो आदमी संसार समुद्र मे घूमता रहता है। मगर हमें धर्म का शरणा मिला है। उसका हम लोग लाभ उठाए। इस अवसर पर प्रधान सुरेश जैन, पीसी जैन, विनोद जैन, मनोज जैन, अमित नंदी, प्रकाश जैन, डीआर जैन, मदन लाल जैन, आनंद जैन, बिट्टू जैन आदि उपस्थित रहे।